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श्रीमद् देवी भागवत् पुराण सभी शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रंथों में महान है


श्रीमद् देवी भागवत् पुराण सभी शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रंथों में महान है

पंडित श्रीकृष्ण दत्त शर्माअवकाश प्राप्त अध्यापक
सी 5/10 यमुनाविहार दिल्ली
मोबाइल न0 8130859839 
श्रीदेवीभागवत महापुराण की महिमा अपरंपार है। श्रीमद्देवीभागवत को महापुराण के रूप में मान्यता प्राप्त है. इस पुराण में आद्यशक्ति देवी भगवती की उपासना की गई है। इसका परम लक्ष्य परमात्म तत्व से जीव तत्व को जोड़ना है।।
मित्रों, देवी भागवत पुराण के परम पवित्र वेद की प्रसिद्ध श्रुतियों के अर्थ से अनुमोदित, अखिल शास्त्रों के रहस्य स्रोत को समझने की कोशिश करेंगे, और आगमों में अपना प्रसिद्ध स्थान रखने वाली देवी भागवत पुराण का रसास्वादन करेंगे, देवी भागवत पुराण सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, वंशानुकीर्ति, मन्वन्तर और पाँचों लक्षणों से पूर्ण हैं, पराम्बा भगवती के पवित्र आख्यानों से युक्त है।
सज्जनों, एक बार भगवत्-अनुरागी तथा पुण्यात्मा महर्षियों ने श्री वेदव्यासजी के परम शिष्य सूतजी महाराज से प्रार्थना की, और कहां- हे ज्ञान के सागर, आपके श्रीमुख से भगवान् विष्णुजी और भगवान् शंकरजी के दैवी चरित्र तथा अद्भुत लीलायों का श्रवण कर हम बहुत सुखी हुयें, और ईश्वर में आस्था बढ़ी और ज्ञान भी प्राप्त किया।
अब आप कृपा कर मानव जाति को समस्त सुखों को उपलब्ध करवाने वाले, आत्मिक शक्ति प्रदान करने वाले तथा भोग और मोक्ष प्रदान करवाने वाले पवित्रतम् पुराण का आख्यान सुनाकर हम सभी ऋषियों को अनुगृहीत करें, सूतजी महाराज ने ज्ञानेच्छु (ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक) और विनम्र महात्माओं की निष्कपट अभिलाषा को जानकर महामुनि सूतजी ने अनुग्रह को स्वीकार किया।
महात्मा सूतजी ने कहा- जन कल्याण की लालसा से आपने बड़ी सुंदर इच्छा प्रकट की, मैं आप लोगों को जरूर सुनाता हूँ, यह सच है कि श्रीमद् देवी भागवत् पुराण सभी शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रंथों में महान है, इस पुराण के सामने बड़े-बड़े तीर्थ और व्रत भी नगण्य हैं, इस पुराण के सुनने से पाप सूखे वन की भांति जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे मनुष्य को शोक, क्लेश, दु:ख और भी व्याधि को भोगने नहीं पड़ते।
जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के सामने अंधकार छंट जाता है, उसी प्रकार भागवत् पुराण के श्रवण से मनुष्य के सभी कष्ट, व्याधियां और संकोच समाप्त हो जाते हैं, महात्माओं ने सूतजी से भागवत् पुराण के संबंध में ये कुछ प्रश्न रखे कि पवित्र श्रीमद् देवी भागवत् पुराण का आविर्भाव कब हुआ? इसके पठन-पाठन का समय क्या है? इस पुराण के श्रवण-पठन से किन-किन कामनाओं की पूर्ति होती है? और सर्वप्रथम इसका श्रवण किसने किया? तथा इसके पारायण की विधि क्या है?
महात्माओं के प्रश्नों के उत्तर में सूतजी महाराज कहते हैं- महर्षि पराशर और देवी सत्यवती के संयोग से श्रीनारायण के अंशावतार देव व्यासजी का जन्म हुआ, व्यासजी ने अपने समय और समाज की स्थिति को पहचानते हुये वेदों को चार भागों में विभक्त किया, अपने चार पटु और होनहार शिष्यों को उनका बोध कराया, इसके पश्चात् वेदाध्ययन के अधिकार से वंचित नर-नारियों और मंदबुद्धियों मनुष्य के कल्याण के लिए अट्ठारह पुराणों की रचना की।
ताकि धर्म से वंचित व्यक्ति भी धर्म-पालन में समर्थ हो सकें, सूतजी ने कहा-महात्मन्! गुरुजी के आदेशानुसार सत्रह पुराणों के प्रसार एवं प्रचार का दायित्व मुझ पर आया, किंतु भोग और मोक्षदाता भागवत पुराण स्वयं गुरुजी ने जन्मेजय को सुनाया, आप सभी यह बात जानते होंगे कि जन्मेजय के पिता राजा परीक्षित को तक्षक सर्प ने डस लिया था, और राजा जन्मेजय ने अपने पिता के कल्याण के लिए श्रीमद् देवी भागवत् पुराण का श्रवण किया था।
देवी पुराण के पढ़ने एवं सुनने से भयंकर रोग, अतिवृष्टि, अनावृष्टि भूत-प्रेत बाधा, कष्ट योग और दूसरे आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आधिदैहिक जैसे सभी कष्टों का निवारण हो जाता है, सूतजी ने इसके लिए एक कथा का उल्लेख करते हुए कहा- वसुदेवजी द्वारा देवी भागवत पुराण को पारायण का फल ही था कि प्रसेनजित को ढूंढ़ने गये भगवान् श्रीकृष्ण संकट से मुक्त होकर सकुशल घर लौट आये थे।
सज्जनों! बात उस समय की है, जब समयन्तक मणि के गुम जाने के कारण भगवान् श्रीकृष्ण पर सयमन्तक मणि का चोरी का आरोप लग गया था, तब भगवान् श्रीकृष्ण अपने कुछ साथियों को लेकर मणि की खोज के लिये एक गुफा में प्रवेश कर गये, अपने साथीओं को बाहर रहकर प्रतीक्षा करने के लिए कहकर स्वयं कृष्ण गुफा के भीतर प्रवेश कर गयें।
जब काफी समय के बाद भी श्री कृष्ण के वापस न आने पर निराश होकर सभी साथी वहाँ से वापस लौट आये और श्रीकृष्ण के मारे जाने का मिथ्या प्रचार कर दिया, कृष्ण के न लौटने पर उनके पिता वसुदेव पुत्र के शोक में व्यथित हो उठे, उसी समय महर्षि नारदजी का आगमन हुआ, नारदजी ने वसुदेवजी से श्रीमद् देवी भागवत पुराण के श्रवण का आदेश दिया, वसुदेवजी माँ भगवती की कृपा से पूर्व परिचित थे।
वसुदेवजी ने नारदजी से कहा- देवर्षि, देवकी के साथ कारागारवास के समय जब छ: पुत्र कंस के हाथों मारे जा चुके थे, तो हम दोनों पति-पत्नी काफी व्यथित और अंसतुलित हो गये थे, तब अपने कुल पुरोहित महर्षि गर्गजी से परामर्श किया और कष्ट से छुटकारा पाने का उपाय पूछा, तब गुरुदेव ने जगदम्बा माँ की गाथा का पारायण करने को कहा, तथा कारागार में होने के कारण मेरे लिये यह सब संभव नहीं था, अत: गुरुदेव से ही यह कार्य संपन्न कराने की प्रार्थना की।
वसुदेवजी की प्रार्थना को स्वीकार करते हुये गुरुदेव गर्गाचार्यजी ने विंध्याचल पर्वत पर जाकर ब्राह्मणों के साथ देवी की आराधना और अर्चना की, विधि-विधानपूर्वक देवी भागवत का नवाह्र यज्ञ किया, अनुष्ठान पूर्ण होने पर गुरुदेव ने वसुदेवजी को इसकी सूचना देते हुये कहा कि देवी ने प्रसन्न होकर यह आकाशवाणी की है, तथा माँ भगवती की अनुकम्पा से स्वयं परब्रह्म भगवान् विष्णुजी पृथ्वी के कष्ट निवारण हेतु वसुदेव-देवकी के घर अवतार लेंगे।
वसुदेवजी को आदेश देते हुये यह भी कहा कि वसुदेवजी को चाहिये कि उस बालक को गोकुल ग्राम के नंद-यशोदा के घर पहुंचा दें, और उसी समय उत्पन्न यशोदा की बालिका को लाकर आठवीं संतान के रूप में कंस को सौंप दें, कंस यथावत् बालिका को धरती पर पटक देगा, वह बालिका कंस के हाथ से तत्काल छूटकर दिव्य माँ भगवती का दिव्य शरीर धारण कर, मेरे ही अंश रूप से लोक कल्याण के लिये विध्यांचल पर्वत पर वास करेगी।
वसुदेवजी देवर्षि नारदजी को कहते हैं कि मुनि गर्गाचार्यजी के द्वारा इस अनुष्ठान फल को सुन कर मैंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुये आगे घटी घटनायें मुनि के कथनानुसार पूरी कीं और कृष्ण की रक्षा की, यह विवरण सुनाकर वसुदेवजी नारदजी से कहने लगे-मुनिवर! सौभाग्य से आपका आगमन मेरे लिए शुभ है, अत: आप ही मुझे देवी भागवत पुराण की कथा सुनाकर उपकृत करें।
इस पुराण के श्रवण से दरिद्र धनी, रोगी-नीरोगी तथा पुत्रहीन स्त्री पुत्रवती हो जाती है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र चतुर्वर्णों के व्यक्तियों द्वारा समान रूप से पठनीय एवं श्रवण योग्य यह पुराण आयु, विद्या, बल, धन, यश तथा प्रतिष्ठा देने वाला अनुपम ग्रंथ है, सूतजी बोले- देवी भागवत की कथा श्रवण करने से भक्तों और श्रद्धालु श्रोताओं को ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है।
मात्र क्षणभर की भी कथा श्रवण से भी देवी के भक्तों को कभी कष्ट नहीं झेलना होता, सभी तीर्थों और व्रतों का फल देवी भागवत के एक बार के श्रवण मात्र से प्राप्त हो जाता है, सतयुग, त्रेता तथा द्वापर में तो मनुष्य के लिए अनेक धर्म-कर्म हैं, किंतु कलियुग में तो पुराण सुनने के अतिरिक्त कोई अन्य धार्मिक आचरण नहीं है, कलियुग के धर्म कर्महीन तथा आचारहीन मनुष्यों के कल्याण के लिये ही श्री व्यासजी ने अमृतमय् पुराण का सृजन किया था।
देवी पुराण के श्रवण के लिये तो सभी समय फलदायी है, किंतु फिर भी आश्विन, चैत्र, मार्गशीर्ष तथा आषाढ़ मासों एवं दोनों नवरात्रों में पुराण के श्रवण से विशेष पुण्य होता है, वास्तव में यह पुराण नवाह्र यज्ञ है, जो सभी पुण्य कर्मों से सर्वोपरि एवं निश्चित फलदायक है, इस नवाह्न यज्ञ से छली, मूर्ख, अमित्र, वेद-विमुख, निंदक, चोर, व्यभिचारी, उठाईगीर, मिथ्याचारी, गो हत्यारा तथा ब्राह्मण निंदक तथा गुरुद्रोही जैसे भयानक पापी वयक्ति भी शुद्ध और पापरहित हो जाते हैं।
न गंगा न गया न काशी न नैमिषं न मथुरा न पुष्करम्।
पुनाति सद्य: बदरीवनं नो यथा हि देवीमख एष विप्रा:।।
गंगाजी, गयाजी तीर्थ, काशी, नैमिषारण्य, मथुरा, पुष्कर और बदरीवन जैसे तीर्थों की यात्रा से भी वह फल प्राप्त नहीं हो पाता, जो नवाह्र पारायण रूप देवी भागवत श्रवण यज्ञ से प्राप्त होता है, बड़े-बड़े व्रतों, तीर्थ-यात्राओं, बृहद् यज्ञों या तपों से भी वह पुण्य फल प्राप्त नहीं होता जो श्रीमद् देवी भागवत् पुराण के नवाह्र पारायण से प्राप्त होता है, इस पुराण की महिमा इतनी महान् है कि नियमपूर्वक एक-आध श्लोक का पारायण करने वाला भक्त भी मां भगवती की कृपा प्राप्त कर लेता है।
भाई-बहनों, पूरे विश्व में करोना के नाम की महामारी फैली हुई है और सभी देश अपने-अपने नागरिकों को बचाने की हर संभव कोशिश कर रहे है, हमारे देश की और सभी राज्यों की सरकारें भी इस महामारी से निपटने की कोशिश कर रहीं है, हम सभी नागरिकों का भी फर्ज तथा जिम्मेदारी है कि सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करें, हमें घर पर रहते हुये बाहर सड़कों पर न निकलने के निर्देश दिये गये है, हम सभी सरकार के निर्देश मानने के लिये बाध्य है।
दोस्तों, संयोग से इस समय तपस्या और भक्ति के लिये सबसे उत्तम समय यानी देवताओं की नवरात्रि की शुरुआत हुई है, क्यों न इस समय को माँ भगवती को प्रसन्न करने में लगाये, ताकी सरकार के निर्देश का पालन भी हो जायें और माता की भक्ति भी हो जायें, कल फिर माँ भगवती के भक्ति आराधना के साथ उपस्थित होने की कोशिश करूँगा, माँ भगवती इस महामारी से हम सभी की रक्षा करें।
जय माँ चामुण्डा!
ओऊम् ह्रिं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे