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ॐ यानी ओम, जिसे "ओंकार" या "प्रणव" भी कहा जाता है।

ॐ यानी ओम, जिसे "ओंकार" या "प्रणव" भी कहा जाता है।

  श्री जितेंद्र कुमार गुप्ता,कमांडेंट सीआरपीएफ
गायत्री मंत्र - ॐ भूर्भुव: स्व:

माण्डूक उपनिषद् - ॐ यह अमर शब्द ही पूरी दुनिया है

बौध्य मंत्र - ॐ मणि पद्मे हूं

गुरु ग्रंथ साहिब - एक ओंकार सतनाम

योग सूत्र - तस्य वाचकः प्रणवः

इन सभी मंत्र या श्लोक में क्या समानता है? समानता है
        ॐ 

ॐ यानी ओम, जिसे "ओंकार" या "प्रणव" भी कहा जाता है।
देखें तो सिर्फ़ ढाई अक्षर हैं, समझें तो पूरे भ्रमांड का सार है।
ओम धार्मिक नहीं है, लेकिन यह हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म जैसे कुछ धर्मों में एक पारंपरिक प्रतीक और पवित्र ध्वनि के रूप में प्रकट होता है। ओम किसी एक की संपत्ति नहीं है, ओम सबका है, यह सार्वभौमिक है, और इसमें पूरा ब्रह्मांड है।

ओम को "प्रथम ध्वनि" माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भ्रमांड में भौतिक निर्माण के अस्तित्व में आने से पहले जो प्राकृतिक ध्वनि थी, वह थी ओम की गूँज। इस लिए ओम को ब्रह्मांड की आवाज कहा जाता है। इसका क्या मतलब है?
किसी तरह प्राचीन योगियों को पता था जो आज वैज्ञानिक हमें बता रहें हैं: ब्रह्मांड स्थायी नहीं है।

कुछ भी हमेशा ठोस या स्थिर नहीं होता है। सब कुछ जो स्पंदित होता है, एक लयबद्ध कंपन का निर्माण करता है जिसे प्राचीन योगियों ने ओम की ध्वनि में क़ैद किया था। हमें अपने दैनिक जीवन में हमेशा इस ध्वनि के प्रति सचेत नहीं होते हैं, लेकिन हम ध्यान से सुने तो इसे शरद ऋतु के पत्तों में, सागर की लहरों में, या शंख के अंदर की आवाज़ में सुन सकते हैं।
ओम का जाप हमें पूरे ब्रह्माण्ड की इस चाल से जोड़ता है और उसका हिसा बनाता है - चाहे वो अस्त होता सूर्य हो, चढ़ता चंद्रमा हो, ज्वार का प्रवाह हो, हमारे दिल की धड़कन, या हमारे शरीर के भीतर हर परमाणु की आवाज़ें।

जब हम ओम का जाप करते हैं, यह हमें हमारे सांस, हमारी जागरूकता और हमारी शारीरिक ऊर्जा के माध्यम से इस सार्वभौमिक चाल की सवारी पर ले जाता है, और हम एक गहरा संबंध समझना शुरू करते हैं जो मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है।

ओम का उच्चारण करते आज के दिन को पूर्ण रूप से जियें ।
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