भारतीय जन क्रान्ति दल के कार्यालय में
क्रान्ति के अग्रदूत वीर वावू कुँवरसिंह जी को उनके जन्मदिवस के अवसर पर राष्ट्रीय
महासचिव डॉ राकेश दत्त मिश्र ने श्रधान्जली अर्पित की | इस मौके पर पार्टी के सभी
पदाधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित रहें |
डॉ मिश्र ने कहाकि आज
भारत के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बाबु कुंवर सिंह जी का
जन्मोत्सव है हम उन्हें अपने और अपनी पार्टी की और से शत-शत नमन करते है | बाबु कुँवरसिंह सन 1857
के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक
थे।अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे। बाबु
कुँवरसिंह जी 80 वर्ष की उम्र में भी अंग्रेजो से लड़ें और विजय हासिल किया था | वीर कुंवर सिंह का जन्म 23 अप्रैल 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से थे। उनके माताजी
का नाम पंचरत्न कुंवर था. उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु
सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव
सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा
लड़ते रहे। बिहार
की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़
के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी
और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों
का नेतृत्व किया| 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और
अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों
की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने
आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई
हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए। आरा पर फिर से कब्जा जमाने
के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को
जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू
कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां,
आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के
नगाड़े बजाते रहे। ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, 'उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान
के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब
थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही
भारत छोड़ना पड़ता।'