Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

बाल का खाल!

बाल का खाल! 

       संजय कुमार मिश्र"अणु"
समय के साथ,
हम समझ रहे है-
तुम्हारी हरेक चाल!!
        तुम अपने स्वार्थ में-
        बिल्कुल अंधे होकर|
        प्रताड़ित कर रहे हो-
        मुझे मार ठोकर|
       बेबजह खींच-खींच-
       बाल का खाल!!
कबतक करते रहोगे-
ये प्रदर्शित दिखावा|
जब टुटेगा विश्वास-
दिखेगा रूप छलावा|
तब सोचोगे बैठ तुम-
हाय!ये क्या कर डाला!!
          ये तेरी मन मोहिनी हंसी-
          नहीं छुपा पायेगी कुटिलता|
          डूबा कर तुम्हे मार डालेगी-
           उसकी सरल निश्छलता|
           और तेरा कुचक्र हीं होगा-
            तेरे लिए काल!!
आखिर कबतक दे सकते हो-
लोगों को धोखा पर धोखा|
सरेआम हो हीं जाना है-
ये तेरा रूप-रंग चोखा|
फिर तो बचेगा भी नहीं-
बजाने के लिए छाल!!
               ये आदत ठीक नहीं है-
               पूर्वजों ने समझाया था|
               अपने जीते जी हमेशा इसे-
               जीवित हीं दफनाया था|
               और तुमने अपना लिया-
               समझकर ढाल!!
तुम चाहे खुद को जो समझो,
पर अतिनिद्य है ये व्यवहार|
ये बाते"मिश्रअणु" नहीं कहता-
बल्कि बतलाता रहा है संसार|
प्रकृति उसको सहयोग देती है-
और संसाधन हर काल!!
               बुरे लोगों का बुरा होता है,
               ये तो पूर्ण साश्वत है नियम|
               कोई पक्षपात नहीं होता है-
               चाहे आप हो या फिर हम|
               उसकी अपनी परंपरा है-
               और उसका है अपना जाल!!
     ---:भारतका एक ब्राह्मण.

-------

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ