सोन किनारे खरसा गाँव
सोन किनारे खरसा गाँव ।
घना बगइचा छयले छाँव ।
कउआ कयले काँव-काँव ।
करइत चिरइंयन चाँव-चाँव ।।
खेलित-कूदित लइकन साथ ।
रस्सी-पगहा लेले हाथ ।।
सुंदर दृश्य बड़ी रमणीक ।
ऊ हे अरबल के नजदीक ।।
उहे गाँव में संजय बाबू ।
देख के होबे दिल बेकाबू ।।
दिल के राजा साफ ऊ मन के ।
घर में ढेर लगल है धन के ।।
खेती खूब करS हथ जम के ।
हियो सुनाबित सुनिहS थम के ।
अब तो रहथ जहानाबाद ।
मेहनत से दुनिया आबाद ।।
पढ़ल-लिखल सज्जन संभ्रांत ।
के न जाने जिला आउ प्रांत ।।
सादा जीवन उच्च विचार ।
मगही से मइया सम प्यार ।।
बेटा हे रजनीश हेमन्त ।
घर में सालो छायल वसन्त ।।
आई आई टियन दुनों बेटा ।
अजबे सीधा आउ सपेटा ।।
जहाँ बोलाबS ऊ उपलब्ध ।
बोली में चुअ हे मध ।।
गुरुभक्ति तो अपरम्पार ।
माय-बाप से ओतने प्यार ।।
केतना करियो आउ बखान ।
स्वस्थ सुखी रखथी भगवान ।।
समय के जे लेलक पहचान ।
शिक्षा पर जे देलक ध्यान ।।
ओहे सब आगे बढ़ गेल ।
आज उँचाई पर चढ़ गेल ।।
हम तो लेखक बने न पइली ।
मगही में ई कविता कइली ।।
कइसन लगलो ई न जानी ।
बाकी हे ई सच कहानी ।।
कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425
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