हिजड़ों की फौज में (हिंदी ग़ज़ल)
तमाम जिंदगी जो गुजार दिये मौज में,
लो वे आज निकलें हैं शांति के खोज में।।
आज मितव्ययिता का पाठ पढ़ा रहे हैं देखो,
जो लुटते लुटाते रहे हैं बेमतलब के भोज में।।
जो खुद हीं कभी बेबस हो नंगे नाचते थे,
कह रहे हैं बसाओ मत किसीको मन सरोज में।।
हमारी चंचल निगाहें देखकर उन्हें शक होता है,
जिनकी दृष्टि फंसी रह गई थी कोमल उरोज में।।
आज सब जगह सबको बताते फिर रहे हैं यार,
नासमझी का असर बहुत होता है मनोज में ।।
ये "मिश्रअणु" है खड़ा खड़ा बस माजरा देख रहा,
क्या खलबली मची है आज हिजड़ों की फौज में।।
--:भारतका एक ब्राह्मण.
©संजय कुमार मिश्र "अणु", वलिदाद,अरवल (बिहार)
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