भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे
पड़ा?
हमारे
लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा?
एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। लेकिन वही पुराण इससे अलग कुछ दूसरी साक्षी प्रस्तुत करता है। इस ओर हमारा ध्यान नही गया, जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय
एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। लेकिन वही पुराण इससे अलग कुछ दूसरी साक्षी प्रस्तुत करता है। इस ओर हमारा ध्यान नही गया, जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय
करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था। तनक विचार करें इस विषय पर:-आज के वैज्ञानिक इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था। लेकिन सात महाद्वीप किसने बनाए क्यों बनाए और कब बनाए गये। इस ओर अनुसंधान नही किया गया। अथवा कहिए कि जान पूछकर अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी। लेकिन वायु पुराण इस ओर बड़ी रोचक कहानी हमारे सामने पेश करता है।
वायु पुराण की कहानी के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में अर्थात अब से लगभग 22 लाख वर्ष पूर्व स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था। प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नही था इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद लिया था। जिसका लड़का नाभि था, नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इस ऋषभ का पुत्र भरत था। इसी भरत के नाम पर भारतवर्ष इस देश का नाम पड़ा। उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था। राजा का अर्थ इस समय धर्म,और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था।
राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था। बाद में भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र
को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष का अर्थ है भरत का क्षेत्र। भरत के पुत्र का नाम सुमति था। इस
विषय में वायु पुराण के निम्न श्लोक पठनीय हैं—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं
जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं
ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं
जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा
बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो
नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि
सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु31-37, 38)इन्हीं श्लोकों के साथ कुछ अन्य श्लोक भी
पठनीय हैं जो वहीं प्रसंगवश उल्लिखित हैं। स्थान अभाव के कारण
यहां उसका उल्लेख करना उचित नही होगा।
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं तो उसमें पंडित जी संकल्प कराते हैं। उस संकल्प मंत्र को हम बहुत हल्के में लेते हैं, या पंडित जी की एक धार्मिक
अनुष्ठान की एक क्रिया मानकर छोड़ देते हैं। लेकिन उस।संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन
में बहुत कुछ मिल जाता है। जैसे उसमें उल्लेख आता है- जम्बू_द्वीपे_भारतखंडे_आर्याव्रत_देशांतर्गते….। ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं। इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्याव्रत कहलाता है। इस संकल्प के द्वारा हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं।
यहां उसका उल्लेख करना उचित नही होगा।
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं तो उसमें पंडित जी संकल्प कराते हैं। उस संकल्प मंत्र को हम बहुत हल्के में लेते हैं, या पंडित जी की एक धार्मिक
अनुष्ठान की एक क्रिया मानकर छोड़ देते हैं। लेकिन उस।संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन
में बहुत कुछ मिल जाता है। जैसे उसमें उल्लेख आता है- जम्बू_द्वीपे_भारतखंडे_आर्याव्रत_देशांतर्गते….। ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं। इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्याव्रत कहलाता है। इस संकल्प के द्वारा हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं।
यह
कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व
जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक
टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और
जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है। जम्बू द्वीप
में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और
विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया। धरती के
सात द्वीप : पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात
द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी
के बीचोबीच स्थित है।
'जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित: भारतं प्रथमं वर्षं तत:
किंपुरुषं स्मृतम्, हरिवर्षं तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो
द्विज। रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्, उत्तरा:
कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा। नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्, इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:। भद्राश्चं पूर्वतो मेरो:
केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- (विष्णु पुराण)
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- (विष्णु पुराण)
जम्बू द्वीप में कहां था सुमेरू पर्वत?
जम्बू द्वीप
के आसपास 6 द्वीप थे- प्लक्ष, शाल्मली,
कुश, क्रौंच, शाक एवं
पुष्कर। जम्बू द्वीप धरती के मध्य में स्थित है और इसके मध्य में इलावृत नामक देश
है। आज के कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया
और चीन के मध्य के स्थान को इलावृत कहते हैं। इस इलावृत के मध्य में स्थित है
सुमेरू पर्वत।
इलावृत के
दक्षिण में कैलाश पर्वत के पास भारतवर्ष, पश्चिम में केतुमाल (ईरान के तेहरान से रूस के
मॉस्को तक), पूर्व में हरिवर्ष (जावा से चीन तक का क्षेत्र)
और भद्राश्चवर्ष (रूस), उत्तर में रम्यकवर्ष (रूस), हिरण्यमयवर्ष (रूस) और उत्तकुरुवर्ष (रूस) नामक देश हैं।
मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, इराक, इसराइल, कजाकिस्तान, रूस,
मंगोलिया, चीन, बर्मा,
इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा,
सुमात्रा, हिन्दुस्तान, बांग्लादेश,
नेपाल, भूटान, पाकिस्तान
और अफगानिस्तान का संपूर्ण क्षेत्र जम्बू द्वीप था।
इलावृत देश के
मध्य में स्थित सुमेरू पर्वत के पूर्व में भद्राश्ववर्ष है और पश्चिम में
केतुमालवर्ष है। इन दोनों के बीच में इलावृतवर्ष है। इस प्रकार उसके पूर्व की ओर
चैत्ररथ, दक्षिण की ओर गंधमादन, पश्चिम
की ओर वैभ्राज और उत्तर की ओर नंदन कानन नामक वन हैं, जहां
अरुणोद, महाभद्र, असितोद और मानस
(मानसरोवर)- ये चार सरोवर हैं। माना जाता है कि नंदन कानन का क्षेत्र ही इंद्र का
लोक था जिसे देवलोक भी कहा जाता है। महाभारत में इंद्र के नंदन कानन में रहने का
उल्लेख मिलता है।
सुमेरू के
दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक पर्वत हैं, जो अलग-अलग देश की भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुमेरू के उत्तर में
नील, श्वेत और श्रृंगी पर्वत हैं, वे
भी भिन्न-भिन्न देश में स्थित हैं।
इस सुमेरू
पर्वत को प्रमुख रूप से बहुत दूर तक फैले 4 पर्वतों ने घेर रखा है। 1. पूर्व
में मंदराचल, 2. दक्षिण में गंधमादन, 3. पश्चिम में विपुल और 4. उत्तर में सुपार्श्व। इन
पर्वतों की सीमा इलावृत के बाहर तक है।
सुमेरू के
पूर्व में शीताम्भ, कुमुद, कुररी, माल्यवान, वैवंक नाम से आदि पर्वत हैं। सुमेरू के
दक्षिण में त्रिकूट, शिशिर, पतंग,
रुचक और निषाद आदि पर्वत हैं। सुमेरू के उत्तर में शंखकूट, ऋषभ, हंस, नाग और कालंज आदि
पर्वत हैं।
भारतवर्ष
पूर्व काल में स्वायम्भुव नाम से प्रसिद्ध एक मनु हुए हैं; वे ही आदि मनु और प्रजापति कहे गए हैं। उनके दो पुत्र हुए, प्रियव्रत और उत्तानपाद। राजा उत्तानपाद के पुत्र परम धर्मात्मा ध्रुव हुए, जिन्होंने भक्ति भाव से भगवान् विष्णु की आराधना करके अविनाशी पद को प्राप्त किया। राजर्षि प्रियव्रत के दस पुत्र हुए, जिनमें से तीन तो संन्यास ग्रहण करके घर से निकल गए और परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त हो गए। शेष सात द्वीपों में उन्होंने अपने सात पुत्रों को प्रतिष्ठित किया। राजा प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र आग्नीघ्र जम्बू द्वीप के अधिपति हुए। उनके नौ पुत्र जम्बू द्वीप के नौ खण्डों के स्वामी माने गए हैं, जिनके नाम उन्हीं के नामों के अनुसार इलावृतवर्ष, भद्राश्ववर्ष, केतुमालवर्ष, कुरुवर्ष, हिरण्यमयवर्ष, रम्यकवर्ष, हरीवर्ष, किंपुरुष वर्ष और हिमालय से लेकर समुद्र के भू-भाग को नाभि खंड (भारतवर्ष) कहते हैं।
नाभि
और कुरु ये दोनों वर्ष धनुष की आकृति वाले बताए गए हैं। नाभि के पुत्र ऋषभ हुए और
ऋषभ से ‘भरत’ का जन्म हुआ; जिनके आधार पर इस देश को भारतवर्ष भी कहते हैं।
शाकद्वीप
पुराणों में
सात द्वीपों (जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्वीप,
कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप
तथा पुष्करद्वीप) का वर्णन है जिनके अलग अलग वर्ण, उपद्वीप,
पर्वत, सागर, इष्टदेव,
नदियाँ तथा शासक हैं
शाकद्वीप
इन्ही मे से एक है जिनके शासक प्रियव्रत पुत्र मेधातिथि हैं। इसमें भी सात उपद्वीप
हैं जिनका नाम क्रमश: पुरोजव, मनोजव, पवमान, धुम्रानीक, चित्ररेफ, बहुरूप
और चित्रधार है। इन्हीं नामके मेधातिथि के पुत्र हुए तथा उनके पुत्रों ने अपने नाम
के उपद्वीपों पर राज किया। यहाँ ईशान, उरुशृङ्ग, बलभद्र,
शतकेसर, सहस्रस्रोत, देवपाल
और महानस नामक सप्त मर्यादापर्वत हैं तथा अनघा, आयुर्दा,
उभयस्पृष्ठि, अपराजिता, पञ्चपदी,
सहस्रस्रुति और निजधृति नामक सात नदियाँ हैं। यहाँ की जातियाँ
(वर्ण) ऋतव्रत, सत्यव्रत, दानव्रत तथा
अनुव्रत हैं तथा इष्टदेव श्रीहरि हैं। इस शाकद्वीप में एक शाक नामक वृक्ष है जिसकी
मनोहर सुगंध पूरे द्वीप में छाई रहती है। यहाँ के वासी, बीमारियों
से दूर तथा हजारों वर्षों तक जीवित रहने वाले हैं। शाकद्वीप के चारो ओर मट्ठे का
सागर है।
किसने
बसाया भारतवर्ष : त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व
प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया
था,
तब इसका नाम कुछ और था।
वायु पुराण के
अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के
पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू
देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं
भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके
नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला
के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।
इस
भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप
था,
जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु
सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास
करते थे।
राजा
प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को
संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और
अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र
अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षेत्र।
अब प्रश्न आता है शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है? इस विषय में हमें ध्यान देना चाहिए कि महाभारत नाम का ग्रंथ मूलरूप में जय नाम का ग्रंथ था, जो कि बहुत छोटा था लेकिन बाद में बढ़ाते बढ़ाते उसे इतना विस्तार दिया गया कि राजा विक्रमादित्य को यह कहना पड़ा कि यदि इसी प्रकार यह ग्रंथ बढ़ता गया तो एक दिन एक ऊंट का बोझ हो जाएगा। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इस ग्रंथ में कितना घाल मेल किया गया होगा। अत: शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत
से इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा किसी घालमेल का परिणाम हो सकता है। जब हमारे पास साक्षी लाखों साल पुरानी है और आज का विज्ञान भी यह मान रहा है कि धरती पर मनुष्य का आगमन
करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें?
दूसरी बात हमारे संकल्प मंत्र में पंडित जी हमें सृष्टिï सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि अब एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है। बात।तो हम एक एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करें और अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ें या मानें तो यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है?
जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण भी उपलब्ध हो, साथ ही तर्क भी हों तो फिर उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों के आधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है। हमारे देश के बारे में वायु पुराण में ही उल्लिखित है कि हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है। इस विषय में देखिए वायु पुराण
क्या कहता है— हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्। तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:।।
हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है।
यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान
की बात समझी जाती है, और यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें तो रूढिवादिता का प्रमाण माना जाता है । यह सोच सिरे से ही गलत है। अब आप समझें राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है। हमने यह नही सोचा कि एक
विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में आकर साल,डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है?
विशेषत: तब
जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे और वह राजस्थानी भाषा से परिचित नही था। तब ऐसी परिस्थिति में उसने केवल
इतना काम किया कि जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध
थीं उन सबको संहिताबद्घ कर दिया। इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक
को प्रमाणिक माना जाने लगा। जिससे यह धारणा रूढ हो गयीं कि राजस्थान के इतिहास पर
कर्नल टाड का एकाधिकार है। ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती
हैं। अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा
ध्येय होना चाहिए। अपने देश के नाम के विषय में भी हमें गंभीर चिंतन करना चाहिए, इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है, जैसा कि
इसके विषय में माना जाता है, बल्कि इतिहास अतीत के गौरवमयी
पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है। ‘वृहद देवता’ ग्रंथ में कहा गया है कि ऋषियों द्वारा
कही गयी पुराने काल की बात इतिहास है। ऋषियों द्वारा हमारे लिये जो मार्गदर्शन
किया गया है उसे तो हम रूढिवाद मानें और दूसरे लोगों ने जो हमारे लिये कुछ कहा है
उसे सत्य मानें,यह ठीक नही। इसलिए भारतवर्ष के नाम के विषय
में व्याप्त भ्रांति का निवारण किया जाना बहुत आवश्यक है। इस विषय में जब हमारे
पास पर्याप्त प्रमाण हैं तो भ्रांति के निवारण में काफी सहायता मिल जाती है। इस सहायता
के आधार पर हम अपने अतीत का गौरवमयी गुणगान करें, तो सचमुच
कितना आनंद आएगा?
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