संप्रभुता
---:भारतका एक ब्राह्मण. संजय कुमार मिश्र "अणु"

प्रभु में नाम,गुण,रूप लीला तथा एश्वर्य,धर्म,यश और श्रेय के साथ-साथ ज्ञान और वैराग्य सब है।तभी तो प्रभु है।प्रभु की सेवा से प्रभुता आती है।पर यह जो रजस है वही सबको मदांद्ध कर देता है।मदांद्धता प्रभुता की पहली पहचान है।तुलसी बाबा भी मानस में कहते है...'प्रभुता पाई काही मद नाहीं।"
आज हम अपने प्रभु को बिसार दिये।जब हम प्रभु को बिसार दिये तब प्रभु ने अपनी प्रभुता से हमें च्युत कर दिया।जब प्रभुता रहेगी तब न संप्रभुता की बात होगी।पर वह है हीं नहीं।आज दौर के अंधी दौड में प्रभु है हीं नहीं।जब प्रभु ही नहीं तो प्रभुता कहां?फिर तो संप्रभुता की चर्चा ही बेनामी है।प्रभु से ही प्रभुता है तब न संप्रभुता है।
हमारा आपसे निवेदन है।आप जब तक प्रभु से बिमुख हैं तबतक आप न प्रभुता को पहचान पायेंगें न संप्रभुता को रख या बचा पायेंगें।यदि संप्रभुता बचानी है।प्रभुता बचानी है तो प्रभु को बचा लो।प्रभु तो समदर्शी हैं।वे दया करेंगें।जो कोई प्रभु का प्रसाद पाया है वे सब कृत्य-कृत्य हैं।हमें भी उपकृत होना चाहिये।
आप प्रभुता का वरण करें।आपको प्रभुता मिले जो हर प्रभुता की रक्षा कर सके वह भी इसलिए की हमसब की संप्रभुता बची रहे।जय हो प्रभु।
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
वलिदाद,अरवल(बिहार)
पिन नं.८०४४०२.
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