पंडित श्रीकृष्ण दत्त शर्मा,
भक्तो की पुकार पर हनुमानजी तुरन्त चले आते
हैं और उनके कष्ट-क्लेशों को पल भर में दूर कर देते हैं, पवन तो बहुत सुलभ है इसलिए लोग बहुत कम याद
करते हैं, दुर्लभ की याद बहुत लोग करते हैं, हीरा दुलर्भ है बडा कीमती, उससे सस्ते तो अनाज है
लेकिन उनकी भी कीमत है।

पहले विकार मन में आता है तन में उसका
प्रदर्शन बाद में होता है, पहले दोष, दुर्गुण मन में आते हैं, चाट खानी है यह विचार मन
में पहले आया, पेट में विकार उसके बाद आता है, मदिरा पीनी है मन में विचार पहले आएगा, शरीर नाली
में गिरा है विकार बाद में दिखाई देता है, तो यह क्लेश है,
विकार है, जो मन को मैला करते हैं, तन को रूलाते है वें विकार है, और ये दोनों साथ-रहते
हैं।
तन में यदि विकार है तो इसका अर्थ है पहले मन
में कोई न कोई विकार अवश्य आया होगा जिसका आपने पालन किया है, परिणाम उसका तन भोग रहा है, इनको यदि कोई दूर कर सकता है तो बल, बुद्धि, विधा, संकल्प का बल, विचार की
शक्ति और अज्ञान के मार्ग से विरक्ति ये तीनों ही आपको अन्याय से, अधर्म से बचा सकते हैं, गोस्वामीजी ने हनुमानजी से
विनय की है, श्री हनुमान चालीसा का शुभारंभ भी हुआ जय हनुमान
से और समापन भी जय हनुमान से हो रहा है।
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।।
जय संकल्प का प्रतीक है, हनुमानजी संकल्प के प्रतिक है जो संकल्प
लेते हैं वो पूर्ण होता है और जय-विजय का प्रतीक है जय जय का प्रतीक है, श्री हनुमानजी की सदा जय होतीं हैं, कभी भी हनुमानजी
परास्त नहीं होते और केवल गोस्वामीजी कहते हैं जो सदैव हनुमानजी की शरण में रहते
हैं उनकी भी हमेशा जय होती है।
जै जै जै हनुमान गौसाई ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।।
यह नियम है कि संकल्पवान हमेशा विजयी होता है
जो संशय में डूबा है, सन्देह में डूबा है, होगा कि नहीं होगा, वो पराजित होगा, होगा कैसे नहीं हनुमानजी मैरे साथ है इस संकल्प के साथ हम कार्य करेंगे तो
वह कार्य अवश्य होगा, जय हनुमान गोस्वामीजी ने हनुमान शब्द
का प्रयोग किया है, हनुमान का अर्थ है जिन्होंने अपने मान का
हनन कर दिया हो जिन्होंने अपने सभी प्रकार के अहं का हनन कर दिया हो वो हनुमानजी
है।
इनके बचपन की कथा है जब इनका जन्म हुआ तो
अंजनी माता फल लेने के लिए पालने में छोडकर जंगल में गयी है, उस दिन प्रात:काल आकाश में सूर्य उदित हो
रहे थे लाल लाल रसीला कोई फल प्रकट हुआ है ऐसा हनुमानजी को लगा और वहां से उछाल
मार दी और उनहोंने सूर्य को पकडकर मुंह में ले लिया।
सारी सृष्टि में अंधकार छा गया, बाद में इन्द्र ने आकर अपने वज्र का प्रहार
किया जिससे इनकी ठोढी थोडी टेढी हो गई लेकिन हनुमानजी की तो थोडी सी ठोढी टेढी हुई
थी परन्तु हनुमानजी से टकराकर इन्द्र का जो वज्र था उसकी धार सदा-सदा के लिए
समाप्त हो गयीं, तबसे इनका नाम हनुमान पड गया, हनु जिनकी थोडी सी ठोढी टेढी है उसको हनुमान कहते हैं,
लेकिन हनुमान के अनेक अर्थ है, मूल में हम जिनकी चर्चा करेंगे जिन्होंने
अपने मान का हनन कर लिया है, भगवान की आप झांकी देखिये इसमें
आप हमेशा लक्ष्मणजी को साथ में नहीं देखेंगे, आप हमेशा भरतजी,
शत्रुघ्नजी, को भी साथ नहीं देखेंगे, लेकिन प्रभु की प्रत्येक झांकी में हनुमानजी को सदा साथ में देखेंगे,
हनुमानजी को भगवान सदैव अपने पास रखते हैं क्योंकि इन्होने अपने मान
को छोड दिया।
इन्होने तीन चीजें छोडी और जो तीन चीजें छोड
देता है भगवान उन्हें हमेशा अपने साथ रखते है, एक तो हनुमानजी ने अपना नाम छोडा आज तक कोई हनुमानजी का नाम
ही नहीं बता पाया, ये जो हनुमानजी के नाम हैं वे उनके नाम
नहीं है, गुण है, पवनपुत्र, अंजनीपुत्र, बजरंगबली, वायुपुत्र,
महाबली, रामेष्ट, पिंगाक्ष,
सीताशोक विनाषन, लक्ष्मणप्राणदाता, ये सब हनुमानजी के नाम नहीं है ये तो उनके गुण है, और
हम सब नाम के पीछे हैं।
हनुमानजी ने जानबूझकर अपना नाम नहीं रखा, हनुमानजी से जब कोई नाम पूछते हैं तो
हनुमानजी कहते हैं अरे, बन्दर का नाम क्या पूछते हो, नाम बन्दर का मत लो, नाम तो किसी सुन्दर का लो,
पूछा सुन्दर कौन है, हनुमानजी ने कहा सुन्दर
तो वह केवल दो ही हैं! !!!
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम।
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम।।
जो भी कोई नाम पूछता है, हनुमानजी नाम तो नहीं बताते उसको रामकथा
सुनाने लग जाते हैं, विभीषणजी के यहाँ हनुमानजी आए पूरी
रामकथा सुना दी, "तब हनुमंत कही सब राम कथा" तो
विभीषण ने कहा महाराज कथा तो बहुत सुन्दर सुनाई आप अपना नाम तो बताइये, हनुमानजी बोले नाम का क्या करोगे,
विभीषणजी बोले भई जिसने इतनी सुन्दर रामकथा
सुनाई उसका नाम तो मालूम होना चाहिए, हनुमानजी ने कहा नाम तो बता देंगे लेकिन नाम सुनने से पहले
नाम का माहात्म्य सुन लीजिये, नाम का माहात्म्य क्या है बोले
विभीषणजी, हनुमानजी ने कहा हमारे नाम का ये महात्म्य है कि
अगर प्रात:काल हमारा नाम ले लोगे तो उस दिन आपको भोजन नहीं मिलेगा
प्रात लेइ जो नाम हमारा।
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।
बोले नाम बताएँ तो विभीषणजी बोले रहने दो जब
भोजन ही न मिले तो नाम का फायदा ही क्या, हनुमानजी अपना नाम छुपाते है भगवान की कथा को प्रकट करने के
लिए, और जैसे तो पहले अपना नाम छपवाते है, कथा उसके बाद आती है, हनुमानजी अपने नाम को छुपाते
है कथा को पहले प्रकट करते हैं।
जय श्री रामजी!
जय श्री हनुमानजी!
पंडित श्रीकृष्ण दत्त शर्मा,
अवकाश प्राप्त अध्यापक
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