अहा ! वह जिंदगी और मौत का होगा मिलन कैसा !
अलौकिक दिव्य वह
अद्भुत अजब होगा मिलन कैसा !
जहाँ पर श्वास औ
प्रश्वास मिलकर आस बन जाये ।
समाकर एक दूजे
में अटल विश्वास बन जाये ।।
अहो ! वह
भूत-भावी का कहो होगा मिलन कैसा !
अलौकिक दिव्य वह
अद्भुत अजब होगा मिलन कैसा !
गहन तम में उजाले
की जहाँ लौ जल रही होगी ।
निराशा संग आशा
हाथ थामे चल रही होगी ।।
धरा से वह
अनंताकाश का होगा मिलन कैसा !
अलैकिक दिव्य वह
अद्भुत अजब होगा मिलन कैसा !
जहाँ संवेदना के
तार झंकृत हो रहे होंगे ।
गले मिलकर खुशी
के आठ आँसू रो रहे होंगे ।।
ये प्यासे नैन का
चितचैन से होगा मिलन कैसा !
अलौकिक दिव्य वह
अद्भुत अजब होगा मिलन कैसा !
कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार,
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