शुक्रवार
है, माता रानी का दिन |
पंडित श्रीकृष्ण दत्त शर्मा,
अवकाश प्राप्त अध्यापक
सी 5/10 यमुनाविहार दिल्ली
या
देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।''
हिन्दू धर्म में माता रानी का देवियों में सर्वोच्च स्थान है।
उन्हें अम्बे, जगदम्बे, शेरावाली, पहाड़ावाली आदि नामों से पुकारा जाता है। संपूर्ण भारत भूमि पर उनके
सैंकड़ों मंदिर है। ज्योतिर्लिंग से ज्यादा शक्तिपीठ है।
सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती ये त्रिदेव की पत्नियां हैं।
इनकी कथा के बारे में पुराणों में भिन्न भिन्न जानकारियां मिलती है। पुराणों में
देवी पुराण देवी में देवी के रहस्य के बारे में खुलासा होता है।
आखिर उन अम्बा, जगदम्बा, सर्वेश्वरी आदि के बारे में क्या रहस्य है? यह जानना
भी जरूरी है। माता रानी के बारे में संपूर्ण जानकारी रखने वाले ही उनका सच्चा भक्त
होता है। हालांकि यह भी सच है कि यहां इस लेख में उनके बारे में संपूर्ण जानकारी
नहीं दी जा सकती, लेकिन हम इतना तो बता ही सकते हैं कि आपको
क्या क्या जानना चाहिए?
माता रानी कौन है? :
शिवपुराण के अनुसार उस अविनाशी परब्रह्म (काल) ने कुछ काल के बाद
द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस
निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की,
जो मूर्तिरहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म।
परम अक्षर ब्रह्म। वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है।
एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने
विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो
उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। सदाशिव की उस पराशक्ति को प्रधान
प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की
जननी तथा विकार रहित बताया गया है।
वह शक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं) कही गई है। उसको प्रकृति,
सर्वेश्वरी, त्रिदेव जननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण भी
कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं
हैं।
पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और
अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है। एकांकिनी होने पर भी वह माया शक्ति
संयोगवशात अनेक हो जाती है। उस कालरूप सदाशिव की अर्द्धांगिनी हैं यह शक्ति जिसे
जगदम्बा भी कहते हैं।
हिरण्याक्ष के वंश में उत्पन्न एक महा शक्तिशाली दैत्य हुआ,
जो रुरु का पुत्र था जिसका नाम दुर्गमासुर था। दुर्गमासुर से सभी
देवता त्रस्त हो चले थे। उसने इंद्र की नगरी अमरावती को घेर लिया था। देवता शक्ति
से हीन हो गए थे, फलस्वरूप उन्होंने स्वर्ग से भाग जाना ही
श्रेष्ठ समझा।
भागकर वे पर्वतों की कंदरा और गुफाओं में जाकर छिप गए और सहायता
हेतु आदि शक्ति अम्बिका की आराधना करने लगे। देवी ने प्रकट होकर देवताओं को
निर्भिक हो जाने का आशीर्वाद दिया। एक दूत ने दुर्गमासुर को यह सभी गाथा बताई और
देवताओं की रक्षक के अवतार लेने की बात कहीं।
तक्षण ही दुर्गमासुर क्रोधित होकर अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र और
अपनी सेना को साथ ले युद्ध के लिए चल पड़ा। घोर युद्ध हुआ और देवी ने दुर्गमासुर
सहित उसकी समस्त सेना को नष्ट कर दिया। तभी से यह देवी दुर्गा कहलाने लगी।
भगवान शंकर को महेश और महादेव भी कहते हैं। उन्हीं शंकर ने
सर्वप्रथम दक्ष राजा की पुत्री दक्षायनी से विवाह किया था। इन दक्षायनी को ही सती
कहा जाता है। अपने पति शंकर का अपमान होने के कारण सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ
में कूदकर अपनी देहलीला समाप्त कर ली थी।
माता सती की देह को लेकर ही भगवान शंकर जगह-जगह घूमते रहे।
जहां-जहां देवी सती के अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां
शक्तिपीठ निर्मित होते गए। इसके बाद माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालयराज के
यहां जन्म लेकर भगवान शिव की घोर तपस्या की और फिर से शिव को प्राप्त कर पार्वती
के रूप में जगत में विख्यात हुईं।
माता पार्वती शंकर की दूसरी पत्नीं थीं जो पूर्वजन्म में सती थी।
देवी पार्वती के पिता का नाम हिमवान और माता का नाम रानी मैनावती था। माता पार्वती
को ही गौरी, महागौरी, पहाड़ोंवाली और
शेरावाली कहा जाता है। माता पार्वती को भी दुर्गा स्वरूपा माना गया है, लेकिन वे दुर्गा नहीं है। इन्हीं माता पार्वती के दो पुत्र प्रमुख रूप से
माने गए हैं एक श्रीगणेश और दूसरे कार्तिकेय।
पद्मपुराण के अनुसार देवासुर संग्राम में मधु और कैटभ नाम के दोनों
भाई हिरण्याक्ष की ओर थे। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार उमा ने कैटभ को मारा था,
जिससे वे 'कैटभा' कहलाईं।
दुर्गा सप्तसती अनुसार अम्बिका की शक्ति महामाया ने अपने योग बल से दोनों का वध
किया था।
पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान शिव की चार पत्नियां थीं। पहली सती
जिसने यज्ञ में कूद कर अपनी जान दे दी थी। यही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनकर आई,
जिनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं। फिर शिव की एक तीसरी फिर शिव की
एक तीसरी पत्नी थीं जिन्हें उमा कहा जाता था। देवी उमा को भूमि की देवी भी कहा गया
है। उत्तराखंड में इनका एकमात्र मंदिर है।
भगवान शिव की चौथी पत्नी मां काली है। उन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक
दानवों का संहार किया था। काली माता ने ही असुर रक्तबीज का वध किया था। इन्हें दस
महाविद्याओं में से प्रमुख माना जाता है। काली भी देवी अम्बा की पुत्री थीं।
नवदुर्गा में से एक कात्यायन ऋषि की कन्या ने ही रम्भासुर के पुत्र
महिषासुर का वध किया था। उसे ब्रह्मा का वरदान था कि वह स्त्री के हाथों ही मारा
जाएगा। उसका वध करने के बाद माता महिषसुर मर्दिनी कहलाई।
एक अन्य कथा के अनुसार जब सभी देवता उससे युद्ध करने के बाद भी
नहीं जीत पाए तो भगवान विष्णु ने कहा ने सभी देवताओं के साथ मिलकर सबकी आदि कारण
भगवती महाशक्ति की आराधना की जाए। सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर एक
परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ।
हिमवान ने भगवती की सवारी के लिए सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने
अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए। भगवती ने देवताओं पर
प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया और
भयंकर युद्ध के बाद उसका वध कर दिया।
देशभर में कई जगह पर माता तुलजा भवानी और चामुण्डा माता की पूजा का
प्रचलन है। खासकर यह महाराष्ट्र में अधिक है। दरअसल माता अम्बिका ही चंड और मुंड
नामक असुरों का वध करने के कारण चामुंडा कहलाई। तुलजा भवानी माता को महिषसुर
मर्दिनी भी कहा जाता है। महिषसुर मर्दिनी के बारे में हम ऊपर पहले ही लिख आए हैं।
दस महाविद्याओं में से कुछ देवी अम्बा है तो कुछ सती या पार्वती
हैं तो कुछ राजा दक्ष की अन्य पुत्री। हालांकि सभी को माता काली से जोड़कर देखा
जाता है। दस महाविद्याओं ने नाम निम्नलिखित हैं।
काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी,
धूमावती, बगलामुखी, मातंगी
और कमला। कहीं कहीं इनके नाम इस क्रम में मिलते हैं:-1.काली,
2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी,
7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।
वर्ष में दो बार नवरात्रि उत्सव का आयोजन होता है। पहले को चैत्र
नवरात्रि और दूसरे को आश्विन माह की शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस
तरह पूरे वर्ष में 18 दिन ही दुर्गा के होते हैं जिसमें से शारदीय
नवरात्रि के नौ दिन ही उत्सव मनाया जाता है, जिसे दुर्गोत्सव
कहा जाता है।
माना
जाता है कि चैत्र नवरात्रि शैव तांत्रिकों के लिए होती है। इसके अंतर्गत तांत्रिक
अनुष्ठान और कठिन साधनाएं की जाती है तथा दूसी शारदीय नवरात्रि सात्विक लोगों के
लिए होती है जो सिर्फ मां की भक्ति तथा उत्सव हेतु है।