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"अवगत होकर क्या कर लोगे"

"अवगत होकर क्या कर लोगे"

जिसने मन की बात न जानी
तुम भी उसी भीड़ का हिस्सा 
किवदंती  जो  स्वयं   बना  है
सुना  रहा  औरों  को  किस्सा
इस  दुनिया  में है  क्या  कोई
करे  प्रेम  और दुख़ ना भोगे ?

      अंतर्मन    की   पीड़ाओं   से,
      अवगत हो कर क्या कर लोगे।

अग्नि उगलती दग्ध धरा को
वर्षा    की    बूंदें   सहलातीं
दूर  देश   बैठे   प्रियतम  को
यादें  मन  की  पास  बुलातीं
धुला चंद्र और खिली चांदनी
नभ  के  तारे  अंक   भरोगे ?
                        
      अंतर्मन    की   पीड़ाओं   से, 
      अवगत होकर क्या कर लोगे।

मधुर आकृति उर अंतस की 
ठेस   पोछ   देती  है  पल में 
तीक्ष्ण हलाहल  की  दो  बूंदें
विष मिश्रण कर देती जल में 
जो   सर्वस्व   लुटा   बैठे   हैं 
उनकी झोली क्या भर दोगे ?

        अंतर्मन  की    पीड़ाओं    से,
        अवगत होकर क्या कर लोगे।

जग ने  लिखी  पोथियां  ढेरों 
परिभाषा  रिश्तों  की गढ़ कर
दीमक का  भोजन  बन  बैठीं 
पेट भरा न किसी का पढ़ कर
असफ़ल  होकर  सब  बैठे  हैं 
सफल परीक्षा तुम कर लोगे ?
                  
        अंतर्मन   की   पीड़ाओं   से,
        अवगत होकर क्या कर लोगे।

निर्मल मन निश्छल अभिलाषा
स्वप्निल चाह  तनिक सी आशा
नींद  भरी  बोझिल  सी  पलकें
दूर  दूर    तक   नहीं   निराशा
कागज   की   नावों   में    डूबे 
बचपन को  वापस  कर  लोगे ?

          अंतर्मन   की   पीड़ाओं   से,
          अवगत होकर क्या कर लोगे।

सतरंगी     संसार     सलोना 
इसमें  कुछ पाना कुछ खोना 
भंवरों  के गुंजन की  लय  में
तितली  का  है  पुष्प बिछौना
सागर  के कोलाहल  का क्या 
नदियों  जैसा  स्वर कर लोगे ?

           अंतर्मन मन की पीड़ाओं से,
           अवगत  होकर  क्या  लोगे।

मानस विकृत  वस्त्र निराले 
चढ़े   मुखौटे   काले   काले 
संविधान को नित्य कुचलते
वह   हैं  भारत  के रखवाले
ऐसे कुत्सित  कुटिल वर्ग से
देश की रक्षा क्या कर लोगे ?
  
          अंतर्मन    की   पीड़ाओं   से,
          अवगत होकर क्या कर लोगे।

क्या क्या तुम्हें बताएं मन की
घटनाएं   नीरस   जीवन  की 
हठ  करने  में  क्या  रक्खा है 
बात करो कुछ खुले गगन की
घाव  तो  अब नासूर  बन चुके 
मरहम मल कर क्या कर लोगे ?

          अंतर्मन    की    पीड़ाओं  से, 
          अवगत होकर क्या कर लोगे।
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(रवि प्रताप सिंह,कोलकाता-8013546942)
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