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जिस देश की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं होती, वहां कभी नहीं हो सकता भावनात्मक एकत्व

जिस देश की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं होती, वह देश कंठ में स्वर रखकर भी गूंगा होता है। यह अत्यंत चिंताजनक है कि भारत की कोई एक राष्ट्रभाषा नहीं है। बिना किसी और विलंब के भारत की एक ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित की जानी चाहिए और वह हिंदी हो एवं उसकी लिपि देवनागरी हो।

सोमवार को बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के 101वें स्थापना दिवस पर सम्मेलन सभागार में आयोजित समारोह में यह प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मांग की गई। इस अवसर पर हिंदी भाषा और साहित्य के उन्नयन में मूल्यवान योगदान देने वाली विदुषियों और विद्वानों को बिहार की मूर्धन्य साहित्यिक विभूतियों के नाम से नामित अलंकरण प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया गया।

अध्यक्षता सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने की। उद्घाटन करते हुए हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र रहा है। मुख्य अतिथि और हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद, डॉ. एसएनपी सिन्हा, डॉ. राज कुमार नाहर, सरदार महेंदरपाल सिंह ढिल्लन, प्रो. जंग बहादुर पाण्डेय, डॉ. शंकर प्रसाद, डॉ. भूपेंद्र कलसी, कवि योगेंद्र प्रसाद मिश्र ने अपने विचार रखे।

हिंदी में मूल्यवान योगदान के लिए ये हुए सम्मानित
डॉ. मिथिलेश मधुकर, डॉ. मनोज कुमार, अलख निरंजन प्रसाद सिन्हा, डॉ. संजय कुमार सिंह, रामेश्वर द्विवेदी, महेश कुमार बजाज, रमेश चंद्र, अनिता मिश्रा ‘सिद्धि, दशरथ प्रजापति: आचार्य नलिन विलोचन शर्मा सम्मान, डॉ. रामध्यान शर्मा: कलक्टर सिंह केसरी सम्मान, डॉ. सतीश कुमार राय, सत्येंद्र कुमार पाठक, डॉ. रंगनाथ दिवाकर, हरि नारायण सिंह ‘हरि, डॉ. सुशांत कुमार, डॉ. छाया सिन्हा, कपिलदेव सिंह, ऋद्धि नाथ झा, डॉ. मधु बाला सिन्हा, पीयूष कांति, डॉ. संजय कुमार सिंह, डॉ. राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि, ओम् प्रकाश पाण्डेय, डॉ. सविता मिश्र ‘मागधी’, डॉ. चित्रलेखा, डॉ. करुणा पीटर ‘कमल, डॉ. रीता सिंह, कहकशां तौहीद, डॉ. देवव्रत अकेला, डॉ. दीनबंधु मांझी, अरुण माया, डॉ. सर्वदेव प्रसाद गुप्त, डॉ. चन्द्रभानु प्रसाद सिंह, अखौरी चंद्रशेखर, अमलेंदु अस्थाना, डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, डॉ. पंकज कर्ण, रणजीत दुधु, डॉ. गोपाल प्रसाद ‘निर्दोष, डॉ. प्रशांत गौरव, अरुण कुमार श्रीवास्तव, आनन्द बिहारी प्रसाद, अशोक कुमार, डॉ. सुनील कुमार ‘प्रियबच्चन, डॉ. मनोज गोवर्धनपुरी, डॉ. रणविजय कुमार, डॉ. अविनाश कुमार, डॉ. अनिता सिंह, डॉ. गोपाल कृष्ण यादव, अंकेश कुमार, नम्रता कुमारी, विभा कुमार, रश्मि अभय, बबीता सिंह, डॉ. रवि कुमार, डॉ. अविनाश रंजन, रवि रंजन, डॉ. कीर्ति कुमारी, अमित कुमार मिश्र, कृष्ण अनुराग, सीमा कुमारी, शिव नंदन प्रसाद, डॉ. सावन कुमार, डॉ. हाराधन कोईरी, गौरव अग्रवाल।



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A country that has no national language of its own can never have emotional unity


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/a-country-that-has-no-national-language-of-its-own-can-never-have-emotional-unity-127831481.html

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