प्रतिद्वंद्वी हित है!

हवा विपरीत है!
प्रतिद्वंद्वी हित है!!
जो कल देख देख भरता था आंहे,
आज है उसी के संग-संग गलबांहे,
कब पलटी मिले और हम चढ जायें-
लगी है इसी पर आज भी निगाहें,
नहीं पता चलता देखकर-
ओ पट है या की चित है!!
जिसे देखकर खौलना चाहिए खुन,
उसे देखकर आज बना रहा सगुन,
साध अविश्वास का स्वप्न विकास का-
नहीं दिख रहा है बर्बादी का जुनून,
कर रहा कदमताल-
और गा रहा गीत है!!
आस्तीन का सांप एक दिन काटेगा,
स्वार्थ की सिद्धि में बोटी-बोटी बांटेगा,
जी रहा गफलत में,पांव रख नफरत में-
कोई आंच आने पर आगे बढ़ डांटेगा,
मन का देख चालढाल-
ये आत्मा भयभीत है!!
दांव का है यार सब दुश्मन जमाना,
छल-छद्म का काम है भरोसा दिलाना,
भरोसे को मारकर, रिश्ते को तारतार कर-
आदत पुरानी है घडियाली आंसू बहाना,
ये बात कहकर कि-
ये हार मेरी जीत है!!
अपनों को त्याग भाग दूर हो गया,
सोचा नहीं कभी हाय! कसुर हो गया,
झुठे ललकार में दूसरे के अधिकार में-
कठपुतली बन खुद भस्मासुर हो गया,
सगा त्याज्य अपवित्र-
पर परमनवनीत है!!
रो रहे पूर्वज सब तेरे इस कुकृत्य पर,
जान लुटाये जाता है विनाशक नृत्य पर,
अपनों पर शंका है औरों से नि:शंका है-
दांत मुंह पिसता है परिजन और भृत्य पर,
"मिश्रअणु"को जीवन का-
अनुभव बडा तीत है!!
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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