हिन्दू
शास्त्रों के अनुसार अनिश्चित भविष्य के बीच एक निश्चित भविष्य की रेखा|
संकलन डॉ राकेश दत्त मिश्र
हिन्दू
शास्त्रों के अनुसार अनिश्चित भविष्य के बीच एक निश्चित या तय भविष्य की रेखा
चलती रहती है अर्थात भविष्य में कुछ घटनाओं का घटना तय है तो कुछ के बारे में कुछ
भी नहीं कहा जाता सकता। भविष्य का निर्माण एक व्यक्ति, समूह या संगठन पर ही निर्भर नहीं है बल्कि इसमें प्राकृतिक तत्वों का भी
योगदान रहता है। संभावनाएं अनंत हैं, लेकिन कुछ संभावनाओं के
बारे में पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है।
हिन्दू
पुराणों में कलयुग के वर्णन के साथ ही वर्तमान युग के बारे में भी विस्तार से
मिलता है। जहां तक भविष्यवाणी का संबंध है जो कहा जाता है कि भविष्य पुराण में
वर्तमान युग के बारे में भविष्यवाणियां मिलती है। भविष्य पुराण में भविष्य में
होने वाली घटनाओं का वर्णन है। भविष्य पुराण के अनुसार इसके श्लोकों की संख्या 50,000 के लगभग होनी चाहिए, परंतु वर्तमान में कुल 14,000
श्लोक ही उपलब्ध हैं।
भारतीय
प्राच्य विद्या के विद्वानों के अनुसार भविष्य पुराण में मूलतः पचास हजार श्लोक
विद्यमान थे,
परन्तु श्रव्य परम्परा पर निर्भरता और अभिलेखों के लगातार
विनष्टीकरण के परिणामस्वरूप वर्तमान में केवल 129 अध्याय और
अठ्ठाइस हजार श्लोक ही उपलब्ध रह गए हैं। स्पष्ट है कि अभी भी दुनिया उन अद्भुत
एवं विलक्षण घटनाओं और ज्ञान से पूर्णतया अनभिज्ञ हैं, जो इस
पुराण के विलुप्त आधे भाग में वर्णित रही होंगी।
यह पुराण
ब्रह्म,
मध्यम, प्रतिसर्ग तथा उत्तर- इन 4 प्रमुख पर्वों में विभक्त है। ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन प्रतिसर्ग पर्व
में वर्णित है। यह पुराण भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का आधार है।
इसके प्रतिसर्ग पर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खंड में इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री
विद्यमान है। इतिहास लेखकों ने प्राय: इसी का आधार लिया है।
भविष्य
पुराण में भारत के राजवंशों और भारत पर शासन करने वाले विदेशियों के बारे में
स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इस पुराण के संबंध में कहा जाता है कि कलियुगीन राजाओं की
पुराणों में प्राप्त बहुतसारी जानकारी सर्वप्रथम ‘भविष्य पुराण ’ में ग्रंथित की
गयी थी,
जिसकी रचना दूसरी शताब्दी के पश्चात् मगध देश में पाली अथवा
अर्धमागधी भाषा में, एवं खरोष्ट्री लिपि में दी गयी थी।
भविष्य
पुराण के इस सर्वप्रथम संस्करण की रचना आंध्र राजा शातकर्णि के राज्यकाल में
(द्वितीय शताब्दी का अंत) की गयी थी। भविष्यपुराण के इस आद्य संस्करण में तत्कालीन
सूत एवं मगध लोगों में प्रचलित राजवंशों के सारे इतिहास की जानकारी ग्रथित की गयी
थी। हालांकि यह पुराण 5
हजार वर्ष पूर्व ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखे जाने का उल्लेख मिलता है
जिसका समय समय पर नवीनतम संस्करण निकलते रहे हैं।
ईसा मसीह
के बारे में :इस पुराण में ईसा मसीह का जन्म, उनकी हिमालय यात्रा
और तत्कालीन सम्राट शालिवाहन से भेंट के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारियां दी
गई हैं, जिसे आधुनिक रिसर्च के बाद प्रमाणित भी किया जा चुका
है।
भविष्य
पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के तृतीय खंड के द्वितीय अध्याय के श्लोक में तक ऐसा ही
उल्लेख है जिसमें ईसा मसीह के लंबे समय तक भारत के उत्तराखंड में निवास करने और
तपस्यारत रहने का वर्णन है। उस समय उत्तरी भारत में शालिवाहन का शासन था। एक दिन
वे हिमालय गए जहां लद्दाख की ऊंची पहाड़ियों पर उन्होंने एक गौरवर्ण दिव्य पुरुष
को ध्यानमग्न अवस्था में तपस्या करते हुए देखा। समीप जाकर उन्होंने उनसे पूछा-आपका
नाम क्या है और आप कहां से आए हैं?
उस पुरुष
ने उत्तर दिया- ‘मेरा नाम ईसा मसीह है। कुंवारी मां के गर्भ से उत्पन्न हुआ हूं।
विदेश से आया हूं जहां बुराइयों का अंत नहीं है। उन आस्थाहीनों के बीच मैं मसीहा
के रूप में प्रकट हुआ हूं। जैसे कि ‘म्लेच्छदेश मसीहो हं समागत।।..... ईसा मसीह
इति च ममनाम प्रतिष्ठितम् ।।
कलयुग का
वर्णन : -----
''रविवारे च
सण्डे च फाल्गुनी चैव फरवरी। षष्टीश्च सिस्कटी ज्ञेया तदुदाहार वृद्धिश्म्।।''
अर्थात भविष्य में अर्थात आंग्ल युग में जब देववाणी संस्कृत भाषा
लोपित हो जाएगी, तब रविवार को ‘सण्डे’, फाल्गुन महीने को ‘फरवरी’ और षष्टी को सिक्स कहा जाएगा।
भविष्यपुराण
में बताया गया है कि कलयुग में लोगों के दिलों में छल होगा और अपनों के लिए भी
लोगों के दिलों में जहर भरा होगा। अपनों का भी बुरा करने से कलयुग के लोग घबराया
नहीं करेंगे। दूसरों का भी हक़ खाने की आदत लोगों को हो जाएगी और चारों तरफ लूट ही
लूट होगी।
कलयुग में
हर व्यक्ति को किसी न किसी चीज का अहंकार होगा और वह खुद को इसलिए दूसरों से ऊपर
समझने का काम करेगा। अहंकार की वजह से कलयुग में टकराव बढ़ जाएगा और यही वजह इन्सान
के अंत की भी वजह रहेगी। भविष्यपुराण में साफ बताया गया है कि कलयुग में पैसा ही
सबका बाप होगा। पैसे की चाहत इतनी मनुष्य को हो जाएगी कि वह पैसे के लिए किसी की
जान तक ले लिया करेगा।
ब्रह्मा जी
ने कहा-हे नारद! भयंकर कलियुग के आने पर मनुष्य का आचरण दुष्ट हो जाएगा और योगी भी
दुष्ट चित्त वाले होंगे। संसार में परस्पर विरोध फैल जाएगा। द्विज (ब्राह्मण)
दुष्ट कर्म करने वाले होंगे और विशेषकर राजाओं में चरित्रहीनता आ जाएगी। देश-देश
और गांव-गांव में कष्ट बढ़ जाएंगे। साधू लोग दुःखी होंगे। अपने धर्म को छोड़कर लोग
दूसरे धर्म का आश्रय लेंगे। देवताओं का देवत्व भी नष्ट हो जाएगा और उनका आशीर्वाद
भी नहीं रहेगा। मनुष्यों की बुद्धि धर्म से विपरीत हो जाएगी और पृथ्वी पर मलेच्छों
के राज्य का विस्तार हो जाएगा। मलेच्छ का अर्थ होता है दुष्ट, नीच और अनार्य।
जब हिन्दू
तथा मुसलमानों में परस्पर विरोध होगा और औरंगजेब का राज्य होगा, तब विक्रम सम्वत् १७३८ का समय होगा। उस समय अक्षर ब्रह्म से भी परे
सच्चिदानन्द परब्रह्म की शक्ति भारतवर्ष में इन्द्रावती आत्मा के अन्दर
विजयाभिनन्द बुद्ध निष्कलंक स्वरूप में प्रकट होगी। वह चित्रकूट के रमणीय वन के
क्षेत्र (पद्मावतीपुरी पन्ना) में प्रकट होंगे। वे वर्णाश्रम धर्म (निजानन्द) की
रक्षा तथा मंदिरों की स्थापना कर संसार को प्रसन्न करेंगे। वे सबकी आत्मा, विश्व ज्योति पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं। म्लेच्छों का नाश करने वाले
बुद्ध ही होंगे और श्री विजयाभिनन्द नाम से संसार में प्रसिद्ध होंगे। (उ.ख.अ. ७२
ब्रह्म प्र.)
वह
परब्रह्म पुरुष निष्कलंक दिव्य घोड़े पर (श्री इन्द्रावती जी की आत्मा पर) बैठकर, निज बुद्धि की ज्ञान रूपी तलवार से इश्क बन्दगी रूपी कवच और सत्य रूपी ढाल
से युक्त होकर, अज्ञान रूपी म्लेच्छों के अहंकार को मारकर
सबको जागृत बुद्धि का ज्ञान देकर अखण्ड करेंगे। (प्र. ३ ब. २६ श्लोक १)
नष्ट हो
जाएगी इस्लाम की कट्टरपंथी धारा : - इसी पुराण का निम्न श्लोक हम यहां प्रस्तुत कर
रहे हैं,
जो प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है। इस ग्रंथ के श्लोक को हम यहां
यथावत उल्लेख कर रहे हैं लेकिन हम यह दावा नहीं करते कि संस्कृत के इस श्लोक की
व्याख्या वहीं है तो कि श्लोक में है।
भविष्य
पुराण पर्व 3,
खंड 3, अध्याय 3 और
मंत्र 5 से 8 तक इस बारे में उल्लेख
मिलता है। भविष्य पुराण, द्वितिय खंड, प्रतिसर्ग
अध्याय 3, अनुवादक पंडित बाबूराव उपाध्याय, मुद्रक मनोज आफसेट 255 चक जीरो रोड़ इलाहाबाद और
प्रकाशक हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, 12 सम्मेलन मार्ग
इलाहाबाद से प्रकाशित पुस्तक के पृष्ठ नंबर 258 पर इसका
जिक्र है।
लिंड्गच्छेदी
शिखाहीन: श्मश्रुधारी सदूषक:।
उच्चालापी
सर्वभक्षी भविष्यति जनोमम।।25।।
विना कौलं
च पश्वस्तेषां भक्ष्या मतामम।
मुसलेनैव
संस्कार: कुशैरिव भविष्यति ।।26।।
तस्मान्मुसलवन्तो
हि जातयो धर्मदूषका:।
इति
पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृत:।। 27।। : (भविष्य पुराण
पर्व 3, खंड 3, अध्याय 1, श्लोक 25, 26, 27)
व्याख्या
: रेगिस्तान की धरती पर एक 'पिशाच' जन्म
लेगा जिसका नाम महामद होगा, वो एक ऐसे धर्म की नींव रखेगा
जिसके कारण मानव जाति त्राहिमाम् कर उठेगी। वो असुर कुल सभी मानवों को समाप्त करने
की चेष्टा करेगा। उस धर्म के लोग अपने लिंग के अग्रभाग को जन्म लेते ही काटेंगे,
उनकी शिखा (चोटी) नहीं होगी, वो दाढ़ी रखेंगे,
पर मूंछ नहीं रखेंगे। वो बहुत शोर करेंगे और मानव जाति का नाश करने
की चेष्टा करेंगे। राक्षस जाति को बढ़ावा देंगे एवं वे अपने को 'मुसलमान' कहेंगे और ये असुर धर्म कालांतर में स्वत:
समाप्त हो जाएगा।
इस पुराण
में द्वापर और कलियुग के राजा तथा उनकी भाषाओं के साथ-साथ विक्रम-बेताल तथा बेताल
पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्यनारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गई है। इस
पुराण में ऐतिहासिक व आधुनिक घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसमें आल्हा-उदल के
इतिहास का प्रसिद्ध आख्यान इसी पुराण के आधार पर प्रचलित है।
इस पुराण
में नंद वंश,
मौर्य वंश एवं शंकराचार्य आदि के साथ-साथ इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन
आदि हिन्दू और बौद्ध राजाओं तथा चौहान एवं परमार वंश के राजाओं तक का वर्णन
प्राप्त होता है। इसमें तैमूर, बाबर, हुमायूं,
अकबर, औरंगजेब, पृथ्वीराज
चौहान तथा छत्रपति शिवाजी के बारे में भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है। श्रीमद्भागवत
पुराण के द्वादश स्कंध के प्रथम अध्याय में भी वंशों का वर्णन मिलता है।
सन् 1857 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के भारत की साम्राज्ञी बनने और आंग्ल
भाषा के प्रसार से भारतीय भाषा संस्कृत के विलुप्त होने की भविष्यवाणी भी इस ग्रंथ
में स्पष्ट रूप से की गई है।
भविष्य
पुराण में जिक्र आता है कि एक समय जब हिन्दुस्तान की सीमा हिंदकुश पर्वत तक थी तो
वहां के प्रसिद्ध शिव मंदिर था। ऐसा कहा जाता है कि एक बार कुछ लोग हिन्दकुश पर्वत
पर शिव के दर्शन करने गए थे तो भगवान शिव ने इन लोगों को बताया था कि अब आप सभी
यहां से लौट जाओ। मैं भी इस स्थान को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ रहा हूं। जाओ और सभी
को बताओ कि अब यहां किसी को नहीं आना है। थोड़े दिनों में प्रलय की शुरुआत यहां
होने वाली है।
कहा जाता
है कि इसके बाद खलिफाओं के आक्रमण ने अफगान और हिन्दुकुश पर्वतमाला के पास रहने
वाले 15
लाख हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया था। अफगान इतिहासकार
खोण्डामिर के अनुसार यहां पर कई आक्रमणों के दौरान 15 लाख
हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया गया था। इसी के कारण यहां के पर्वत श्रेणी को
हिन्दुकुश नाम दिया गया, जिसका अर्थ है 'हिंदुओं का वध।' हालांकि कुछ संत लोग मानते हैं कि
भगवान जब किसी स्थान से नाराज होते हैं तो वहां प्राकृतिक प्रलय आने लगती हैं। आज
हिंद्कुश पर्वत और आसपास का क्षेत्र भूकंप के आने का केंद्र बना हुआ है।
''अपनी तुच्छ
बुद्धि को ही शाश्वत समझकर कुछ मूर्ख ईश्वर की तथा धर्मग्रंथों की प्रामाणिकता
मांगने का दुस्साहस करेंगे इसका अर्थ है उनके पाप जोर मार रहे हैं।''
पुराणों
में भारत में आज तक होने वाले सभी शासकों की वंशावली का उल्लेख मिलता है। पुराणकार
पुराणों की भविष्यवाणियों का अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। यहां प्रस्तुत हैं भागवत
पुराण में दर्ज भविष्यवाणी के अंश।
''ज्यों-ज्यों
घोर कलयुग आता जाएगा त्यों-त्यों सौराष्ट्र, अवंति, अधीर, शूर, अर्बुद और मालव देश
के ब्राह्मणगण संस्कारशून्य हो जाएंगे तथा राजा लोग भी शूद्रतुल्य हो जाएंगे।''
यहां शूद्र
का मतलब उस आचरण से है,
जो वेद विरुद्ध है। मांस, मदिरा और संभोगादि
प्रवृत्ति में ही सदा रत रहने वाले राक्षसधर्मी को शूद्र कहा गया है। जो ब्रह्म को
मानने वाले हैं वही ब्राह्मण है। आज की जनता ब्रह्म को छोड़कर सभी को पूजने लगी
है। जब सभी वेदों को छोड़कर संस्कारशून्य हो जाएंगे तब...
''सिंधुतट,
चंद्रभाग का तटवर्ती प्रदेश, कौन्तीपुरी और
कश्मीर मंडल पर प्राय: शूद्रों का संस्कार ब्रह्मतेज से हीन नाममात्र के द्विजों
का और म्लेच्छों का राज होगा। सबके सब राजा (राजनेता) आचार-विचार में म्लेच्छप्राय
होंगे। वे सब एक ही समय में भिन्न-भिन्न प्रांतों में राज करेंगे।''
आप जानते
हैं कि सिंधु के ज्यादातर तटवर्ती इलाके अब पाकिस्तान का हिस्सा बन गए हैं। कुछ
कश्मीर में हैं,
जहां नाममात्र के द्विज अर्थात ब्राह्मण हैं। इन सभी (म्लेच्छों) के
बारे में पुराणों में लिखा है कि... ''ये सबके सब परले सिरे
के झूठे, अधार्मिक और स्वल्प दान करने वाले होंगे। छोटी
बातों को लेकर ही ये क्रोध के मारे आग-बबूला हो जाएंगे।''
अब आगे
पढ़िए कश्मीर में ब्राह्मणों के साथ जो हुआ, ''ये दुष्ट लोग
स्त्री, बच्चों, गौओं और ब्राह्मणों को
मारने में भी नहीं हिचकेंगे। दूसरे की स्त्री और धन हथिया लेने में ये सदा उत्सुक
रहेंगे। न तो इन्हें बढ़ते देर लगेगी और न घटते। इनकी शक्ति और आयु थोड़ी होगी।
राजा के वेश में ये म्लेच्छ ही होंगे।''
पूरे देश
की यही हालत है अब राजा (राजनेता) न तो क्षत्रित्व धारण करने वाले रहे और न ही
ब्राह्मणत्व। राजधर्म तो लगभग समाप्त ही हो गया है तो ऐसी स्थिति में, ''वे लूट-खसोटकर अपनी प्रजा का खून चूसेंगे। जब ऐसा शासन होगा तो देश की
प्रजा में भी वैसा ही स्वभाव, आचरण, भाषण
की वृद्धि हो जाएगी। राजा लोग तो उनका शोषण करेंगे ही, आपस
में वे भी एक-दूसरे को उत्पीड़ित करेंगे और अंतत: सबके सब नष्ट हो जाएंगे।''
भागवत
पुराण (अध्याय 'कलयुग की वंशावली' से अंश)
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