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हमरी न मानों रंगरेजवा से पूँछो : कहाँ मर बिला गयी रंगरेज जाति?

हमरी न मानों रंगरेजवा से पूँछो : कहाँ मर बिला गयी रंगरेज जाति?

संकलन अश्विनी कुमार तिवारी 

हमरी न मानों रंगरेजवा से पूँछो जिसने रंग दीना दुपट्टा मेरा : कहाँ बिला गया वो रंगरेज ?

How The Fluid Indian "Jaat Pratha" was changed into Alien / European Rigid Caste System : Part- 3

"मॉडर्न caste सिस्टम एक सनकी रेसिस्ट ब्रिटिश ऑफीसर H H RIESLEY की दें है जिसने 1901 में नाक की चौड़ाई के आधार पर "unfailing law of Caste" का एक सनकी व्यवस्था के तहत एक लिस्ट बनाई , जिसमे उसने नाक की चौड़ाई जितनी ज्यादा हो उसकी सामाजिक हैसियत उतनी नीचे होती हैं , इस फॉर्मूले के तहत सोशियल hierarchy के आधार पर जो लिस्ट बनाई वो आज भी जारी है और संविधान सम्मत है / यही भारत की ब्रेकिंग इंडिया फोर्सस का , और ईसाइयत मे धर्म परिवर्तन का आधार बना हुवा है /
ऐसा नहीं है कि भारत मे जात प्रथा थी ही नहीं / ये थी लेकिन उसका अर्थ था एक कुल या वंश , जिसके साथ कुलगौरव और एक भौगोलिक आधार के साथ साथ एक पेशा भी जुड़ा हुवा था /"
अब MA शेरिंग की 1872 की पुस्तक -"caste आंड ट्राइब्स of इंडिया " से उद्धृत उस प्रथा की रूपरेखा समझने की कोशिश करें ।

"MA SHERING शृंखला -5 " जात और जाति (Caste) में क्या अंतर है ?
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 345
Caste of weavers , thread spinners ,Boatmen नुनिया / लूनिया beldars Bhatigars
कटेरा या धुनिया
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रुई की धुनाई करने वाली एक caste है जिनको धुनिया कहा जाता है / ढेर सारे मुसलमान और हिन्दू इस व्यवसाय से जुड़े हुये हैं / रुई की धुनाई और सफाई के लिये जिस यंत्र का ये प्रयोग करते हैं , वो एक साधारण धनुष के समान होता है / जमीन पर उकडूं बैठकर ताज़े रूई के ढेर पर , जिसमें धूल और तिनके और अन्य गंदगी भरी होती है, बायें हाथ में धनुष पकड़कर और दाहिने हाँथ में लकड़ी के mallet से कटेरा लोग जब धनुष की रस्सी पर प्रहार करते हैं तो रूई के ढेर के उपरी सतह पर हलचल होने लगती है / और रूई के ढेर से ह्लके रेशे इस रस्सी से चिपक जाते हैं / ये प्रक्रिया लगातार जारी रहती है जिससे रूई की रूई की बढिया और सुन्दर धुनाई हो जाती है और सारी गंदगी अपने भार की वजह से रूई से अलग होकर जमीन में गिर जाती है / ये caste बनारस दोआब और अवध के पूर्वी जिलों मे पायी जाती है /

कोली या कोरी
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ये बुनकरों (weavers ) की caste है / इनकी पत्नियाँ भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं / ये समुदाय छोटा है और आगरा तथा प्रांत के पश्चिमी जिले मे पाया जाता है /

"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /"

नोट - शेरिंग ने 1872 मे ‪#‎caste‬ शब्द का प्रयोग किन अर्थों मे किया है , जिसमे एक ‪#‎व्यवसाय‬ में ‪#‎हिन्दू‬ और ‪#‎मुसलमान‬ सब सम्मिलित हैं /

और मॉडर्न caste सिस्टम जो Risley की 1901 की जनगणना की देन है , आज किन अर्थों में प्रयुक्त होता है , आप स्वयं देखें / कोली कैसे जो कभी एक संम्‍मानित क्षत्रिय व्यवसायी थे , जब सारे व्यवसाय नष्ट हो गये तो , शेडुलेड़ caste और OBC में लिस्टेड हो जाते है , आप स्वयम् देखें / आभाषी दुनिया के मित्र श्रीराज कोली ने स्वयं यह बात स्वीकार किया है ,की उनके वंशज कहते हैं कि वे क्षत्रिय थे / आपको ये समाज का विखंडन और बंटवारा समझ मे आ रहा है न ?

"MA SHERING शृंखला -6
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 346

तांती
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बुनकरों की एक कॅस्ट , जो , सिल्क का किनारा (बॉर्डर) aur भांती भांती प्रकार के धातु बनाते हैं / ये किंकबाब या सोने चांडी से मढ़े हुये महन्गी ड्रेस , जिसमें इन्हीं महन्गी धातुओं की embroidary हुई होती हैं , बनाते हैं / बताया जाता है कि ये गुजरात से आये हुये हैं / बनारस में इस ट्राइब का मात्र एक परिवार है जो धनी हैं और शहर के एक विशाल भवन में निवास करता है /

तंत्रा (Tantra)
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तंत्रा एक अलग clan (वंश) है जो सिल्क के धागों का निर्माण करता है / बताया जाता है कि ये दक्षिण से आये है , और इनको निचली कॅस्ट मे माना जाता है क्योंकि ब्राम्हण इनके घरों मे खाना नही खाते हैं /

कोतोह (Kotoh)
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अवध के जिलों मे पे जाने वाली थ्रेड स्पिन्नर्स की की एक छोटी परंतु सम्मानित caste है /
Page- 346

रँगरेज
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कपड़े डाइ करने वालों की caste है ये / ये शब्द रंग से उद्धृत है , और रेज यानी ये काम करने वाला / ये caste प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पायी जाती हैं /

छिप्पी
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कपड़ों पर प्रिंटिंग करने वालों की caste / इनका विशेष कार्य कपडो पर क्षींट stamp karna है / ये लोगों का ये लोग ज्यादा न्हैं हैं , लेकिन ये प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पाये जाते हैं / बनारस में ये एक अलग caste के अंतर्गत आते हैं /

"छिप्पी अपने आपको राठौर राजपूत कहते हैं "

मल्लाह
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सभी नाविकों को मल्लाह कहा जाता है चाहे वो जिस भी caste के हों / इसके बावजूद मल्लाहों की एक विशेष ट्राइब जो कई कुलों (क्लॅन्स) में बंटे हुये हैं / वो निम्नलिखित हैं :-
१- मल्लाह
२- मुरिया या मुरीयारी
३- पनडुबी
४- बतवा या बातरिया
५- चैनी चैन या चाय
६- सुराया
७- गुरिया
८- तियर
९- कुलवाट
१०- केवट
ये नाविक भी हैं , fisherman (मछली मारने वाले ) भी हैं , और मछली पकडने के लिये जाल की manufacturing भी करते हैं / पहले ये एक दूसरे में शादी करते थे लेकिन अब वो बंद हो चुका है / हिन्दुओं की कई और castes भी मल्लाही का पेशा करते हैं /

नोट : कोई बताए कि ऊपर वर्णित समुदायों मे कौन अगडी थी कौन पिछड़ी थी ? ये किस ग्रंथ मे लिखा है - कि फलाना जात अगड़ी और फलाना जात पिछड़ी ? 
और अगर नहीं लिखा तो ये आया कहाँ से ?

कहाँ गए छिप्पी तांती तंत्रा कोताह रंगरेज ?
मर गए , बिला गए या जहन्नुम रशीद हो गए ।
क्यों और कैसे ?
जब इनका व्यवसाय ही उच्छिन्न हो गया तो ये कहाँ से बचते ?
✍🏻त्रिभुवन उवाच :  डॉ त्रिभुवन सिंह

आज से 350 वर्ष पूर्व 1651 में निर्मित उदयपुर निर्मित जगदीश मन्दिर। 
अब इसकी आर्थिक और सामाजिक पृष्ठिभूमि को देखा जाय। ऐसा अद्भुत वास्तुकला का उदाहरण आज भी मिलना असंभव है। 350 साल पहले आर्किटेक्ट नही होते थे, जो सीना चौड़ा करके घूमते हों। 
राजशिल्पी अवश्य हुवा करते थे। 
1600 के आसपास भारत विश्व की 30% जीडीपी का उत्पादक था। आज बजट आया है। आप जीडीपी का महत्व समझ सकते हैं। 
इसके निर्माण हेतु गरीबों का खून नही चूसा जाता था जैसा कि आने वाले मात्र 100 साल बाद शुरू हो जाएगा। 

कौन निर्मित करता था इनको?
ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य या शूद्र ?

इनको निर्मित करने वाले थे राजशिल्पी। शूद्र  जिनको कौटिल्य ने बताया था वार्ता में करकुशीलव -"एक्सपर्ट इन टेक्नॉलॉजिकल साइंस"

यह अकेला मन्दिर नही है भारत मे। ऐसे हजारों मन्दिर हैं। 
जब ईसाइयों ने यह पढ़ाया कि आर्य यानी सवर्ण बाहर से आये थे और उन्होंने यहां के मूल निवासियों को गुलाम बनाया। तब भारत की जीडीपी नष्ट होकर मात्र 1.8% बची थी। करोड़ो लोग भूंख और संक्रामक बीमारियों से मृत्यु की गोंद में समा गए। 1750 से 1947 के बीच भारत मे एक भी मन्दिर न बना। क्यों ? 
न बनाने का धन था और न ही वे आर्किटेक्ट जिंदा बचे जिनको राजशिल्पी कहते थे। 
आज से कुछ वर्ष पूर्व मुझे सिल बट्टा चाहिए था। जो लोग चिलबिला क्रासिंग से पहले गुजरे होंगे उन्हें याद होगा कि रेलवे लाइन के बगल कुछ झुग्गी झोपड़ियां थी। वे लोग सिल बट्टा बनाकर बेंचते थे। 
मैंने गाड़ी रोककर एक सिल बट्टा खरीदा उसका मूल्य चुकाया और उस व्यक्ति से पूंछा कि भैया -" कौन जात हो?"
उसने बड़ी ठसक के साथ बताया कि साहब राजशिल्पी। 
मैंने कहा कि अब सरकारी हिसाब से कौन जात हो। 
उसने बताया कि अनुषुचित जाति। 

उसकी ठसक में उसके जाति कुल का गौरव छलक रहा था। जाति का अर्थ होता है कुल, वंश वृक्ष। 
इसका अर्थ कास्ट नही होता। 
किसी कुल में जन्म लेने से कोई अगड़ा पिछड़ा कैसे होता है भाई?
लेकिन तुमको तुम्हारे अंग्रेजी बापों ने बताया कि कास्ट हिंदुओं की सबसे बुरी बीमारी है। 

आज से कई वर्ष पूर्व मैं प्रतापगढ़ के चिलबिला बाजार से सिल और लोढ़ा खरीदने के लिए सड़क के किनारे बने झुग्गी झोपड़ियों के सामने रुका।
एक व्यक्ति छेनी से एक सिल ( पत्थर) पर घन मार मार कर छोटे छोटे छेद या गड्ढा बना रहा था। मैने उससे सिल लोढ़ा खरीदने के बाद पूँछा कि भाई #कौन_जात हो ?
उसने बताया - साहब राजशिल्पी ।

मैने पूँछा कि सनातन वाला नहीं बताओ - सनातन सिस्टम खत्म हो गया है। सरकारी कास्ट बताओ। 
उसने बताया कि साहब - SC। 
वही आज दलित कहलाते हैं। 

बाद में राजशिल्पी - राहगीर और राजमिस्त्री हो गया। 

ईसाइयन के जाते जाते वह सड़क किनारे वाला SC बन
 गया। 
1972 में वही दलित बन गया।

उसी के पूर्वजों की गौरवशाली परंपरा में बनीं अद्भुत शिल्प देखिये । 

धरम पाल जी ने भारत पर ब्रिटिश शासन के कारण हुए करोड़ो बेरोजगारों का वर्णन करते हुए, उनके बारे में भी लिखा जो कुछ ऐसे  भारतीय थे, जो सरकारी नौकरियों या अन्य कारणों से भौतिक रूप से अन्य भारतीयों की तुलना में अच्छी स्थिति में थे।
"प्रत्येक जिले में 200-400 ऐसे परिवार जिनका स्वयम् अपने उस समुदाय से भी कुछ लेना देना नही था, जिसकी सेवा करने के लिए उंनको वह नौकरी मिली थी। 
उन्होंने पूर्णतया पाश्चात्य जीवन पद्धति अपना लिया था।
1830 में वाइसराय बेंटिक उन सम्पन्न बंगाल के हिन्दू परिवारों के इस दृष्टिकोण और परिवर्तन से बहुत प्रसन्न था कि उन्होंने ब्राम्हणो को अन्नदान और मंदिरों में दान देना बंद कर दिया था।
बच्चों को भी समाज से दूर होस्टल में शिंक्षा दिलवाकर उनका विकास इस तरह से किय्या गया कि वे लोकल निवासियों से मिलना जुलना नागवार और असुविधाजनक लगता था। उनकी जिंदगी वास्तव बांझ और ऊसर है। 
(आज भी) यह वही लोग हैं जो पावर और सत्ता की ताकत अपने हाँथ में रखते हैं, लेकिन - उंनको कुछ भ्रांतिपूर्ण विचारों का प्रतिनिधि भर ही माना जा सकता है या जिनकी उपस्थिति जन सामान्य में एक भय का संचार पैदा करती है - स्वतंत्रता के बाद भी यह इससे कोई अन्य गहरा अर्थ नही पैदा कर पाए हैं। उन इलीट अधिकारियों के पक्ष में यह कहा जा सकता है कि उनकी जीवन पद्धति, जिन भद्दे घरों में वह रहते हैं, जितनी भी वैध या अवैध धन का उन्होंने संचय कर रखा है, किसी भी तरह वे किसी तरह के ईर्ष्या की पात्रता नही रखते। यहां तक कि प्रायः उसमे बहुधा harassed ( प्रताड़ित) और पथेटिक दिखते हैं, जो उस समाज की दया के पात्र हैं जो हमारी तरह अकिंचन और अव्यवस्थित नही था"।

यह लेखक का दृष्टिकोण उस वर्ग के बारे में आज से 50 वर्ष पूर्व था। 
आज हममें से बहुधा अनेक लोग उस स्थिति में होंगे जिनके बारे में लेखक ने लिखा है। 

आज एक high court के एक वकील साहब #राजभर साहब ऑपरेशन के बाद दिखाने आए थे / बातों बातों मे उनसे बात हुयी कि साहब राजभर लोग आज से हजार वर्ष पूर्व #क्षत्रिय हुआ करते थे / उनकी आँखों मे चमक आ गई , बोले - कि डॉ साहब आप तों मेरे मन की बात कर रहे हैं / https://en.wikipedia.org/wiki/Rajbhar
 मैंने कहा कि अब आप लोग  किस caste मे आते है ? उन्होने कहा कि #विमुक्त_जाति / मैंने पूंछा कि ये किसमे आते हैं ? genral SC ST या OBC मे ? 
उन्होने कहा कि साहब किसी मे नहीं / मैंने कहा ऐसे कैसे ? 
तों उन्होने बताया कि Denotified Caste /

मैंने थोड़ा इस विषय पर अदध्ययन किया / अंग्रेजों ने जब भारत मे शासन शुरू किया तों पता चला कि उनके लूट के विरोध और भारत के उद्योगों को नष्ट करने के कारण जो लोग बेरोजगार हुये उनमे से कुछ लोग उनका #हिंसक विरोध करते थे / उनको चिन्हित करने के लिए अंग्रेज़  William Sleeman को ज़िम्मेदारी दी , जिसको  कालांतर मे कमिश्नर कि पदवी दी गई / उसने सबसे पहले एक खास समुदाय को जो इनका हिंसक विरोध करता था उसको #ठग के नाम से नामांकित किया और 1839 मे इस समुदाय के 3000 लोगों को पकड़ा , जिनमे से 466 को फांसी पर लटका दिया, 1564  को देशनिकाला या  कालापानी , और 933 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी / 1850 तक लगभग सभी ठगों को खत्म कर दिया गया / और इस कार्यप्रणाली से प्रोत्साहित होकर अंग्रेजों ने भारत के अन्य हिंसक विरोध करने वाले समुदायों के लिए एक कानून बनाने की योजना बनाई जिसको 1871मे  James Fitzjames Stephen) जिसने एक साल बाद  Indian Evidence Act 1872 बनाया था)  उसने Criminal Tribe Act का गठन किया / उसकी दलील थी कि - जिस तरह यहाँ बुनकर लोहार आदि पुश्तैनी पेशा है , उसी तरह अपराध करना भी एक पुश्तैनी पेशा है जो कि इनको अपने पूर्वजों से वंशानुगत रूप से प्राप्त होता है / अर्थात  इन समुदायों के लोग पैदायशी अपराधी होते है , और इसलिए इनको भी  ठगों की तरह खत्म नहीं किया जाए/  https://en.wikipedia.org/wiki/Criminal_Tribes_Act
कालांतर मे इस कानून को पूरे देश मे लागू किया गया , जिसमे चिन्हित लोगों को #बिना किसी अपराध  के और सबूत के , तथा बिना किसी  कानूनी कार्यवाही के कत्ल किया जाना एक आम बात बन गयी।

इतिहासकर #रांनारायन रावत के अनुसार शुरू मे इसमे सिर्फ जाटों ( ये भी भारत मे शासक / क्षत्रिय रह चुके थे ) को सम्मिलित किया गया परंतु बाद मे इसका विस्तार कर #अधिकतर_शूद्रों जैसे #चमार, सन्यासियों और पहाड़ी लोगों को शामिल कर लिया गया / बाद मे इस कानून के अंतर्गत इन पैदायशी अपराधियों मे  Bowreahs, Sonareahs, #Binds, Budducks, #Bedyas, #Domes, Dormas, Bembodyahs, Keechuks, Dasads, Koneriahs, Moosaheers, Rajwars, Gahsees, Banjors, Boayas, Dharees, Sowakhyas को भी शामिल कर एक तरह से इनके  सामाजिक वहिष्कार को प्रोत्साहित किया गया / शासन के अपराधी तों थे ही /
नोट :  MA Sherring के अनुसार बिन्द और मुशहर नमक के निर्माता थे जिस व्यापार पर अंग्रेजों ने 1780 मे ही एकाधिकार जमा कर उनको बेरोजगार कर दिया था / बेड़िया वस्तुओं के लोकल ट्रांसपोरटेर हुआ करते थे /
कालांतर मे  Criminal Tribes Act 1931के तहत सैकड़ों हिंदुओं को इस कानून के घेरे मे लाया गया / अकेले मद्रास मे 237 अपराधी जातियों को शामिल किया गया था /

आजादी के बाद इस कानून को 1949 मे खत्म कर 23 लाख लोगों को गैर अपराधी बनाया गया (  2,300,000 tribals being decriminalised) / 1952 मे नेहरू सरकार ने इस कानून को बादल कर --The Habitual Offenders Act (HOA) (1952) बनाया / और जो पहले से #अपराधीसमुदाय के एक बदनुमा #दाग लेकर जीने को बाध्य  थे, उनको   denotified tribes नाम देकर, एक और सामाजिक धब्बा उनकी पीठ पर छाप दिया -- अर्थात #विमुक्तजाति / इस आजाद भारत मे भी ढेर सारे विमुक्त जाति के लोग PASA ( Prevention of Anti - social Activity Act ) के अंतर्गत चिन्हित होते रहे / इन समुदायों के ज़्यादातर लोगो को  BPL की स्थिति मे होने के बावजूद इनको SC , ST या OBC के ग्रुप से अभी भी बाहर रखा गया है /

नेशनल ह्यूमन राइट कमिशन ने और UN ने इस कानून को केएचटीएम करने की शिफारिश की थी , क्योंकि इसमे ज़्यादातर नियम कानून Criminal Tribes Act से ही लिए गए हैं /  अभी इस कानून की वैधानिक स्थिति क्या है , ये तों मुझे नहीं पता लेकिन इस #विमुक्त_जाति मे 60 मिलियन यानि 6 करोड़  भारतीय लोग शामिल है /

राजभर भी उनमे से एक हैं /
ये मॉडर्न caste System का एक और पोल खोलता है कि इसका भारत से कोई संबंध नहीं है , ये ईसाई अंग्रेजों का भारत को एक उफार है /

विडम्बना ये है कि Annihilation of Caste की कसमें खाने वाले डॉ अंबेडकर को भी भारत के एक बड़े वर्ग पर ये  क्रूर अन्याय दिखाई न दिया ?? क्योंकि वे बौद्ध तों 1956 मे बने थे , और स्वतंत्र भारत मे ब्रिटिश कानून की नकल जवाहर लाल ने 1952 मे करके इन लोगों को #पैदायशी_अपराध  से 1952  मे #विमुक्त किया था / 

दो केस स्टडी :
1 - एक हैं पडरौना की रियासत , जिस राजपरिवार के पूर्वज  कन्नौज के राजा जयचंद हुआ करते थे / उनके वर्तमान वंशज मॉल साइथवार नाम के टाइटल से जाने जाते हैं / वर्तमान मे RPN Singh साहब पिछली काँग्रेस के सरकार मे मंत्री भी थे / उनके पिता भी मंत्री रह चुके हैं / बहुत ही सम्मानित परिवार है /
लेकिन आज वो OBC मे गिने जाते हैं /
 http://rajputms.in/rajputms/H_02.asp
2- दूसरे हैं गावलियर का सिंधिया परिवार / जिनकी गूगल पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार 2000 साल से विभिन्न राजघरानों से होते हुये आज भी राजनीति मे सक्रिय है / ये भी भारत के सबसे एक धनी राज परिवारों मे से हैं / वरली सी फेस पर अरबो की संपत्ति है पुश्तैनी /
ये भी OBC हैं /
 http://rajputms.in/rajputms/H_02.asp

आखिर इस रहस्य को कैसे सुलझाया जा सकता है ?
सिवा रिसले के #UnfailingLaw_Of_Caste के , इस गुलथी को सुलझा सके तो सुल्झाकर दिखाये
✍🏻 डॉ त्रिभुवन सिंह
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

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