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कर्त्तव्य

कर्त्तव्य

मीरा जैन,उज्जैन(मध्यप्रदेश)

शंभू पुलिस वाले के सामने हाथ जोड़ विनती करने लगा-
‘साहब जी! मेरी ट्रक खराब हो गई थी इसलिए समय पर मैं अपने शहर नहीं पहुंच पाया। प्लीज जाने दीजिए साहब जी।’
पुलिस वाले की कड़कदार आवाज गूंजी-
‘साहब जी के बच्चे! एक बार कहने पर तुझे समझ में नहीं आ रहा कि आगे नहीं जा सकता। ‘कोरोना’ की वजह से सीमाएं सील कर दी गई है।कर्फ्यू की सी स्थिति है। १ इंच भी गाड़ी आगे बढ़ाई तो एक घुमाकर दूंगा,समझे सब समझ आ जाएगा।’
पुलिसवाला तो फटकार लगाकर चला गया,किंतु शंभू की भूख से कुलबुलाती आँतें…सारे ढाबे व रेस्टोरेंट बंद…पुलिस का खौफ,रात को १० बजे अब वह जाए तो कहां जाए,साथ में क्लीनर वह भी भूखा। अब क्या होगा ? यही सोच आँखें नम होने लगी,तभी पुलिस वाले को बाइक पर अपनी ओर आता देख शंभू की घिग्गी बंध गई। फिर कोई नई मुसीबत…। शंभू की शंका सच निकली। बाइक उसके समीप आकर ही रुकी। पुलिसवाला उतरा,डिक्की खोली और उसमें से अपना टिफिन निकाल शंभू की ओर यह कहते हुए बढ़ा दिया-
‘लो इसे खा लेना,मैं घर जाकर खा लूंगा।’
शंभू की आँखों से आँसूओं की अविरल धारा बह निकली। वह पुलिस वाले को नमन कर इतना ही कह पाया-
‘साहब जी! देशभक्त फरिश्ते हैं आप। ‘
इस पर पुलिस वाले ने कहा-
‘वह मेरा ऑफिशियल कर्त्तव्य था,और यह मेरा व्यक्तिगत कर्त्तव्य ही नहीं,सामाजिक दायित्व भी है।’

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