मैं
विनय मिश्र , इयारी ,देव औरंगावाद
मैं स्वयं का स्वामी हूँ ..
मुझे इतना ज्ञान है ..
हमारे शब्द सब अपने है ..
मेरे मुँह मे मेरी ज़ुबान है .. !
न कोई सिद्ध - न मुनि। ..
न ही मैं कोई अंतर्यामी हूँ ..
पर इतना तय है की --
मै स्वयं का स्वामी हूँ .. !
आँखों के - पन्ने पढ़ने का हुनर ..
हमने भावना से सीखा है ..
कोशिश कीजिये आप भी पढ़ पायेगें ..
किताबों से ज्यादा चेहरो पर लिखा है .. !
बातों के बहाव में ..
विवाद के उन्माद पर ..
बेरहम क्रोध की मरहम -- सांत्वना ..
बमुश्किल चढ़ती है संवाद पर .. !
क्या आप भी --
जगत हित कामी है ..
विचार तो बनता है ..
क्या आप खुद के स्वामी है .. !
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,विनयबुद्धि,,,,,,
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