"अंधकार नहीं, अनुभव"
पंकज शर्माआँखें मूँद लेना
सबसे सहज साधना है—
अँधेरा तुरंत
ज्ञान का मुखौटा पहन लेता है,
और प्रश्न
दृष्टि से निष्कासित कर दिए जाते हैं।
पर जो देखना चाहता है,
उसे उजाले का जोखिम उठाना पड़ता है—
जहाँ हर दृश्य
स्वयं से मुठभेड़ कराता है
और भ्रम
चुपचाप टूटते हैं।
अँधकार में उपदेश देना
सरल है,
वहाँ कोई प्रमाण नहीं माँगता—
केवल शब्द
अपने ही प्रतिध्वनि में
संतुष्ट हो जाते हैं।
जीवन की पुस्तक
एक अध्याय में नहीं खुलती—
उसके पन्नों पर
पीड़ा, पराजय और प्रतीक्षा
समान स्याही से लिखी होती है।
जो हर अध्याय से गुज़रा है,
वह वाक्य नहीं,
अनुभव बोलता है—
उसकी वाणी में
घोषणा नहीं,
स्वीकृति होती है।
मौन तब भाषा बनता है
जब शब्द
अपर्याप्त सिद्ध हो जाएँ—
जब चुप्पी
समझाने लगे
जो कहा नहीं जा सकता।
संत वही नहीं
जो ऊँचे आसन पर बैठा हो,
संत वह है
जो जीवन की धूल से
आँखें धो चुका हो।
उसका ज्ञान
अँधेरे से नहीं,
संघर्ष से जन्म लेता है—
और उसका मौन
सबसे स्पष्ट उत्तर होता है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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