"विनम्रता: योग्यता का परम आभूषण"
पंकज शर्मामानव जीवन में योग्यता मात्र कर्मठता का प्रतिफल नहीं, अपितु आत्मा के विस्तार का दर्शन है। जिस प्रकार परमात्मा का प्रकाश भी शून्य में विनम्रता पूर्वक उतरता है, वैसे ही ज्ञान का अहंकार विहीन होना अनिवार्य है। यदि किसी प्रतिभा में विनम्रता का माधुर्य न हो, तो वह एक तीक्ष्ण किंतु अप्राप्य शिखर मात्र रह जाती है; उसकी आभा, दर्प के धूम्र से धूमिल हो जाती है। यह दार्शनिक सत्य है कि आचरण की कोमलता ही व्यक्ति की चरम सिद्धि को समाज के लिए सुगम बनाती है।
इसके विपरीत, जो व्यक्ति अपने अल्पज्ञान के प्रति सजग रहते हुए भी विनम्रता का धारण करता है, वह वस्तुतः ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ जाता है। यह आध्यात्मिक गुण उसकी सीमित योग्यता को भी स्वीकार्यता एवं प्रभाव की असीम ऊँचाई प्रदान करता है। नम्रता का यह भाव ही अंततः उसे निरंतर सीखने एवं विकसित होने का द्वार खोलता है। अतः, विनम्रता केवल एक गुण नहीं, अपितु व्यक्तित्व की समग्रता एवं उत्कृष्टता का मूल आधार है।
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