टाइपिस्ट
श्री विवेक चतुर्वेदी
मैंने कहा 'बचपन'
उसकी उंगलियां हिरन हो गईं
मैंने 'पिता' कहा...टाइप किया उसने पिता
पर भरा नहीं मन...वो अक्षरों को बड़ा करती गई
कहा 'मां'..और उसकी स्मृति खोजने लगी
एक मुलायम लिपि
जब ' सहेलियां ' कहा
तो खेलती दिखीं उसकी चूड़ियां
'प्रेम' कहा मैंने और...
उसकी उंगलियां सहसा कीबोर्ड पर ठहर गईं
फिर 'शादी' कहा... तो होने लगीं उसके टाइप में गलतियां
मैंने 'मां और दूध पीता बच्चा' लिखाना चाहा
तो वो टाइप कर न सकी... भर आईं उसकी आंखें
मैं रुका... फिर कहा, लिखो...'औरत का हक'
पर लफ्ज़ हैरत से गुमने लगे
फिर मैंने 'एक छोड़ी हुई औरत' कहा
उसकी उंगलियां लड़खड़ाईं और धुंधला गया सब
फिर वो देर तक खाली स्क्रीन को घूरती रही
और कांपते हाथों से टाइप किया ' हिम्मत'
फिर एक बार 'हिम्मत'.. फिर तो उड़ने लगीं
उसकी उंगलियां..
सारा पेज उसकी 'हिम्मत' से भर गया।।
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