जीवन का सार
संजय जैनजीवन है पानी की बूंद
कब मिट जाये रे।
होनी अनहोनी हो हो..२
कब क्या हो जाये रे।।
भूल भूलाईया में घूम रहे
जीवन को यू खो रहे।
अपने अपने कर्मों का
फल देखो कैसे भोग रहे।
फिर भी मृत्यु का हो हो..२
देखो डर कितना लागे।
जीवन है पानी की बूंद
कब मिट जाये..।।
काम न आये अपने तेरे
सबके सब स्वार्थी है जो।
अच्छे समय के देखो तुम
सबके सब साथी थे जो।
आया बुरा वक्त तो, हो हो..२
सब कैसे मुँह फिर लिये।
जीवन है पानी की बूंद
कब मिट जाये रे...।।
जीवन कड़वा सत्य है
जिसे समझना है तुझको।
अपने हाथो पर ही
करना भरोसा है तुझको।
जो तू इस बात को, हो हो..२
अगर समझ गया।
तो जीवन फिर तेरा
कमल सा खिल जायेगा।।
जीवन है पानी की बूंद
कब मिट जाये।
होनी अनहोनी हो हो
कब क्या हो जाये रे।।
मानव की करनी ही
मानव के काम आये।
दान-दया का फल उसका
यही पर मिल जाये।
संजय का कथनों का हो हो..२
तुम सार निकाल लो।
जीवन है पानी की बूंद
कब मिट जाये रे।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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