नयी सुबह फिर लानी है

फिर भी तुम्हें सुनानी है
कितने दिन तक मौन रहें
सबको बात बतानी है
अपने मन की करता है
नहीं किसी की मानी है
बड़ी-बड़ी बातें करता
बस बातों का दानी है
दर्द नहीं होता दिल में
मरा ऑख का पानी है
नेता अच्छा है,भाषण
उसको याद जुबानी है
मिली सफलताये उसको
मीठी बोली-बानी है
धुला दूध का बनता है
हरक़त बड़ी सयानी है
परेशान फुटपाथ हुए
जब-जब बरसा पानी है
घर गरीब को मिला नहीं
जर-जर छप्पर-छानी है
द्वार प्रगति के बंद किए
कैसी कारस्तानी है
रोजगार के बिना यहाँ
हुई उदास जवानी है
अब तो सब घर बैठ गये
सब की यही कहानी है
रोटी के भी लाले हैं
याद आ रही नानी है
हाल न पूछो अब कोई
ऑखे पानी-पानी हैं
मुंह खोला यदि तुमने तो
कहते पाकिस्तानी है
काम किए गद्दारी के
फिर भी हिन्दुस्तानी है
शातिर,झूठा व मक्कार
बात सभी ने जानी है
नहीं काम का है फिर भी
जनता हुई दिवानी है
सच बतलाएं तुमको जी
बात ये बड़ी पुरानी है
आया है सो जाएगा
कुछ दिन की महिमानी है
अब तो जय ने ठान लिया
नयी सुबह फिर लानी है
*
~जयराम जय
पर्णिका 11/1कृष्ण विहार
आवास विकास कल्याणपुर कानपुर-208017(उप्र)
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