माता भूमि पुत्रोऽहं पृथीव्या:

'माता भूमि पुत्रोऽहं पृथीव्या:'
      - योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी.मिश्र)
कल (12.5.2020 को) रात्रि 8.0 बजे देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदीजी ने दूरदर्शन पर देश को संबोधित करते हुए कहा कि
'माता भूमि पुत्रोऽहं पृथीव्या:'; अर्थात् देश के हम नागरिक अपनी मातृभूमि को माता मानते हैं और और हम पृथ्वीपुत्र हैं। इस कथन के पीछे संकेत है कि अपनी भूमि, पृथ्वी की हम रक्षा करें और यह तभी संभव है, जब हम खुद की रक्षा करें और इस कोरोना-महामारी में खुद को बचाना आवश्यक है। उसके लिए आत्मनिर्भर होने का पाठ प्रधानमंत्री जी ने हमारे सम्मुख रखा है। जैसा उन्होंने भी कहा - 'सर्वत्र आत्मनिर्भर सुखम्'! इसी उद्देश्य से उन्होंने 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' चलाने की बात कही और  इसकेलिए 20 लाख करोड़ का पैकेज, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 10% है, इस कार्य के लिए देश में खर्च करने की भी घोषणा की! उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया कि जिस तरह 'जन धन, आधार, मोबाइल' योजना से भारत को अभूतपूर्व सफलता मिली है, उसी तरह 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' से भी हमें पूर्ण उपलब्धि मिलेगी! इसके लिए उन्होंने 'लोकल के लिए वोकल' का नारा दिया, अर्थात् , हम  स्थानीय (लोकल) उत्पाद की ही जोरदार चर्चा (वोकल) करें! और बढ़ावा दें। आखिर, इसकी जरूरत क्यों पड़ी? आज हम आये दिन चर्चा में पा रहे हैं कि कोरोना-लॉक डाउन के चलते लाखों की संख्या में मजदूर अपने घर से सुदूर दिल्ली, पंजाब, मुंबई, तमिलनाडु आदि विभिन्न जगहों में फंसे पड़े हैं और घर जाने का कोई उपाय नहीं देखकर वे पैदल, साइकिल, ठेला आदि से ही, बाल-बच्चों-सहित सैकड़े ही नहीं हजार किलोमीटर की यात्रा पर चल दिये हैं, जिनके खाना-पीने की सहायता रास्ते में करनी पड़ी। हृदय विदारक दृश्य तो तब सामने आया जब औरंगाबाद, महाराष्ट्र से रेल-पटरी धरकर चले और पटरी पर सो गये 16 मजदूर मालगाड़ी से कट गये! मजदूरों को घर तक पहुंचाने के लिए रेलगाड़ी, बस आदि की व्यवस्था उस समय भी की गई थी और आज भी जारी है। आज के ही समाचार के अनुसार ' प्रवासी श्रमिकों के लिए अबतक 306 ट्रेनों की बुकिंग हो चुकी है। इनमें से 167 ट्रेनों का बिहार आना बांकी है।.. आनेवाली ट्रेनों से करीब दो लाख से अधिक यात्री बिहार लौटेंगे। इस प्रकार बिहार लौटनेवालों की कुल संख्या तीन लाख 59 हजार को पार कर जायेगी।' यह तो एक राज्य की बात हुई। पड़ोसी राज्य झारखंड एवं देश के अन्य राज्यों की क्या स्थिति होगी, यह सहज अनुमान करने का है।
विचारणीय प्रश्न यह है कि अगर स्थानीय रूप से ही रोजगार उपलब्ध हो जाय तो लोग दूर जाकर क्यों भटकें?
अब इस सूत्र-वाक्यांश के बारे में कुछ और जान लें।
"माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:
अथर्ववेद के मन्त्र १२.१.१२ माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: का यद्यपि हम भारतीयों ने भारत-माता, राष्ट्रवाद, पृथ्वी के साथ मातृवत सम्बन्ध की वैदिक-काल से ही समय समय पर उच्चारण किया है, किन्तु बहुधा इस मन्त्र-अंश को ही पूर्ण मन्त्र मान इस मन्त्र के शेषांश की अवहेलना की है ! पूरा मन्त्र है- यत् ते मध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं, यास्त ऊर्जस्तन्व: संबभूवु:। तासु नो धे ह्यभि न: पवस्व माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:। पर्जन्य: पिता स उ न: पिपर्तु।। अर्थात् हे पृथ्वी, यह जो तुम्हारा मध्यभाग है और जो उभरा हुआ ऊधर्वभाग है, ये जो तुम्हारे शरीर के विभिन्न अंग ऊर्जा से भरे हैं, हे पृथ्वी मां, तुम मुझे अपने उसी शरीर में संजो लो और दुलारो कि मैं तो तुम्हारे पुत्र जैसा हूं, तुम मेरी मां हो और पर्जन्य का हम पर पिता के जैसा साया बना रहेवैदिक ऋषि ने पृथ्वी से जिस प्रकार का रक्त-सम्बन्ध स्थापित किया है, वह इतना विलक्षण और आकर्षक है कि दैहिक माता-पिता से किसी भी प्रकार कम नहीं !"

कोराना की महामारी ने भले जान चले जाने के भय का एक वातावरण हमें दिया है, पर, 'लोकल के लिए वोकल' होने के लिए जागृत भी किया है! इतिहास साक्षी है कि स्वाधीनता-संग्राम के दिनों में जब साहित्यकार भी जेलों में बंद कर दिये गये थे, तब उन्होंने इस दुर्लभ एकांत का अकल्पनीय लाभ उठाया था और साहित्य-समाज को कालजयी रचनाएं दी थीं। आज भी लाकडाउन की अवधि में साहित्यकार ही नहीं, संपूर्ण समाजभीसमाज को अनुपम भेंट देने के क्रम में तो लगा हुआ है ही, प्रधानमंत्री के द्वारा दिए गए पांच सूत्र- अर्थव्यवस्था, सिस्टम, डेमोग्राफी, बुनियादी ढांचा, आपूर्ति शृंखला को भूमि पर उतारने के क्रम में लग गया है। हमें विश्वास है कि भूमि-पुत्र इसमें सफल होंगे!
वह दिन दूर नहीं जब हम दुर्लभता से प्राप्त होनेवाले उत्पादन में भी आत्मनिर्भर हो जायेंगे!
तभी, 'माता भूमि पुत्रोऽहं पृथीव्या:' की बात चरितार्थ होगी!
इत्यलम् ।
योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र),अर्थमंत्री-सह-कार्यक्रम-संयोजक, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, कदमकुआं, पटना-800003, निवास : मीनालय, केसरीनगर, पटना 800 024.
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