इस वर्ष कब और कैसे करे हरितालिका तीज ?
हरितालिका व्रत (तीज) भाद्रपद शुक्ल तृतीया २१ अगस्त २०२०, शुक्रवार,
लेखक कमलेश पुण्यार्क ' गुरूजी'
ध्यातव्य — गया समयानुसार — गुरुवार २०ता.को सूर्योदय काल में प्रतिपदा तिथि प्रातः ६.१० तक है और अगले सूर्योदय से पूर्व ही द्वितीया तिथि भी समाप्त हो जा रही है— भोर में ४.०९ बजे ही । इस प्रकार अगला सूर्योदय शुक्रवार को तृतीया तिथि में है। तृतीया तिथि रात १.५१ बजे तक है। हस्ता नक्षत्र का प्रवेश रात १.०७ बजे के बाद हो रहा है। अतः स्पष्ट है कि इस बार तीजपूजा के लिए गोधूली काल ही उत्तम माना जायेगा। इस समय अन्य कोई व्यवधान भी नहीं है। )**********************************************************
स्त्रीणां नित्यंकाम्यश्च...
तत्र चतुर्थीसहिता या तु सा तृतीया फलप्रदाः।
अवैधव्यकरा स्त्रीणां पुत्रपौत्रप्रवर्धिनी।– सुखसौभाग्य-वर्द्धक तीज त्योहार के लिए तृतीया के साथ चतुर्थी का संयोग अच्छा माना जाता है। हस्तानक्षत्र का भी संयोग मिल जाय तो अति उत्तम ।
सायंकाल में बालुकामूर्ति बना कर शिवपार्वती की यथोपलब्ध पूजा-अर्चना करने की परम्परा है। भविष्योत्तरपुराण के हरगौरिसंवाद नामक अध्याय में इसकी विस्तृत चर्चा है।
संक्षिप्त में कथा है कि हिमवान अपनी पुत्री पार्वती, जो सदा द्वादशवर्षीया सी सौन्दर्वती प्रतीत होती थी, के लिए नारदजी से योग्य वर हेतु पूछा। नारदजी ने हिमाचल को सुझाया कि भगवान गरुड़ध्वज विष्णु के अतिरिक्त कोई योग्य वर होही नहीं सकता, आपकी पुत्री के लिए। किन्तु यह जानकर पार्वती बहुत चिन्तित हुयी और अपनी सखी से सलाह की। सखी गुप्तरुप से उसे राजभवन से उड़ाकर हिमालय के ही एक गुप्त कन्दरा में लेगयी। वहां रहकर देवी पार्वती भोलेनाथ शिव की तपस्या में लग गयी। क्यों कि वह उन्हें ही चाहती थी। भाद्रपद, हस्तयुक्त शुक्ल तृतीया को शिव प्रसन्न होकर पार्वती को वरण करने का वरदान दिये।
इस बीच काफी समय गुजर चुका था। इधर राजा हिमवान बहुत चिन्तित हुए और अपने सहचरों के साथ पुत्री की खोज में निकल पड़े। संयोग से वे पार्वती को ढूढ़ने में सफल हुए।
पार्वती ने पिता से वचन लिया—
श्रृणुतातमयाज्ञातंत्वंदास्यसीश्वराय माम् ।
तदन्यथाकृतंताततेनाहं वनमागता ।।
ददासि तात यदि मामीश्वरायतदागृहम् ।। -
तुम यदि बिष्णु को छोड़कर, शिव को मुझे प्रदान करने का संकल्प लो तो मैं वापस घर चल सकती हूँ। हिमवान ने इसे स्वीकार किया।शिव के ही वरदान से इस व्रत का इतना महत्त्व है। आली यानी सखी द्वारा हरण की घटना क्रम के कारण इस व्रत का नाम हरितालिका पड़ा। अस्तु।
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