कहाॅं बाटे पाक के नाक
कहाॅं बाटे पाक के नाक ,कि नाक ओकर कटाई ।
पाक के मुॅंह गोर कहिया ,
कि मुॅंह करिखा पोताई ।।
का करब कपार छिलवा ,
सुभावे कपार छिलाईल ।
इज्जत त बा ओकर जे ,
सब संग चले मिलाईल।।
जेकर सुभाव बा कुभाव ,
सुभावे करिखा पोतल बा ।
का होई ओहसे बतियाई ,
दिमाग में खाली बोतल बा ।।
लात के जे भूत होखे ,
ना सुनी बतियवला से ।
लात के भूत उहे कहाला ,
जे सुनेला जूतियवला से ।।
पाक त ह घास अईसन ,
जड़ होखे ओकर बला के ।
जड़ से उखाड़ रखीं घास ,
फेर फेंकीं ओकरा जलाके ।।
घास के चाहे सड़ा गला दीं ,
चाहे पचीसो साल सूखा दीं ।
दू बूॅंद पानी देके त देखीं ,
हिर्दय राउर फेर दुखा दी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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