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जो हुआ ना मेरा अपना(गज़ल)

"जो हुआ ना मेरा अपना"

जो हुआ ना मेरा अपना वो कल ख्वाब में मेरे आया,
मुझे देख देख कर ना जाने क्यों बार-बार मुस्काया।
रघुवंशी राह में चलते मैं देख रहा था उसको,
पल भर में गुजरा मैं आंखों की प्यास बुझा ना पाया।।
गिन गिन के जख्म वह देती जो रहती दिल में मेरे,
अब खूब रुलाती है वह जिसने था खूब हंसाया।
बिन उसके जिऊं मैं कैसे जो बन के लहू है बहती,
सांसो में भी जिसका है एक झीना झीना साया।।
मैं तो सोचता था की है जहां मुझे आजमाता,
पर समय देख अपनों ने भी है मुझको आजमाया।
मर मिटते थे जो मेरी बस एक झलक के खातिर,
अब अखबारों में मेरा उन्हें फोटो तक ना भाया।।
दुनिया में सबसे महंगा सौदा है दिल का देना,
दिल दिया है जिसको उसने ही पल-पल हमें सताया।
हम दिल में वफा रखते हैं ताउम्र निभाते हैं,
उस बेवफा को गजलों में ढाल के मैंने गाया।।
जो जख्म हमें देते हैं और पल-पल तड़पाते हैं,
 ऐ रघुवंशी तेरा भी दिल उन पर ही क्यों आया?
जालिम है दुनिया सारी बच के रहना रघुवंशी,
फंस गया जो इनके झांसे में फिर लौट के ना आ पाया।।
©️ राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
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