"संबंधों की मौन परीक्षा"
पंकज शर्मा
अपेक्षा और उपेक्षा—ये दोनों भावनाएँ मनुष्य के भीतर जन्म लेकर उसके संबंधों की मौन परीक्षा लेती हैं। अपेक्षा जब सीमा लाँघती है, तो प्रेम सौदे में बदलने लगता है; और उपेक्षा जब आदत बन जाती है, तो आत्मा भीतर ही भीतर सूखने लगती है। आध्यात्मिक दृष्टि से अपेक्षा अहं का विस्तार है, जबकि उपेक्षा संवेदना का क्षय। इन दोनों के बीच संतुलन न रहे, तो संबंध केवल नाम मात्र के रह जाते हैं।
दार्शनिक स्तर पर संबंध वही टिकते हैं, जहाँ स्वीकार भाव प्रधान हो। न अति अपेक्षा बाँधती है, न पूर्ण उपेक्षा मुक्त करती है। साहित्य कहता है—प्रेम वह दीप है, जो ध्यान से जलाया जाए तो प्रकाश देता है, और उपेक्षा की हवा में बुझ जाता है। इसलिए संबंधों को बचाने का उपाय यही है कि हम अपेक्षा को विश्वास में और उपेक्षा को करुणा में रूपांतरित करना सीखें।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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