अब कितना सम्मान ?
-----------------------------तुम सम्मान पा रहे हो उसी दिन से
जिस दिन हो गये शामिल
मनुष्य बनने की प्रक्रिया में
तुम्हें प्राप्त हुआ गौरव
धरती पर आने का
बचपन से आज तक
प्रकृति तुम्हें सींच रही है लगातार
आनंद की बारिश में
करा रही है बोध
ताकि तुम होकर
भीतर से संतुष्ट
बन सको
नानक, कबीर या बुद्ध
पर तुम नहीं चाहते जीना
प्रकृति के साथ
तुम भाग रहे हो
उस सम्मान के पीछे
जो देता है संसार
अपने स्वार्थ के निहितार्थ
और दुत्कार देता है उस वक्त
जब नहीं होता है उनका
तुम से कोई सीधा सरोकार।