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"घुघुआ माना उपजे धाना"(मगही कविता )

"घुघुआ माना उपजे धाना"(मगही कविता )
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मोबाइल के जुग अइसन हे
देख देख मन दुखी जमाना,
ज्ञान बढ़ल हे देश बढ़ल हे
घुघुवा माना उपजे धाना।


आॅन लाइन के भेल पढ़ाई
लइकन दिन भर करे लड़ाई,
बाप मतारी के लाचारी
चार बुृतरुअन के भरपाई।

पढुआ के तो पौ बारह हे
गोबर गणेश ला हे अँगड़ाई,
अपन झुंड में खुश नालायक
पढ़े से मुक्ति माई गे माई।

व्याप रहल हे चीनी कीड़ा
कब जायेत ना कोई ठिकाना,
बनल अखाड़ा घर दुआर सब
बात बात में शर संधाना।
रजनीकांत।
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