पुनपुन तीर(मगही कविता)
पुनपुन तीर कनइया ग्राम ।
जनकदेव बाबू हल नाम ।।
पत्नी हथ चनपूरा चाची ।
बैना बाँटथ खाँची-खाँची ।।
तीनों लइकन बड़ी सपूत ।
अइसन मेल अजब अजगूत ।।
समय सभे के बड़ी सतयलक ।
आखिर दुख किनारा धयलक ।।
बड़का बेटा राम अनुज ।
के न साथी ? देव - दनुज !
मंझिला बेटा नाम रमेश ।
माथा के सब उड़ गेल केश ।।
छोटका बेटा लछुमन-भरथ ।
दुनों भाई के सेवा करथ ।।
डोरमा कोंड़रा चउँरी वाली ।
रखलन घर के मुँह के लाली ।।
छत्तिस बिगहा उनका खेत ।
समय के साथे चललन चेत ।।
राम अनुज तो बुद्धिमान ।
कहबS हथ आदर्श किसान ।
आलू सरसो पैदावार ।
धान भी उपजे नदी किनार ।।
मंझिला बड़ी महान कहाबथ ।
लोकाचारी खूब निभाबथ ।।
छोटका सबदिन बाहरे रहे ।
भाई से भर मुँह बात न कहे ।।
उनके हीं के तेसर पीढ़ी ।
आसमान में लगबइत सींढ़ी ।।
दूगो पोता आई• आई• टी• ।
सभे सहारा ऑलमाइटी ।।
दू पोता सैनिक स्कूल ।
सभ्भे हथ विद्या के मूल ।।
एगो ललुआ पढ़ल न ओतना ।
घर गृहस्थी खेतो जोतना ।।
पोतिन सब लक्ष्मी-सरसती ।
रखथी सबके माँ भगवती ।।
मेल-जोल से सब परिवार ।
दे हथ दिन आउ रात गुजार ।।
पक्का बं-बं बनल मकान ।
किरपा करथ सदा भगवान
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लेखक तो हम बन न पइली ।
मगही में ई कविता कइली ।।
कइसन लगलो न हम जानी ।
बाकी हे ई सच्च कहानी ।।
कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425
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