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भारत में भाषायी विवाद के निवारण के लिए आगे आएँ भाषाओं के विद्वान

भारत में भाषायी विवाद के निवारण के लिए आगे आएँ भाषाओं के विद्वान

  • पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय लघुकथा उत्सव के उद्घाटन-भाषण में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने आह्वान किया
कोलकाता, १२ दिसम्बर । देश की स्वतंत्रता के पश्चात भारत में क्षुद्र राजनैतिक कारणों से अनावश्यक रूप से भाषायी विवाद खड़े किए जाते रहे हैं।यह देश के एकत्व और आत्मीय सरोकार में अत्यंत बाधक है। भाषा ही व्यक्ति को समाज से और समुदायों को आत्मीय धरातल पर जोड़ती है। जबतक देश में राष्ट्र की एक भाषा नहीं होगी, तबतक देश एक सूत्र में नहीं बंध पाएगा। इस मूल्यवान विचार को समझे विना देश का वास्तविक उन्नयन संभव नहीं है। इस महान कार्य को पूरा करने के लिए और भाषायी विवाद को सदा के लिए समाप्त करने के लिए देश की भाषाओं के साहित्यकारों को आगे आना चाहिए ।

यह बातें पश्चिमबंग हिन्दी अकादमी द्वारा कोलकाता स्थित बांग्ला अकादमी सभागार, रवींद्र सदन में शुक्रवार को संपन्न हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय लघुकथा उत्सव में अपना उद्घाटन-वक्तव्य में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही । उन्होंने कहा कि साहित्य का एक बड़ा लक्ष्य समाज को आनंद प्रदान करना है, क्योंकि इसके अभाव में मानव अशक्त हो जाता है। किन्तु यह लोक-रंजन तक सीमित नहीं रहता पीड़ितों के आँसू पोंछकर उन्हें जीवनी-शक्ति प्रदान करता है। यह समाज का दर्पण भर नहीं, मार्ग-दर्शक भी है। यह समाज में गुणात्मक परिवर्तन करता है। दुर्भाग्य से साहित्य-समाज भी खंडों में बँटा हुआ है । साहित्य तोड़ता नहीं जोड़ने का काम करता है। तोड़ने वाले लोग साहित्यकार नहीं हो सकते । डा सुलभ ने लघुकथा को कथा-साहित्य की अत्यंत सशक्त और प्रभावी विधा बताते हुए कहा कि यह कम शब्दों में गहरा प्रभाव छोड़ती है।

अकादमी के सभापति विवेक गुप्त की अध्यक्षता में, सुप्रसिद्ध साहित्यकार रावेल पुष्प के संयोजकत्व में आहूत इस साहित्योत्सव में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित बाबा साहेब अम्बेडकर एजूकेशन यूनिवर्सिटी की उप कुलपति डा सोमा बंधोपाध्याय ने कहा कि इस तरह के उत्सव के माध्यम से भाषायी एकता को बढ़ावा मिलता है।

विभिन्न सत्रों में, भोपाल के सुप्रसिद्ध लघुकथाकार गोकुल सोनी, जय प्रकाश मानस, विद्या भंडारी, बिहार की लेखिका डा पूनम आनंद, डा रेशमी पांडा मुखर्जी, डा सौम्यजीत आचार्य, अरुणा वादलामणि , विजय शंकर विकुज, सूर्या सिन्हा, सुखचाँद सोरेन, असित बरन बेरा, सुरेश शा, डा सीमा गुप्ता, शकुन त्रिवेदी, प्रो शुभ्रा उपाध्याय, उमा झुनझुनबाला, रंजना झा, प्रणति ठाकुर, अकादमी के सदस्य अनिल कुमार राय आदि देश के विभिन्न प्रांतों से आए साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किए और कथाकारों ने लघु कथाओं के पाठ किए।

मंच का संचालन चर्चित लेखिका रचना सरन ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन अकादमी के सदस्य सचिव गिरिधारी साहा ने किया।

नाट्य संस्था लिटिल थेस्पियन के कलाकारों, संगीता व्यास, गुंजन अजहर, हीना परवेज़, पार्वती साव, मो आसिफ अंसारी द्वारा लघुकथाओं के अभिनयात्मक पाठ किए गए।

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