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भय भूख और भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुका है कोरोना रावेन्द्र

भय भूख और भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुका है कोरोना रावेन्द्र 

मानवता को शर्मसार करती घटनाओं से मन ब्यथित हो गया  किन्तु दुर्भाग्य से हमारे देश के सिस्टम में कोई सुधार नहीं हुआ 

अन्ना हजारे के आन्दोलन से केजरीवाल जैसे राजनेता तो देश को मिल सकते हैं परंतु भष्ट्राचार से देश को आजादी मिल जाए यह शायद संभव नहीं है ।
आज ऐसी ही एक  अमानवीय भष्ट्राचार की कहानी प्रत्यक्ष रूप से सुना तो अपने आप को  यह पोस्ट लिखने से नहीं रोक पाया 
आज जो घटना घटित हुई वह  ऐसी थीं कि एक बुजुर्ग दंम्पति को जबलपुर से भोपाल लड़के बहू के पास जाना था बुजुर्ग दंम्पति में से महिला का हाँथ फैक्चर था जिसके कारण उन्हें  दैनिक क्रिया करने में दिक्कत हो रही थी अतः  दंम्पति ने निर्णय लिया कि लड़का बहू के पास चला जाए पर कैसे यह बहुत बड़ा प्रश्न था दंम्पति पुरूष अपने  एक परिचित को फोन लगा कर पूरी घटना विस्तार से समझाते हैं और  भोपाल तक किसी तरह पहुँचाने की बात करते हैं तब परिचित ब्यक्ति  अपने  किसी  अन्य परिचित को फोन करते हैं  उसके बाद जो हुआ वह सुन कर  पाँव के नीचे की जमीन खिसक गई हैलो सर  मुझे भोपाल एक बुजुर्ग दंम्पति को जबलपुर से भेजना है  वह भी आज ही क्या चार्ज लगेगा वहां से कुछ जबाब  मिले उसके पहले मुझे समझ में  आ गया कि कोई ट्रेवल्स वाला बंदा है परंतु यह क्या बात तो  टैक्सी के लिए हो रही थी पर  अब बात घूम चुकी थी परमीशन में कोरोना काल में  किसी रेड जोन में जाने के लिए परमीशन लेना  आवश्यक है  अतः विधिवत इस बात पर  ध्यान देते हुए  तय किया जा रहा था कि  टैक्सी तो तय हुई पर परमीशन कौन लेगा वह भी  आज के लिए  अंत में  वही हुआ जो मै कोरोना काल के सुरूआती दिनों से कहता  आया हूँ कि  यह सदी का सबसे बड़ा भष्ट्राचार साबित होगा  कोरोना काल  परमीशन के लिए रकम तय हुई 1000 रू टैक्सी भाड़ा  7000 रू कुल मिलाकर दो बुजुर्ग दंम्पति को जबलपुर से भोपाल पहुँचने का खर्च  आया  8000 रू  यह कैसी मानवियता है कैसा संस्कार है हम तो बड़े गर्व से कहते हैं कि हम संस्कार धानी के निवासी हैं फिर हमारे संस्कारों में यह कौन लोग हैं जो ग्रहण लगा रहे हैं शासन प्रशासन को भी चाहिए कि इस तरह की घटनाओं पर  ध्यान रखें ताकि भय भूख और भ्रष्टाचार का पर्याय बनने से रोका जा सके ।
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