दिव्य रश्मि पत्रिका परिवार की ओर से हुतात्मा मंगल पाण्डेय जी को शत-शत नमन |
दिव्य रश्मि पत्रिका परिवार की ओर से हुतात्मा मंगल पाण्डेय जी
को शत-शत नमन |
आज आठ अप्रैल है आज ही के दिन 8 April 1857 को हुतात्मा मंगल पाण्डेय जी ने
अपने आप का बलिदान किया था |मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी
विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही १० मई सन् १८५७ को मेरठ की छावनी
में बगावत हो गयी। यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे
अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है
जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही भारत में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी
कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय के जैसा कोई दूसरा सैनिक
दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके| परन्तु
हुतात्मा मंगल पाण्डेय जी ने भारतीयों को जगाकर प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की
शुरुआत कर दी |दिव्य रश्मि पत्रिका की ओर से उन्हें शत-शत
नमन |
देश के स्वतंत्रता संग्राम में 29 मार्च के दिन की खास अहमियत
है। दरअसल 1857 में 29 मार्च को
मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की पहली चिंगारी सुलगाई थी,
जो देखते ही देखते पूरे देश में आजादी की ज्वाला में बदल गई।
अंग्रेज हुक्मरान अपनी पूरी ताकत झोंक कर इस क्रांति को दबाने में कामयाब रहे।
बंगाल की बैरकपुर छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री
के मंगल पांडे ने परेड ग्राउंड में दो अंग्रेज अफसरों पर हमला किया और फिर खुद को
गोली मारकर घायल कर लिया। उन्हें 7 अप्रैल, 1857 को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी। स्थानीय जल्लादों ने मंगल पांडेय को फांसी देने से मना कर दिया था, जिसकी वजह
से कोलकाता से चार जल्लादों को बुलाकर देश के इस जांबाज सिपाही को फांसी दी गई । देश की आने वाली पीढ़ियां
आजाद हवा में सांस ले सकें और उनका भविष्य सुरक्षित हो, इसके लिए देश
के कई नौजवानों ने अपने वर्तमान की कुर्बानी दे दी। आठ अप्रैल का दिन इन्हीं को
समर्पित है। 1857 में देश में आजादी की पहली चिंगारी सुलगाने
वाले मंगल पांडे को आठ अप्रैल के दिन फांसी दे दी गई थी। देश में धधकती आजादी की
आंच पूरी दुनिया तक पहुंचाने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त जैसे आजादी के
परवानों ने आठ अप्रैल 1929 को दिल्ली के सेंट्रल एसेंबली हॉल
में बम फेंका था। इस बम धमाके का मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं बल्कि भारत के
स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ दुनिया का ध्यान आकृष्ट करना था।
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