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एक धर्म विशेष के लिए इतनी उदारता क्यों!

एक धर्म विशेष के लिए इतनी उदारता क्यों!


पटना जिला सुधार समिति के महासचिव राकेश कपूर ने बतायाकि कोरोना महामारी ने देश में जनता की खुशियों को लील लिया और उनकी दिनचर्या से लेकर पर्व त्योहारों को भी प्रभावित किया। हिन्दुओं के पर्व दशहरा, दीपावली, छठ हो या और कोई पर्व। मुसलमानों के पर्व ईद-बकरीद, शबेबरात, मुहर्रम- सभी प्रभावित हुए। 
जैनियों के जैन मुनि स्वामी सुदर्शन जी महाराज के निर्वाणोत्सव पर वाले प्रतिवर्ष निकलने वाले जुलूस को भी सरकारी अनुमति नही मिली जबकि इस जुलूस में मात्र 100-200 से ज्यादा लोग नहीं रहते हैं। ईसाई धर्मावलांबियों के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्हें ईस्टर के मौके पर भी कोई छूट नहीं दी गई। 
सरकार ने सभी को कोरोना के कारण प्रतिबंधित किया। लेकिन इस बीच बिहार सरकार ने चुनाव अवश्य कराया और अब देश के अन्य राज्यों में चुनाव कराने जा रही है। सरकारी मीटिंग और रैली से लेकर सरकार बनाने से लेकर बिगाड़ने तक खेल खेला गया। सरकार व सरकारी पार्टी के लिए किसी प्रकार का कोरोना नहीं था सिर्फ देश की जनता व विपक्षी पार्टियों पर यह सभी प्रतिबंधित दिशा-निर्देश लागू किया गया। 
अभी पटना सिटी में श्री गुरूगोबिन्द सिंह जी महाराज के 354वें जन्मोत्सव पर तो सरकार ने  सभी सावधानियों नजरअंदाज करते हुए उन्हें जुलूस से लेकर धूम-धाम से जन्मोत्सव मनाने की छूट दे दी है। उन्हें हफ्तों प्रभात फेरी भी निकलने के साथ-साथ रात-रात भर लाउडस्पीकर बजाने तक की भी छूट है।
सिखों के लिए कोई रोक-टोक नहीं है। सरकार सिखों के प्रति इतनी उदारता का प्रदर्शन क्यों कर रही है, यह समझ से बाहर है।और तो और सरकार ने उनकी सुरक्षा के नाम पर पटना सिटी शहर को बैरेकैटिंग कर पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। जबकि बाहर से आने वाले संगत में यात्रियों से ज्यादा पुलिस बल की नियुक्ति कर दी गई है। ऐसी क्या असुरक्षा की बात हो गयी जो इनके लिये सरकार ने ऐसी तैयारी की है।
यह खेल 2017 के शताब्दी वर्ष से शरू हुआ, जो अनवरत जारी है। और लगता है कि आगे भी जारी रहेगा। जनता के टैक्स के पैसों को किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने में क्यों खर्च किया जा रहा है? यह सवाल तो बनता है!
बिहार के एक महामहिम राज्यपाल ने तो चौक थाना के चिमनी घाट पर गुरूद्वारा के निर्माण के लिए गंगा की जमीन ही दे दी। हमारे वर्तमान मुख्यमंत्री ने भी इसी गंगा की जमीन पर बगल में पर्यटन केंद्र ही बनवा दिया। अब तो गंगा की जमीन पर शहर ही बसने लगा है।
पिछले वर्ष गंगा के किनारे गंगा की जमीन पर टेंन्ट सिटी बनाकर सिख यात्रियों को ठहराया गया। अटूट लंगर चला और सभी के जूठन, मल-मूत्र से गंगा अपवित्र होकर मैली हुई और  हिन्दूओं की भावना से खिलवाड़ किया गया। 
अब तो चिमनी घाट पर बने गुरुद्वारा के बगल में स्थाई लंगर हाल का निर्माण कर स्थाई प्रदूषण फैलाने का इन्तजाम कर दिया जा रहा है। कहां गई केंद्र सरकार की राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का गंगा और उसे प्रदूषण से बचाने की योजना?
चिमनी घाट को अघोषित रूप से सरकार ने कंगन घाट कर दिया है और अब रेलवे स्टेशन का नाम पटना साहिब रहने के कारण पटना सिटी अनुमंडल को ही पटना साहिब में प्रचलित होने लगा है। 
इनके विस्तार की मानसिकता पर अंकुश लगाने के लिए यहां के स्थानीय नागरिकों को एकजुट होकर इनके खिलाफ शंखनाद करना होगा। तभी हम अपनी साझी ऐतिहासिक विरासत को बचा सकेंगे। धन्यवाद!
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