सब ने अपनी राह में हैं बो दिए कांटे
सब ने अपनी राह में हैं
बो दिए कांटे
दर्द सबका कौन अब बांटे
अमराई महकी आंगन में
तरसे मन सूखे सावन में
साथी मेरा इंटरनेट से
टुकुर-टुकुर ताके
लगते उजले दिन है काले
यादें सॅग महुआ के प्याले
वह नहीं हमारे पास तो फिर
कौन अब डांटे
दर्द सबका कौन अब बाँटे
रात चांदनी बेला महके
टेसू मन पलाश बन दहके
स्मृतियों की पुरवाई ने
लगा दिए चाटे
दर्द सबका कौन अब बांटे
गंध हो गई टुकड़े -टुकडे
गीत हो गए मुखड़े-मुखड़े
स्वार्थ तराजू चुंबक वाले
लगा रहे घाटे
दर्द सबका कौन अब बाँटे
सब ने अपनी राह में हैं
बो दिए कांटे
दर्द सबका कौन अब बांटे
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~जयराम जय,प्रेमिका,11/1,कृष्ण विहार,कल्याणपुर
कानपुर-208017(उ प्र)
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