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बच्चों को भ्रमित न करें; सच्चे ‘सांता क्लॉज’ को दिखाएं, एक लाख रुपये पाएं!

बच्चों को भ्रमित न करें; सच्चे ‘सांता क्लॉज’ को दिखाएं, एक लाख रुपये पाएं!

– हिंदू राष्ट्र समन्वय समिति का आवाहन

कोल्हापुर – क्रिसमस नज़दीक आती ही भारत के अधिकांश शहरों में जगह–जगह ‘सांता क्लॉज’ की टोपी बेचने वाले बड़ी संख्या में दिखाई देने लगते हैं। स्वयं को उन्नत विचारों वाला, सर्वधर्म समभावी और प्रगतिशील कहने वाले कुछ हिंदू लोग भी अपने बच्चों को यह कहानियां सुनाते हैं कि सांता क्लॉज रात में बच्चों के सो जाने के बाद आता है और उनके लिए उपहार छोड़ जाता है। इस तरह वे अपने ही बच्चों को एक काल्पनिक कथा के माध्यम से भ्रमित कर सांस्कृतिक रूप से भटका रहे हैं।

लेकिन क्या सचमुच कोई सांता क्लॉज होता है? क्या कोई वास्तव में बच्चों को उपहार पहुंचाने आता है? और स्वयं ईसाई समुदाय में सांता के विषय में क्या धारणा है? हिंदू समाज बिना विचार किए इन बातों में उलझ रहा है और अपने बच्चों को अंधविश्वास के मार्ग पर ले जा रहा है। यही लोग सामान्य परिस्थितियों में हिंदू देवी–देवताओं को अंधविश्वास कहकर उपहास करते हैं, फिर इस समय मौन क्यों हैं?

इन्हीं प्रश्नों को उठाते हुए हिंदू राष्ट्र समन्वय समिति द्वारा हिंदू समाज से आवाहन किया गया है – “यदि कोई व्यक्ति यह प्रमाणित कर दे कि सच्चा ‘सांता क्लॉज’ आता है, तो उसे 1 लाख रुपयो का इनाम दिया जाएगा!” समिति के तालुका संयोजक श्री नितिन काकडे ने यह घोषणा कोल्हापुर में आयोजित पत्रकार परिषद में की।

इस अवसर पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास के राष्ट्रीय महामंत्री श्री पराग फडणीस, महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के श्री अशोक गुरव, महाराजा प्रतिष्ठान के संस्थापक श्री निरंजन शिंदे, शिवशाही फाउंडेशन के संस्थापक श्री सुनील सामंत, उद्धव बालासाहेब ठाकरे शिवसेना के उपजिलाध्यक्ष श्री संभाजी भोकरे, हिंदुत्वनिष्ठ कार्यकर्ता श्री रामभाऊ मेथे तथा हिंदू राष्ट्र समन्वय समिति के श्री शिवानंद स्वामी उपस्थित थे।

ईसाई धर्मगुरुओं की राय क्या है? : ईसाई धर्मगुरुओं ने स्वयं सांता क्लॉज की वास्तविकता पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। इटली के बिशप एंटोनियो स्टैग्लियानो ने कहा है कि, “सांता क्लॉज एक काल्पनिक चरित्र है जिसका उपयोग कोका–कोला कंपनी ने अपने उत्पादों के विज्ञापन के लिए किया।” अमेरिका के प्रसिद्ध पादरी और लेखक मार्क ड्रीस्कॉल ने ‘सांता क्लॉज’ को “क्रिसमस का राक्षस” कहा है, जो माता–पिता को अपने बच्चों से झूठ बोलने के लिए प्रेरित करता है। उनका कहना है कि “बच्चों से झूठ बोलना कि सांता वास्तव में मौजूद है, उनके विश्वास को तोड़ने जैसा है।”

विश्व के चार प्रमुख चर्च संगठनों में से एक ‘ऑर्थोडॉक्स चर्च’ में सांता की अवधारणा को लगभग अस्वीकार कर दिया गया है। रूस, ग्रीस जैसे देशों के ऑर्थोडॉक्स ईसाई ‘सांता’ की जगह ‘सेंट बेसिल’ या ‘फादर फ्रॉस्ट’ को मानते हैं। उनके अनुसार सांता एक बाज़ार की उपज है जिसका आध्यात्मिक परंपरा से कोई संबंध नहीं। ‘अंग्लिकन चर्च’ सांता को “मनोरंजक कथा” मानता है जो क्रिसमस का केंद्र नहीं है, जबकि ‘प्रोटेस्टेंट संस्थाएं’ उसे मूर्तिपूजा और अंधविश्वास करार देती हैं।

हिंदू राष्ट्र समन्वय समिति का संदेश : जब ईसाई धर्मगुरु स्वयं सांता क्लॉज को कपोलकल्पित बताते हैं, तब हिंदू समाज को उसका अंधानुकरण क्यों करना चाहिए? समिति ने हिंदू परिवारों से कहा है कि वे अपने बच्चों को हिंदू संस्कारों और परंपराओं के अनुरूप शिक्षित करें और विदेशी मिथकों से प्रभावित न हों। हिंदू राष्ट्र समन्वय समिति ने महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति पर भी प्रश्न उठाया है, “जब यह संस्था हिंदू धर्माचार और परंपराओं में तथाकथित अंधविश्वास खोजती है, तब सांता क्लॉज जैसे भ्रमों पर यह मौन क्यों है?”



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