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भगवान बुद्ध की शिष्या विशाखा की जन्मस्थली है भदरिया गाँव |


भगवान बुद्ध की शिष्या  विशाखा की जन्मस्थली है भदरिया गाँव |

लेखक डॉक्टर अजीत कुमार पाठक मकान संख्या 40 गांधीनगर बोरिंग रोड पटना|

भगवान बुद्ध की प्रसिद्ध उपासिका विशाखा की जन्मस्थली भदरिया गांव पुराने भागलपुर जिले के अमरपुर प्रखंड में स्थित अपने गर्भ में कई बुद्ध कालीन कथाओं को समेटे हुए अतीत की गहराइयों में विलीन होता जा रहा है  | भागलपुर से  लगभग 25 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व के कोने पर अवस्थित यह गाँव (अब बांका जिला) आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व बुद्ध के बिहार और बुद्ध धर्म के दो प्रमुख विधानों  काअनुज्ञास्थल का साक्षी रहा है|
 बौद्ध धर्म और बिहार  (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पटना द्वारा प्रकाशित और श्री हवलदार त्रिपाठी सहृदय’ द्वारा लिखित )पृष्ट संख्या 89 में इस नगर की चर्चा की गई है |उन्होंने लिखा है कि :-
वैशाली के बाद भगवान वुद्ध चारिका करते हुए भद्दिया (भागलपुर के पास का भदरिया) पहुँचे उस समय उनके साथ साढ़े बारह सौ  भिक्षुओ का एक  भारी संघ था भद्दिया में मेण्डक नाम का एक श्रेष्ठी था विम्बिसार के राज्य में उस समय  अत्यन्त वैभव- वैभव संपन्न पाँच श्रेष्ठी थे उनमे मेण्डक भी एक थावह पाँच महा पुण्यों से युक्त था|  उसकी प्रधान भार्या  चंद्रप्रभाउसका पुत्र धनंजय उसकी पतोहू सुमना उसका दास पूर्णक और स्वयं वह ये पाँच महापुण्य थे मेण्डक ने जब सुना कि कुलीन शाक्यपुत्र सिद्धार्थ बुद्ध हुए हैं और वे संघ के साथ मेरे नगर में आये हैं,  तब वह सभी तरह आदर सत्कार के साथ भगवान बुद्ध से जातिवन में जाकर मिला  | इसने पहले हीं भगवान की अगवानी में अपनी पोती विशाखा को पाँच सौ कन्याओं के साथ सत्कार के लिए भेजाउस समय विशाखा की उम्र केवल सात साल की थी विशाखा की माता का नाम सुमना था और पिता का नाम धनंजय | ‘भद्दिया ‘ में भगवान बुद्ध जबतक रहे तबतक उनके संघ का सारा खर्च मेण्डक गृहपति ने ही चलाया भगवान के उपदेशों से प्रभावित होकर मेण्डक का सारा परिवार बुद्ध का उपासक हो गयाविशाखा  विशाखा  पीछे चलकर बहुत बड़ी बुद्ध की उपासिका और दायिका हुई वह बौद्ध संघ को दान देने में अद्वितीय नारी थी विशाखा भगवान की उन प्रमुख उपासिका में से एक थी जो भगवान के जीते जी बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध हो गई थी। । विशाखा की उन बोध भिक्खुणियों में से एक थी जिसने कभी घर नहीं छोड़ा, । विशाखा भगवान की उपासिका में से एक थी। भगवान की कथाओं में विशाखा का , कुमार जैत काऔर अनाथ पीड़क का बार बार नाम आता है। भगवान की नजरों में इनलोगों का बहुत सम्‍मान था। परम भाग्‍य शाली थी विशाखा। 
इसी मेण्डक का पुत्र धनंजय बाद में प्रेसनजित’   के राज्य कोसल में चला गया और वहाँ साकेत में बसा बात यों हुई कि प्रसनजीत के राज्य में उस समय कोई बड़ा श्रेष्ठी  नहीं था उसने विम्बिसार  से प्रार्थना की कि अपने राज्य में एक बड़ा  श्रेष्ठी  दीजिएजो हमारे राज्य को भी अलंकृत करें विम्बिसार  की सभा में प्रसनजीत की प्रार्थना पर विचार हुआ और अंत में निश्चित हुआ कि पाँच श्रेष्ठियों में से कोई नहीं जा सकता पर मेण्डक के पुत्र धनंजय को भेजा जा सकता हैविम्बिसार  की आज्ञा से धनंजय ने कोसल राज्य में जाकर साकेत नगर को समलंकृत किया|
 भगवान बुद्ध  जब भद्दिया से अपने साढ़े बारह सौ शिष्यों के साथ अंगुत्तराप (भागलपुर का उत्तरी हिस्सा और सहरसा का भाग) में चलेंतब मेण्डक गृहपति नमकतेलमधुचावल और अन्य भोज्य पदार्थ बैलगाड़ीयों  पर लादकर तथा 1250 दुधारू गायों के साथ लेकरएक जंगल में पँहुच उनसे मिला उसने संपूर्ण बौद्ध संघ का गायों के ताजा दूध से सत्कार किया|  उसी समय बुद्ध ने मेण्डक की प्रार्थना पर भिक्षुओं के लिए पंच-गोरस’ तथा  कठिन मार्ग के लिए पाथेय संचय’ का विधान किया पुस्तक के आधार पर भदरिया  में विम्बिसार  जो इस पूरे प्रक्षेत्र का राजा थाउसी के राज्य में मेण्डक नाम का श्रेष्ठी  रहता था ज्योतिय,जटिल,  मेण्डक पूर्णक और काकवलिय ये विम्बिसार के राज्य के पाँच करोड़पति सेठ थे|
 इस आधार पर हम  कह सकते है कि उस समय भदरिया  काफी सुविधा संपन्न था उस समय इसका नाम भद्दिया’ था जो कालांतर में भदरिया के नाम से परिवर्तित हो गया |
विद्वान लेखक राहुल सांस्कृत्यायन के सारनाथ वाराणसी के प्रकाशित बुद्धाचार्य के पृष्ठ संख्या -१४१ में मेण्डक दीक्षा अध्याय में तथा बौद्ध धर्म और बिहार में भगवान बुद्ध का भदरिया पहुंचने तथा भद्दिया के श्रेष्ठी मेण्डक के द्वारा बौद्ध धर्म में दीक्षित होने का प्रमाण वर्णित है।
इसी  पुस्तक के पृष्ठ संख्या 142 में मेण्डक के पुत्र धनंजय की पुत्री विशाखा के जन्म की चर्चा की गई है|  राहुल सांस्कृत्यायन ने लिखा है विशाखा का जन्म अंगदेश के भद्दिया नगर में मेण्डक श्रेष्ठी  के पुत्र धनंजय श्रेष्ठी  कि अग्रमहिषी सुमना देवी की कोख से हुआ था|
इस पृष्ठ भद्दिया (जो गंगा के दक्षिण वर्तमान भागलपुर बिहार ) में अवस्थित हैमें बुद्ध  के आने  और विशाखा के  द्वारा अपने परिवार की पाँच सौ कन्याओं तथा दासियों के साथ पाँच सौ रथों पर चढ़कर द्शबल की अगवानी करने की चर्चा की गई है  |
इस घटना से साबित होता है कि उस समय भदरिया  एक बड़ा नगर था और मेण्डक वहां का सबसे धनी श्रेष्ठी  था |
इसी पुस्तक में बुद्ध  के द्वारा अपने भिक्षुओं को पंच गोरस (दूध,दही,छाछमक्खन और घी) तथा पाथेय संचय का विधान करने का विस्तृत वर्णन है ,जिसका विधान इस धर्ममें कभी नहीं था
इसके बारे में आचार्य राहुल सांस्कृत्यायन लिखते हैं कि बुद्ध तब भद्दिया में इच्छा अनुसार विहार कर मेण्डक गृहपति को बिना पूछे ही साढ़े बारह सौ के महान भिक्षु संघ के साथ भगवान जहाँ अंगुत्ताराप था वहाँ  चारिका के लिए चल दिये जब यह बात मेण्डक गृहपति को मालूम हुआ तो रास्ते में वह भगवान के पास जाकर अभिवादन कर खड़ा  हो गया और कहां  “भन्ते! भिक्षु संघ सहित भगवान कल का मेरा भात स्वीकार करें”  भगवान ने मौन से स्वीकार किया जातिवन से चरिका करते हुए बुद्ध अंगुत्ताराप के आपण(संभवत सहरसा जिले में अवस्थित महिषी )चल पड़े  मेण्डक को रास्ते की कठिनता का ज्ञान था उन्होंने भगवान को इससे अवगत  कराया और बौद्ध भिक्षुओं के लिए पाथेय’ और पंचगोरस” ग्रहण करने  के लिए अनुज्ञा मांगी जो उस समय बौद्ध भिक्षुओं के लिए पूर्णत: वर्जित था भगवान में वहीं  बौद्ध भिक्षुओं के लिए इस दोनों की अनुज्ञा दी |
वैसे तो उस समय का भद्दिया नगर समय के थपेड़ों से कुछ छोटे से गांव भदरिया”  में परिवर्तित हो गया है पर भूमि वही है जहां भगवान बुद्ध के चरण रज पड़े थे|
ज्ञान की भूमि बिहार में भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. भगवान बुद्ध के शिष्या विशाखा ने भदरिया गांव में कालांतर में जन्म लिया  था. उस जगह पर भगवान बुद्ध के चरण की स्थापना की गयी. मालूम हो कि 24 नवंबर 2014 को भी इसी गांव में जापान के बौद्ध भिक्षु ने बोधि वृक्ष भी लगाया था. जापान के आर्य भन्ते केनिन इतो ने भदरिया गांव में भगवान बुद्ध का चरण की स्थापना की | यहाँ के ग्रामीणों ने बताया कि भगवान बुद्ध के भदरिया गांव में काफी दिनों तक ठहरने के कई ग्रंथ में प्रमाण हैं। इसलिए यहां भगवान बुद्ध के सप्तपाद का पहला चरण बोधगया से लाकर स्थापित किया गया है।
 शोधार्थी एवं सरकार की नजरों से दूर यह पूरा क्षेत्र अतिपिछड़ा क्षेत्र हैजहाँ सड़कबिजली जैसी मूलभूत  आवश्यकता का सर्वथा अभाव है|  जरूरत इस बात की है कि इस पूरे क्षेत्र में उत्खनन कार्य किया जाए ताकि अतीत की सुनहरी ऐतिहासिक विरासत से पूरी दुनिया वाकिफ हो सके और भगवान बुद्ध को सबलोग पूर्णत: आत्मसात कर सकें |अगर सरकार एवं यहाँकी जनता का सार्थक प्रयास हो तो यह बुद्धभूमि जहाँ उनके चरण रज पड़े थे, पर्यटन के दृष्टिकोण से भारत का प्रमुखस्थल हो जायेगा