
भारतीय जन क्रान्ति दल के
राष्ट्रीय प्रवक्ता ने रामजी महतो के मौत
पर बिहार सरकार की कड़ी निंदा की और उन्हों ने कहाकि लॉकडाउन में दिल्ली से पैदल
चलकर अपने गांव बिहार के बेगूसराय के लिए निकले रामजी महतो ने बनारस आते आते दम
तोड़ दिया I बेगूसराय के बखरी का मूल निवासी रामजी महतो दिल्ली में वाहन चालक था I
वह लॉकडाउन के बाद पैदल अपने घर के लिए निकला था I
सोशल मीडिया में रामजी महतो की मार्मिक तस्वीर वायरल हुई है
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रामजी महतो 850 किमी से ज्यादा का सफर तय कर चुका था,
लगभग 375 किमी का सफर बाकी था I बदनसीबी ऐसी कि दिल्ली से पैदल बेगूसराय जा रहे रामजी महतो
की मौत के बाद उसकी मां और बहन ने बनारस आकर शव भी नहीं ले सके,
क्योंकि उनके पास ना तो पैसे थे ना ही कोई साधन सहारा था I
अपने गांव लौटने की आस में
अभावग्रस्त रामजी महतो दिल्ली से हीं पैदल निकला था और पैदल चलते चलते जब बनारस के
मोहनसराय क्षेत्र पहुंचा तो वह सड़क पर बेसुध होकर गिर पड़ा I
मोहनसराय क्षेत्र के ग्रामीणों के अनुसार रामजी सड़क पर
गिरा था तो उसकी सांस तेज चल रही थी I सूचना पाकर मौके पर आए एंबुलेंस कर्मी रामजी को कोरोना
संदिग्ध समझकर उसे हाथ भी नहीं लगा रहे थे I रामजी सड़क पर तड़पता रहा तो मौके पर पहुंचे मोहनसराय चौकी
प्रभारी ने एंबुलेंस कर्मियों को फटकारा I जिसके बाद उसे लेकर अस्पताल ले जाया गया I
लेकिन तब तक बदनसीब रामजी की मौत हो चुकी थी I
जब उसके मृत लाश का पोस्ट मार्टम हुआ तो पता चला पेट में एक
भी दाना नहीं था I
बेगूसराय निवासी वाहन चालक
रामजी महतो की मौत के बाद उसके पास से मिले मोबाइल नंबर की मदद से स्थानीय पुलिस
ने उसकी बहन नीला देवी और मां चंद्रकला से बात की I दोनों ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह
बनारस आ पाएं I ऊपर से लॉकडाउन में परमिशन के ल्लिये अफसरों तक चक्कर लगाने में वह असमर्थ हैं
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शव का पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि रामजी महतो के पेट में
एक भी दाना नहीं था I परिवार की विवशता देखने के बाद बेगूसराय के रामजी महतो का
अंतिम संस्कार उन पुलिसवालों ने बनारस में ही कर दिया I
यहाँ प्रश्न उठता है कि आखिरकार इसके बावजूद क्यों
संवेदनहीन रही बिहार सरकार I मिडिया मनेजमेंट के मास्टर खिलाड़ी के कारण बिहार की मिडिया
में आखिर क्यों दफन हो गई यह बड़ी दुर्घटना ?
बिहार की 12 करोड़ जनता से सीधा सवाल है कि अगर बिहार में ही रोजी
रोजगार का अवसर उपलब्ध रहता तो आखिर क्यों बिहारियों को अपने रोजी रोजगार की तलास
में दुसरे राज्यों में जाना पड़ता ?
बिहार की जनता भावना प्रधान होती
है और यहाँ के कुटिल राजनीतिग्य बड़ा शातिर षड्यंत्रकारी सोंच के होते हैं I
अपने निहित स्वार्थ में जनता को जातीय,
उपजातीय, धार्मिक, क्षेत्रीय, भाषाई रूपी कुत्सित सोंघ की राजनीति में उलझाकर उनका
भावनात्मक शोषण कर सत्ताशीन हो जाते है और बिहार की मूल समस्याओं का निराकरण
जानबूझकर नहीं करते हैं I
बिहार की 12 करोड़ जनता को गंभीरता से सोंच विचार करना चाहिए कि आखिर अब
तक बिहार का औद्धोगिक विकास क्यों नहीं हुआ ? बिहार की भूमि उर्वरा है लेकिन एक तरफ बाढ़ तो एक तरफ सुखाड़
रहता है ऐसी स्थिति में अब तक जल प्रबंधन क्यों नहीं हुआ ?
अगर 15 साल के शासन काल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने
औद्ध्योगिक विकास या फिर जल प्रबंधन किया होता तो आज बिहारियों को अपने राज्य से
बाहर निर्वासित जीवन जीने पर मजबूर नहीं होना पड़ता I
मुख्यमत्री अनेकानेक बार भाषणों
में अपने शब्दजाल में बड़े ही दावे से कहा है कि अप्रवासी बिहारियों को बिहार में
ही रोजगार का अवसर मुहैया करायेंगे कि अप्रवासी बिहारी दुबारा बिहार छोड़कर अन्य
राज्यों में नहीं जायेंगे I यहाँ प्रश्न उठता है कि उनके वायदों का दावों का क्या हाल
हुआ ?
कोरोना महामारी ने बिहार के
मुख्यमंत्री के दोहरे चरित्र का पर्दाफांस कर दिया है बिलकुल हीं उनका दोहरा
चरित्र उजागर हो गया है I
बिहार में इसी साल चुनाव होने
वाले हैं और यदि सारे के सारे अप्रवासी बिहारी अपने राज्य बिहार में आ जायेंगे तो
निश्चित रूप से वे, उनका परिवार, उनके गाँव-समाज के लोग, उनके जातीय व उपजातीय लोग जरुर विचार मंथन करेंगे कि किस
पाप किस श्राप की सजा बिहारियों को भुगतना पड़ रहा है ? आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी बिहारियों को दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए
निर्वासित जीवन बिताना पड़ता है और इसके लिए कौन जिम्मेवार हैं ? इसका मूल कारण क्या है ? तो निश्चित रूप से उन्हें उनके प्रश्नों का जबाब उनके
अंतर्मन से मिल जाएगा I
निश्चित रूप से बिहारियों के मन से
अगर जातीय संक्रीनता, उपजातीय संक्रीनता, भाषाईवाद विवाद ,क्षेत्रिता की संक्रीनता,धार्मिक संक्रीनता भाव ख़त्म होकर बिहार के लिए बिहारी समाज
के लिए विकास की भावनाएं जागृत हो जाय तो बिहार का कायाकल्प हो सकता है I
साथ ही साथ सुशासन बाबु का चेहरा भी बेनकाब हो जाएगा जो
विकास पुरुष का चोला ओढ़ कर खुद मेवा मलाई खा रहे हैं और उनके खासमखास सन्निकट के
चाटुकार राजभोग भोग रहे हैं I मुख्यमत्री नीतीश कुमार के सत्तालोलुपता,भोगविलासिता,अदुर्दार्शिता,संक्रिनता की मीमांशाओं के कारण हीं बिहार प्राकृतिक रूप से
परिपूर्ण होने के बावजूद भी अभावग्रस्त है I
बिहार विधानसभा चुनाव के
समय यह जनता के समक्ष विचारणीय मुद्दा बनना चाहिए जिसका सार्थक और दूरगामी परिणाम
बिहार की राजनीति के लिए होगा I