भारत
के मन्दिर मार्तण्ड सूर्य मंदिर,
कश्मीर
संकलन
नीरज पाठक
भारत
के मन्दिर मार्तण्ड सूर्य मंदिर,
कश्मीर
संकलन
नीरज पाठक
भारत में ही नहीं सारे विश्व में भी इस्लाम को मानने वाले लुटेरे
बादशाह , सुल्तान या आक्रमणकारी जहाँ जहाँ भी गए , वहाँ – वहाँ ही उन्होंने स्थानीय लोगों के धार्मिक
स्थलों का विध्वंस करना अपनी प्राथमिकता में सम्मिलित किया । इसका कारण केवल एक ही
था कि इस्लाम को मानने वाले लोग पहले दिन से ही सारे संसार को इस्लामिक झंडे के
नीचे ले आना चाहते थे । दु:ख की बात यह है कि इस मजहब को मानने वाले लोगों का यह
प्रयास आज भी भी चल रहा है । वर्तमान संसार में बढ़ रहे कलह और क्लेश का एक प्रमुख
कारण इस्लाम के मानने वाले लोगों की ऐसी सोच भी है ।
धार्मिक स्थलों के बारे में इस्लाम की सोच पर यदि विचार किया जाए
तो इतिहास का यह एक कुख्यात तथ्य है कि यहाँ पर एक राम मंदिर नहीं अपितु भारत के
लोगों की धार्मिक आस्था और विश्वास के प्रतीक अनेकों राम मंदिरों को इस्लाम के
लुटेरे आक्रांताओं के द्वारा समय-समय पर तोड़ा गया है । निश्चित रूप से इन
मन्दिरों की सुरक्षा के लिए भारत के लोगों ने अनगिनत बलिदान भी किये ।जिन्हें आज
के इतिहास में कोई स्थान नहीं मिलता । इतिहास के अनेकों स्थलों पर ऐसा आभास कराया
जाता है कि जैसे अतीत में कुछ भी नहीं हुआ और यदि कुछ हुआ है तो उसे साम्प्रदायिक
सद्भाव के नाम पर भूल जाओ। यह कोई बुरी बात भी नहीं है । अतीत की कड़वी बातों को
भूलना भी समय के अनुसार उचित ही होता है । जहाँ दो सम्प्रदाय परस्पर मिलकर चलने के
लिए संकल्पबद्ध हों , वहाँ तो यह और भी आवश्यक हो जाता है कि लोग पिछली
बातों को भूलें और आगे की स्वर्णिम योजनाओं पर काम करना सीखें ।
परन्तु जब अतीत में अपराधी रहा कोई सम्प्रदाय आज भी अपनी नीतियों
को बदलने को तैयार ना हो तो क्षति उठा रहे सम्प्रदाय को यह सोचना ही चाहिए कि यदि
वह सचेत , जागरूक और सावधान नहीं हुआ तो उसके अस्तित्व को
क्षति पहुंचाने वाला सम्प्रदाय उसे मिटा कर रख देगा । इस दृष्टिकोण से इतिहास को
वास्तविक तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया जाना और वास्तविक तथ्यों के साथ ही पढ़ा जाना
आवश्यक होता है। साम्प्रदायिक सद्भाव किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए बहुत आवश्यक
होता है परन्तु यह तभी बन पाता है जब प्रत्येक सम्प्रदाय सद्भाव की स्थापना के
प्रति अपने समर्पण को पूर्ण निष्ठा के साथ निभाने के लिए वचनबद्ध हो।
भारत में जिन प्रमुख मन्दिरों को लूट – लूटकर
और फिर वहाँ अपने अत्याचारों का दमन चक्र चलाकर उन्हें पूर्णतया विनष्ट करने का
पाप विदेशी आक्रांताओं ने किया है , उनमें कश्मीर के अनंतनाग
का सूर्य मन्दिर या मार्तण्ड मन्दिर सर्व प्रमुख है।कश्मीर में स्थित पहलगाम और अनंतनाग में आने वाले पर्यटक इस मन्दिर
की मनोहारी वास्तुकला को देख कर आज भी दाँतों तले उंगली दबा जाते हैं। आजादी के
बाद कश्मीर में रहे मुस्लिम मुख्यमंत्रियों की उपेक्षापूर्ण नीतियों के कारण
दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग और पहलगाम के रास्ते में स्थित मार्तंड सूर्य मन्दिर आज
खण्डहर में परिवर्तित हो चुका है। इस प्रान्त को देश के पहले प्रधानमंत्री और
कांग्रेस के सबसे बड़े नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने चहेते शेख अब्दुल्लाह की
गोद में एक उपहार के रूप में डाल दिया था । दूसरे शब्दों में उनकी इस प्रकार की
हिन्दू विरोधी नीति को ऐसे भी कहा जा सकता है कि उन्होंने हिन्दुओं के धर्म स्थलों
को बर्बाद या आबाद करने का काम उन्हीं लोगों के हाथों में दे दिया था जिनके
पूर्वजों ने या जिनकी विचारधारा में विश्वास रखने वाले उनके आकाओं ने कभी धरती के
इस स्वर्ग पर खड़े हिन्दू मन्दिरों का विनाश किया था । पंडित जवाहरलाल नेहरु स्वयं
भी हिन्दू मन्दिरों के प्रति कोई अधिक लगाव नहीं रखते थे । धर्मनिरपेक्षता की
बीमारी पंडित जवाहरलाल नेहरू को सबसे अधिक थी । यही कारण था कि वह हिन्दू धर्म
स्थलों से लगभग घृणा करते थे। अतः शेख अब्दुल्लाह जैसे लोग हिन्दू धर्म स्थलों के
प्रति क्या नीति अपनाएंगे ? – इस पर नेहरूजी को कुछ भी सोचने
की आवश्यकता नहीं थी।
7वीं से लेकर 16वीं सदी तक लगातार हजारों
हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को तोड़ा और लूटा गया। उनमें
से कुछ ऐसे थे, जो कि विशालतम होने के साथ ही भारतीय अस्मिता,
पहचान और सम्मान से जुड़े थे।
कभी भारत की आन , बान , शान
और गौरव के प्रतीक इस ऐतिहासिक और विशालकाय मार्तण्ड सूर्य मंदिर को मुस्लिम शासक
सिकंदर बुतशिकन ने तुड़वाया था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इस मंदिर को
कर्कोटा समुदाय के राजा ललितादित्य मुक्तिपीड़ ने 725-61 ईस्वी
में निर्मित करवाया था।
ललितादित्य मुक्तापीड़ नाम का यह हिन्दू सम्राट अपने गौरवपूर्ण
ऐतिहासिक काल के लिए इतिहास में जाना जाता है।
मार्तंड सूर्य मन्दिर का निर्माण मध्यकालीन युग में 7वीं से 8वीं शताब्दी के दौरान सूर्य राजवंश के राजा
ललितादित्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मार्तण्ड सूर्य मन्दिर दक्षिण कश्मीर
भाग में स्थित छोटे से शहर अनंतनाग से 60 किमी की दूरी पर
स्थित एक पठार के ऊपर स्थित है। वास्तव में यह मन्दिर भारत की एक ऐतिहासिक विरासत
या धरोहर है। जिसे देखकर भारत की स्थापत्य कला की उत्कृष्टता का अनुमान लगाया जा
सकता है । इसमें 84 स्तंभ हैं जो नियमित अन्तराल पर रखे गए
हैं।
मार्तण्ड सूर्य मन्दिर के निर्माण में पूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया गया है । यदि इस मन्दिर का आप सूक्ष्मता से अवलोकन करेंगे तो पता चलता है कि इसका आंगन 220 फुट x 142 फुट है। यह मन्दिर 60 फुट लम्बा और 38 फुट चौड़ा था। इसके चतुर्दिक लगभग 80 प्रकोष्ठों के अवशेष आज भी विद्यमान हैं। इस मन्दिर के पूर्वी किनारे पर मुख्य प्रवेश द्वार का मंडप है। इस मंडप के बनावट और सौंदर्य को विदेशी लोगों ने भी चोरी किया है अर्थात इसकी नकल अपने यहाँ के धर्म स्थलों या ऐतिहासिक भवनों के निर्माण में की है। आप कभी इतिहास में इस बात से भ्रमित ना हों कि हमारे अमुक मन्दिर और यूरोप के या अमेरिका या एशिया के अमुक देश के धर्म स्थलों की बनावट एक जैसी है और हमारे इस मन्दिर पर अमुक देश की स्थापत्य कला का प्रभाव पड़ा है । इस प्रकार के भ्रामक तथ्य भारत से द्वेष रखने वाले इतिहासकारों ने जानबूझकर हमारे इतिहास में डाल दिये हैं । इस भ्रामक तथ्य के स्थान पर आप सदा यह पढ़ने व समझने का प्रयास करें कि भारत की इस स्थापत्य कला का अमुक – अमुक देशों के भवनों या धर्म स्थलों पर भी प्रभाव पड़ा है।
यह मन्दिर हिन्दू राजाओं की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस
मन्दिर को बनाने के लिए चूने के पत्थर की चौकोर ईंटों का उपयोग किया गया है।
आप मन्दिर घूमते हुए एक सरोवर को भी देख सकते हैं, जिसमें आज भी रंग बिरंगी मछलियां तैरती हुई दिखाई पड़ती हैं।
भारत में जब 7वीं सदी के प्रारंभ में मुस्लिम आक्रांताओं के
आक्रमण प्रारम्भ हुए तो उन्होंने पहले दिन से ही हिंदू धर्म स्थलों को तोड़ने ,
लूटने और वहाँ पर यदि संभव हो तो अपना धर्म स्थल खड़ा करने की नीति
पर काम करना आरम्भ किया। भारत में अपना शासन स्थापित करना इन मुस्लिम
आक्रमणकारियों का दूसरा उद्देश्य था । उनकी प्राथमिकता भारत के धर्म को नष्ट कर
लोगों को इस्लाम के झंडे के नीचे ले आना था । जब हम ऐसा कह रहे हैं तो कई लोगों को
यह भ्रांति भी हो सकती है कि यदि इस्लाम के आक्रमणकारी इसी उद्देश्य को लेकर भारत
आए थे कि उन्हें यहाँ के लोगों का धर्मांतरण करना है तो भारत में आज भी हिन्दू ही
क्यों अधिक हैं ? ऐसी भ्रांति में जीने वाले लोगों को यह
समझना चाहिए कि वर्तमान भारत तो सातवीं शताब्दी के भारत की अपेक्षा एक तिहाई से भी
कम है। उस समय के भारत में ईरान , अफगानिस्तान , पाकिस्तान , बांग्लादेश , वर्मा
, नेपाल , तिब्बत का बहुत बड़ा क्षेत्र
व श्रीलंका आदि सम्मिलित हुआ करते थे। धर्मांतरण करते – करते
इस्लाम ने भारत का आधे से अधिक भूभाग छीन लिया है । वर्तमान भारत जैसे दो भारत
भारत से छीने जा चुके हैं। वर्तमान इतिहास में इस दु:खद तथ्य का कोई उल्लेख नहीं
किया जाता।
मुस्लिम इतिहासकार हसन ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ कश्मीर’ में कश्मीरी जनता का धर्मांतरण
किए जाने का उल्लेख इस प्रकार किया है, ‘सुल्तान बुतशिकन
(सन् 1393) ने पंडितों को सबसे ज्यादा दबाया। उसने 3 खिर्बार (7 मन) जनेऊ को इकट्ठा किया था , जिसका मतलब है कि इतने पंडितों ने धर्म परिवर्तन कर लिया। हजरत अमीर कबीर
(तत्कालीन धार्मिक नेता) ने ये सब अपनी आंखों से देखा। …उसने
मन्दिर नष्ट किया और बेरहमी से कत्लेआम किया। -व्यथित जम्मू-कश्मीर, लेखक नरेन्द्र सहगल।
इस उल्लेख से पता चलता है कि जिस समय इस मंदिर को तोड़ा गया था उस
समय हमारे अनेकों धर्म रक्षक लोगों ने अपना बलिदान दिया था। सात मन जनेऊ उन लोगों
के उतारे गए जिन्हें या तो काट दिया गया था या उनका धर्म परिवर्तित कर उन्हें
मुस्लिम बना लिया गया था। आज यह मन्दिर अपने दुर्भाग्य पर रो रहा है। जम्मू कश्मीर
की अभी तक की सरकारों ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया कि भारत की ऐतिहासिक विरासत के
प्रतीक इस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया जाए । अब जबकि जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने पर परिस्थितियों में आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है , तब केंद्र सरकार को इस मन्दिर की ऐतिहासिकता के दृष्टिगत इसका जीर्णोद्धार
कराना चाहिए । साथ ही यहाँ पर जिन लोगों का बलिदान हुआ , उनकी
स्मृति में भी एक स्मारक बनाया जाए।
इस मंदिर
का निर्माण मध्यकालीन युग में 7वीं से 8वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। वैसे मार्तण्ड सूर्य का पर्यायवाची शब्द है।
सूर्य राजवंश के राजा ललितादित्य ने इस मंदिर का निर्माण एक छोटे से शहर अनंतनाग
के पास एक पठार के ऊपर किया था। इसकी गणना ललितादित्य के प्रमुख कार्यों में की
जाती है। इसमें 84 स्तंभ हैं जो नियमित अंतराल पर रखे गए
हैं। मंदिर को बनाने के लिए चूने के पत्थर की चौकोर ईंटों का उपयोग किया गया है,
जो उस समय के कलाकारों की कुशलता को दर्शाता है।
मंदिर की
राजसी वास्तुकला इसे अलग बनाती है। बर्फ से ढंके हुए पहाड़ों की पृष्ठभूमि के साथ
केंद्र में यह मंदिर करिश्मा ही कहा जाएगा। इस मंदिर से कश्मीर घाटी का मनोरम
दृश्य भी देखा जा सकता है। कारकूट वंश के राजा हर्षवर्धन ने ही 200
साल तक सेंट्रल एशिया सहित अरब देशों में राज किया था। पहलगाम का
मशहूर शीतल जल वाला चश्मा इसी वंश से संबंधित है।
ऐसी
किंवदंती है कि सूर्य की पहली किरण निकलने पर राजा अपनी दिनचर्या की शुरुआत सूर्य
मंदिर में पूजा कर चारों दिशाओं में देवताओं का आह्वान करने के बाद करते थे।
वर्तमान में खंडहर हो चुके इस मंदिर की ऊंचाई भी अब 20
फुट ही रह गई है। मंदिर में तत्कालीन बर्तन आदि अभी भी मौजूद हैं।
कश्मीरियों को चार सौ साल बाद मार्तंड के सूर्य मंदिर की याद फिर से आ गई है। चौदह
सौ साल पुराने इस मंदिर में एक बार फिर आहुति डालने की तैयारियाँ चरमोत्कर्ष पर
हैं। इतना जरूर है कि यह मंदिर, जो खंडहरों में तब्दील हो
चुका है, आज भी सैलानियों को अपनी ओर खींचने की शक्ति रखता
है।
कहां है
मंदिर- मंदिर जम्मू काश्मीर राज्य के पहलगाम से निकट अनंतनाग में स्थित है।
कैसे
पहुंचे- पहलगाम से अनंतनाग पहुंचकर मार्तंड मंदिर पहुंचा जा सकता है।
वैसे तो यह
मन्दिर 1250 वर्ष पुराना सूर्य मन्दिर भगवान सूर्य को समर्पित और कुछ चुनिंदा
सूर्य मंदिरों में से एक परन्तु, विदेशी
इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा खंडित किया गया ये सूर्य
मंदिर, अनंतनाग कश्मीर में स्थित है या न्यायसंगत रूप से कहा
जाए तो हिन्दुओं की कला का एक नायाब नमूना यूं ही पड़ा बिखरा धूल खा रहा है।
लेकिन ऐसा
क्यूं ?
15वीं
शताब्दी से ठीक पहले सिकंदर बुटशिकान ने
कश्मीर में जबरन इस्लाम में धर्मपरिवर्तन कराने के दौरान इसे तोड़ दिया था और उसके बाद से ये उसी स्थिति में
पड़ा हुआ है।
सिकंदर
बुटशिकन : सिकंदर शाह मिरी उर्फ सिकंदर बुटशिकन कश्मीर में शाहमिरी वंश का छठा
सुल्तान था। उसने 1389 से 1413 CE तक राज्य
किया और कश्मीरी हिंदुओं को इस्लाम में जबरदस्ती धर्मांतरित करने के लिए उसके
तरीकों की आलोचना की जाती है।
पर,दुख तब होता है जब हम पाते हैं कि जिनकी ये धरोहर है उन्होंने भी कुछ
पुख्ता प्रयास नहीं किए इसके पुनरुद्धार के लिए। हालांकि इसका उपयोग बॉलीवुड के
गानों में पैसे कमाने के लिए अच्छी तरह किया गया पर मंदिर ज्यों का त्यों - तितर बितर ही है आज भी ! विडंबना ??
अनंतनाग से
बमुश्किल 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस ऐतिहासिक मार्तण्ड सूर्य मंदिर के अवशेष
और इसकी जर्जर हालत अपने पुनरुद्धार की उम्मीद लगाए आप का स्वागत करते हैं।
स्थानीय भाषा में मार्तण्ड को मत्तन कहा जाता है।
यहीं एक जलाशय है जो रंगीन मछलियों से गुलज़ार रहता है, जाएं तो देखें जरूर !!
जब आप इसे
पहली मर्तबा देखेंगे तो दिल में टीस उठेगी की क्या हम बौद्धिक,
आध्यात्मिक या शक्ति के इतने निचले स्तर पर हैं कि पूर्वजों की इन
स्मृतियों को, जो अपने आप में कला का चरम हैं, संभाल कर सहेज भी नहीं सकते।
आइए जाने
इस धरोहर का इतिहास –
राजतरंगिणी;
कल्हण की पुस्तक ( जिसमें राजाओं का इतिहास वर्णित है और इसीलिए
इसका टाइटल ये पड़ा 'राजाओं की नदी' अर्थात्
'राजाओं का समय प्रवाह' ) के अनुसार :
इसमें कश्मीर का इतिहास है -
मार्तंड
सूर्य मंदिर 8वीं शताब्दी में कर्कोटाक राजवंश
के तीसरे शासक ललितादित्य मुक्त द्वारा 725-756 के दौरान बनवाया गया था।
•यहां
ध्यान रहे इस पुस्तक को लिखे जाने का समय करीबन 1150 CE था।
राजतरंगिणी में आज के कश्मीर को कश्यपमेरू नाम से संबोधित किया गया है।
जबकि, 'तारीख ए हसन' ( कश्मीर के
सबसे पुराने उपलब्ध इतिहासों में से एक) के अनुसार :दक्षिण कश्मीर के करेवास•
में रणादित्य ने बाबुल नाम का शहर बसाया था और यहीं अपने महल के
सामने एक मार्तण्डेश्वरी मंदिर की नींव तीसरी - चौथी शताब्दी के बीच रखवाई थी।
• स्थानीय
भाषा में पठार के लिए करेवास शब्द का इस्तेमाल किया जाता है)और ऐसा माना जाने लगा
कि सातवीं शताब्दी CE के बाद राजा ललितादित्य मुक्तापिडा ने
इसी मार्तंडेश्वरी मन्दिर की नींव पर मार्तण्ड मदिर बनवाया और उसे सूर्य को
समर्पित कर दिया।
जैसा कि
ऊपर वाले पैरा में हमने चर्चा की की मार्तंड मंदिर एक ऐसे ऊंचे पठारी हिस्से के
ऊपर बनाया गया था जहाँ से पूरी कश्मीर घाटी को साफ - साफ देखा जा सके,
यानी सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो एक वैनटेज पॉइंट की तरह काम
करता था। इसके खंडहर और संबंधित पुरातात्विक शोध बताते हैं कि -
मार्तण्ड सूर्य
मन्दिर कश्मीरी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना था, जिसे गांधारन, गुप्त, चीनी,
रोमन, सीरियाई-बैजान्टाइन और ग्रीक वास्तुकला
को मिश्रित करके बनाया गया था।
है ना अचरज
की बात कला की कुशलता का स्तर तो देखिए - आज जिस अनेकता में एकता का पाठ लगभग गायब
सा हो गया है वहीं उस समय भी सनातन ने इतनी सारी कलाओं को अपने अंदर समेट लिया था
वो भी उनका आधारभूत ढांचा बदले बिना 🛕
यहां का
मंदिर प्रांगण 220 फीट लंबा और 142 फीट चौड़ा है। इसके केंद्र में एक मुख्य मंदिर
है जिसके चारों तरफ़ कुल मिलाकर 84 छोटे मंदिर (पुराने मंदिर को भी गिनकर) हैं।
यह मंदिर
कश्मीर में स्तंभ पंक्ति वास्तुकला (peristyle
architecture) का सबसे बड़ा उदाहरण है, और यह
इसके उन विभिन्न कक्षों के कारण (जो आकार में आनुपातिक हैं और मंदिर की समग्र
परिधि के साथ संरेखित हैं), ये मंदिर समझ के लिहाज से बहुत
उन्नत कोटि का और आज के समय में भी जटिल ही दिखता है।
हिंदू मंदिर
वास्तुकला के अनुसार इस : मंदिर का प्रथम प्रवेशद्वार चतुर्भुज के पश्चिमी भाग में
स्थित है और इसकी चौड़ाई मन्दिर की चौड़ाई के ही बराबर है जो इसे एक भव्यतम स्वरूप
देता है। प्रवेशद्वार पूर्णरूप से मंदिर की ही एक छायाप्रति दिखता है जिसका श्रेय-•प्रवेशद्वार पर की गई (अंदर पूजे जाने वाले) देवी देवताओं की मूर्तियों की
विस्तृत सजावट को। प्राथमिक मंदिर एक केंद्रीकृत परिसर में स्थित है, माना जाता है कि इसके शीर्ष पर एक पिरामिड था। मन्दिर के शीर्ष पर पिरामिड
होना कश्मीरी मंदिरों में देखा जाने वाला एक कॉमन फीचर (सामान्य तौर पर पायी ही
जाने वाली विशेषता) है।
मंदिर के
एंटीचेंबर ( गर्भगृह और सभागार के बीच स्थित कक्ष) में मौजूद दीवार पर की गई
नक्काशी सूर्य देवता के अतिरिक्त अन्य देवताओं जैसे - विष्णु तथा मां गंगा और
यमुना जैसे नदियों को दर्शाती हैं। जो अपने पूर्वजों के समय का एक अद्भुत एहसास
आपके मन में जगाता है।
ऐसा नहीं
कि इसके पुनरुद्धार के लिए कोई आवाज ही नहीं उठाई गई,
पर राजनीति के प्रभाव के चलते सरकार द्वारा जो कुछ कदम उठाए भी गए
वो भी आधे अधूरे मन से किए गए हैं। टूरिस्ट्स के लिए कुछ एक बेसिक फैसिलिटीज जैसे
टॉयलेट को छोड़कर, इस स्थान को कभी भी धार्मिक या ऐतिहासिक
तीर्थ स्थल बनाने के लिए कोई प्रभावशाली कदम लिया गया हो।
इस स्थल की
देख रख Archeological
survey of India द्वारा की जाती है, जिसके
द्वारा एक बोर्ड लटकाकर बस सूचना दे दी गई है। ASI को शायद
आदेश और फंड दोनों ही कभी इसे प्रायोरिटी देने हेतु कभी मिले ही नहीं।
तब से लेकर
आज तक :
जब भी इस
मंदिर के पुनरुद्धार की बात की जाती है तो कई लोगों को बड़ी आपत्ति होने लगती है,
मन्दिर पर हमले किए गए सिकंदर बटकिशान का 15वीं शताब्दी से लेकर आज
के आतंकवादियों तक.
° बॉलीवुड
में मार्तण्ड सूर्य मन्दिर
अलबत्ता कई
नामी फिल्मों के मशहूर गानों में बतौर बैकग्राउंड इस्तेमाल किया गया है इस मंदिर
को -
1970 :
फिल्म - मन की आंखे - धर्मेंद्र और वहीदा रहमान; रफी-लता के गीत 'चला भी आ आजा रसिया' का बैकग्राउंड था यही मार्तण्ड मन्दिर।
1975:
फिल्म - आंधी - संजीव कुमार और सुचित्रा सेन; किशोर-लता
के फेमस गीत 'तेरे बिन जीना ज़िंदगी से कोई शिकवा नहीं'
के बैकग्राउंड में यही मार्तंड मंदिर है।
2014:
फिल्म हैदर में 'गीत बिस्मिल'
के बैकग्राउंड के रूप में चुना गया था। इस सूर्य मंदिर को फिल्म में
एक बुराई के स्थान के रूप में दिखाया गया है। इसे लेकर विवाद पैदा हो गया था।
डेविल्स डांस सीक्वेंस वहां मन्दिर में दिखाया जाना सभी हिन्दुओं (संबंधित तौर पर
कश्मीरी पंडितों का भी) अपमान है।
(फ़िल्म -
लव स्टोरी में भी इस मंदिर का बैकग्राउंड इस्तेमाल किया गया है)
जानबूझकर
ऐसी धरोहरों को पहले फिजिकल बनावट और फिर छवि को खंडित कर गलत नरेटिव सेट करने का
अनवरत प्रयास आज भी जारी है।
स्रोत :
राजतरंगिणी
के प्रथम तरंग में बताया गया है कि सबसे पहले कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई
सहदेव ने राज्य की स्थापना की थी, और उस समय
कश्मीर में केवल #वैदिकधर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा
पूर्व कश्मीर में बौद्धधर्म का आगमन हुआ।
राजतरंगिणी
एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि
"एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त
होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती
है" - यथा -
"श्लाध्यः
स एव गुणवान् रागद्वेषबहिष्कृता।भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती॥"
(राजतरंगिणी)
अलेक्जेंडर
कनिंघम एक ब्रिटिश पुरातत्वविद् और सेना के इंजीनियर,
जिन्हें भारतीय पुरातत्व के फादर के रूप में जाना जाता है, एक युवा अधिकारी के रूप में, कश्मीर में तैनात थे।
वो लिखते हैं कि -"मार्तंड के हिंदू मंदिर 🛕के
खंडहर या आमतौर पर कहा जाने वाला पांडु-कोरु या पांडुस और कोरस का घर - (cyclopes
ऑफ ईस्ट) एक करेवास * के सबसे ऊंचे भाग पर स्थित है। निस्संदेह,
निश्चित रूप से यह महान खंडहर कश्मीर की भव्यता के सभी मौजूदा
अवशेषों से आकार और स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण है।"
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