बुढापा अपने आप एक रोग ।
कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425
बुढापा अपने आप एक रोग ।
स्वयं शिथिल होने लगता सब अंगों का उपयोग ।
बुढापा अपने आप एक रोग ।।
भरी कुलाँचे बचपन में तो देख सभी जन दंग ।
चढ़ी जवानी जज्बातों में जोश जुनून उमंग ।।
वानप्रस्थ आते-आते अब होने लगा वियोग ।
बुढापा अपने आप एक रोग ।।
कर्म इन्द्रियाँ कहा न माने ज्ञान इन्द्रियाँ सुस्त ।
सभी पुराने जाने लगे गये आई नई अब पुस्त ।
अमृततुल्य परोसा नहीं सुहाये छप्पन भोग ।
बुढापा स्वयं बड़ा एक रोग ।।
बाहर की हर धाक गई अब घर में हुये उदास ।
बहुत बुलाने पर भी परिजन आये नहीं अब पास ।।
कफ-पित-वात हुआ तीनों का एक साथ संयोग ।
बुढापा स्वयं महाँ एक रोग ।
अंग हुये सामर्थ्यहीन सब दृष्टिहीन अब नैन ।
करवट कोई फिराबे फिर भी मिले नहीं चितचैन ।।
जाने को प्रभु-पास खड़े टकटकी लगाये लोग ।
बुढापा स्वयं-सिद्ध एक रोग ।।
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