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जापान ने चीन पर आक्रमण किया

इतिहास के पन्नो से 

जापान ने चीन पर आक्रमण किया


संकलन अश्विनीकुमार तिवारी 
1938 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया । जापन के विमान जब तक चीन पर बम वर्षा करते रहते ! और जापानी सैनिक गोली बारी करते ! कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चीनी जापान से मुकाबला करने की कोशिश कर रहा था । 
1938 मे चीन के पास डाक्टरो की टीम तक नहीं थी जो जापानी हमले में घायल सैनिकों की चिकित्सा कर सके ? 

कम्युनिस्ट जनरल Zhu De ने 1938 मे कांग्रेस के बड़े नेता जवाहर लाल नेहरू से अनुरोध किया कि " घायल चीनी सैनिकों की चिकित्सा में कुछ सहायता दल भेजे " 

चूंकि भारत उसे समय स्वतंत्र नहीं था और स्वतंत्रता के लिये संघर्ष कर रहा था ! ऐसे में सैद्धांतिक आधार पर संघर्षरत भारत , स्वतंत्रता के लिये  संघर्षरत दूसरे संघर्षरत देश को सहायता दल भेजने का अनुरोध स्वीकार किया ! 
1938 मे भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष सुभाषचंद्र बोस थे  ! 
नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय जनता से अपील किया कि चीन की सहायता के लिये भारतीय जनता आर्थिक व कार्मिक सहयोग दे ! 
इस अपील पर भारतीय जनता द्वारा चीन की सहायता के लिए चंदा दिया गया ! उस समय 22000 रुपये एकत्रित हुये ! और नेता जी की अपील पर पांच डाक्टर चीन को सहायता मिशन पर जाने के लिये तैयार हुये ! 
इन पांच डाक्टरो में नाम थे ..
Dr. M. Atal ..इलाहाबाद ( प्रयागराज से ) 
Dr. M. Cholkar     ( नागपुर से ) 
Dr. Dwarka Kotnis ( शोलापुर ,महाराष्ट्र से )
Dr. B.K. .Bashu ( कोलकाता से ) 
Dr. Debesh Mukharjee ( कोलकाता से ) 
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उस समय नेता जी सुबाष चंद्र बोस ने एक लेख भी लिखा जिसमें नेता जी ने चीन पर आक्रमण के लिए जापान की आलोचना भी किया !
 ( परंतु बाद में भारतीय स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ने के लिये नेता जी जर्मनी व जापान की सहायता लेना भी स्वीकार कर लिया था ) 

1939 मे ..भारतीय चिकित्सको का दल समुद्र के रास्ते चीन पहुंचा ! पहले वुहान पहुंचा फिर वहा से यूनान प्रांत पहुंचा जहां चीन की क्रांतिकारी सेना का बेस था ! 
कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ ज़ेदोंग , Zhu De सहित बड़े नेताओ ने इस दल का स्वागत किया ! 
और चिकित्सको का दल  कम्युनिस्ट पार्टी क्रांतिकारी सैनिकों की चिकित्सा में जुट गया । 

बाद में डाक्टर कोर्टनिस के अतिरिक्त अन्य चिकित्सक भारत वापस आ गये थे। परंतु डाक्टर कोटनिस चीन में ही रहे । डाक्टर कोटनिस चीन की एक नर्स से विवाह कर लिया और उससे एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम रखा गया #चिनहुआ  ।
डाक्टर कोटनिस चीन में 72 घंटे तक लगातार चीन के कम्युनिस्ट सैनिकों की चिकित्सा करते ! लगातार आपरेशन करते ! 
एक बार जापानी सैना ने डाक्टर कोटनिस को बंदी भी बना लिया था ! परंतु डाक्टर जापानी सैनिकों की कैद से बच गये ! 
लगातार काम करते करते ...डाक्टर कोटनिस स्वयं बीमार पड़ गये । उन्हें दौरे भी पड़ने लगे ! अंत में 1942 मे डाक्टर कोटनिस का चीन में ही देहांत हो गया ! और उन्हें चीन में ही दफनाया गया ! 
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डाक्टरो कोटनिस की मृत्यु के लगभग सात वर्ष बाद (1949 )  उनकी विधवा ने पुनः विवाह कर लिया चीन के ही किसी व्यक्ति से ! डाक्टर कोटनिस का पुत्र चिनहुअ या तिनहुआ मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था ..परंतु दुर्भाग्यवश 1967 से मे संभवतः चिकित्सीय लापरवाही के कारण उसकी मृत्यु हो गयी ! 
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भारतीय योगदान का प्रतिफल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने किस प्रकार दिया ..? 
1962 में ही ..जब भारत स्वतंत्र होकर अपने पुन:निर्माण का प्रयत्न कर रहा था ..तो चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया ! 
हमने सुना है कि इजराइल आज तक हाईफा मे भारतीय सैनिकों के योगदान का अहसान मानता हैं ..परंतु चीन ?? 
संभवतः चीन जिस विचारधारा को लेकर चल रहा है ..उसमे रिस्ते-नाते ..मानवीय संवेदना का कोई स्थान नहीं है..? 
 मानवता से परे ..रिस्तो को मान्यता तक न देने वाले अहसानफरामोस से देश से बातचीत से मामला सुलझ सकता हैं ?? 
शक्ति को संचित करते रहना ही ..एकमात्र विकल्प है ??
✍🏻 कुमार पवन

आर्थिक इतिहास में चीन और भारत

भारतीय इतिहास लेखन में मैक्स वेबर (1864-1920) और मार्क्स(1818-1883) का बहुत गहरा प्रभाव रहा है। भारत के इतिहास को लिखनेवाले अधिकतर इतिहासकार इनसे बहुत प्रभावित रहे हैं। इन दोनों पश्चिमी विद्वानों की विशिष्टता यह रही है कि अपने जीवन के कालखंड में ये दोनों भारत कभी नहीं आये और इनके समय में आज जैसी इन्टरनेट और अन्य सुविधाएँ भी नहीं थी। फिर भी इन दोनों विद्वानों ने भारत पर बहुत कुछ लिखा। मैक्स वेबर ने भारत और चीन के बारे में लिखा कि भारत और चीन का आर्थिक विकास इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि ये दोनों देश क्रमशः हिन्दू और बौद्ध मत को मानने वाले हैं और इनका हिन्दू और बौद्ध दर्शन इनके आर्थिक विकास में बाधक है।
बहरहाल, बेल्जियम के एक अर्थशास्त्राी पॉल बैरोक ने अपने आर्थिक इतिहास के अपने शोध में बताया कि 1750 में विश्व के सकल घरेलु उत्पाद में भारत का भाग 24.5 प्रतिशत था और चीन का 33 प्रतिशत। और उस समय इंगलैंड और अमेरिका का संयुक्त सकल घरेलु उत्पादन विश्व के सम्पूर्ण सकल घरेलु उत्पाद के केवल 2 प्रतिशत था। बैरोक के अनुसार वर्ष 1800 में भारत का भाग 20 प्रतिशत तथा वर्ष 1830 में 18 प्रतिशत था। एक अन्य आर्थिक इतिहासकार अंगस मेडीसन ने दुनिया के पिछले 2000 वर्ष के आर्थिक इतिहास पर किए गए अपने शोध में जो आंकड़े प्रस्तुत किए, उसने पुनः सम्पूर्ण विश्व को चौंका दिया। अंगस मेडीसन के अनुसार पहली शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक केवल एक बार 17 शताब्दी को छोड़कर भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रहा है तथा चीन दूसरे स्थान पर रहा है।
पश्चिमी शोधों में दिए गए इन आंकड़ों को थोड़ा ध्यान से देखे जाने की आवश्यकता है। हमें चीन संबंधी विवरणों को पढ़ते हुए यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यूरोप और अमेरिका की दृष्टि भारत के प्रति एक उपनिवेश वाली और इस कारण हेय रही है। जबकि चीन के प्रति उनका प्रेम मार्काे पोलो के समय से चला आ रहा है। अपने इस प्रेम में वे चीन के प्रति पक्षपात बरतते हैं। यही कारण है कि चीन पर भारत के सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभावों की उपेक्षा कर दी जाती है और जबरन चीन को भारत से आगे दिखाने के प्रयास किए जाते हैं। इसका एक उदाहरण उपरोक्त आंकड़े भी हैं। अगर भारतीय स्रोतों को देखें तो हम पाते हैं की जो आंकड़े भारत और चीन के सन्दर्भ में बैरोक और मेडीसन ने दिए हैं इसमें बहुत अंतर दिखने की संभावना दिखने लगती है। समझने की बात यह है कि ये आंकड़े जिस काल के हैं, उन कालखंडों में चीन का विस्तार आज की तुलना में काफी छोटा और भारत का काफी बड़ा रहा है। इस कारण इन आंकड़ों में काफी फेरबदल किए जाने की संभावना शेष रह जाती है।
देखने की बात यह है कि आज जबकि चीन अपने विस्तारवादी स्वाभाव के कारण अपने मूल क्षेत्रा से कई गुना ज्यादा बढ़ गया है और भारत अपने मूल क्षेत्रा से काफी कम में सिमटकर रह गया है इसके बावजूद भी भारत में कृषियोग्य भूमि चीन की अपेक्षा बहुत अधिक है अगर हम बीसवी शताब्दी के पूर्वार्ध तक की भी बात करें तो यह अंतर बहुत बड़ा हो जाता है। वस्त्रा उद्योग की बात करें तो 19वी सदी के पूर्वार्ध तक वस्त्रा उत्पादन और वस्त्रा उत्पादन की तकनीक विश्व में सर्वाेत्तम थी। भारतीय वस्त्रों का शताब्दियों से विश्व के अनेक देशों में निर्यात होता रहा।
रोमन इतिहासकार एरियन के अनुसार रोम में भारतीय वस्त्रों की मांग इतनी ज्यादा थी कि लोग भारतीय वस्त्रों को उनके वजन के बराबर सोना देकर खरीदते थे। एक अन्य रोमन विद्वान् प्लिनी के अनुसार भारतीय वस्त्रों के प्रति रोमन महिलाओं और नागरिकों के जूनून के कारण सारा सोना भारत को जा रहा है। यदि चीन के रेशम की इतनी मांग हुई होती तो इन विदेशी वर्णनों में भारत की बजाय चीन का उल्लेख होता। परंतु मार्काे पोलो के पहले के विवरणों में चीन जिसे वे कैथी कहा करते थे, का वर्णन न्यूनतम ही है।
इसी प्रकार इस कालखण्ड के अलग-अलग समय के दोनों देशों के नक्शों को देखें तो यह और स्पष्ट हो जाता है। भारतीय समाज की संरचना आर्थिक उत्पादन की दृष्टि में पूरे विश्व में अद्वितीय रही है। भारत में आर्थिक चिंतन की बहुत प्राचीन परंपरा रही है। यहां का स्पष्ट और व्यावहारिक आर्थिक सिद्धांत सम्पूर्ण विश्व में अद्वितीय रहा है। परंतु चीन में आर्थिक चिंतन की ऐसी कोई पुरानी परंपरा नहीं प्राप्त होती। इससे भी साबित होता है कि चीन आर्थिक दृष्टि से भी भारत का ही अनुयायी रहा है।
✍🏻अजित कुमार
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