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प्रणय उमड़ेगा जब हृदय में,वेदना बारंबार मिलेगी

प्रणय उमड़ेगा जब हृदय में,वेदना बारंबार मिलेगी

कुमार महेन्द्र
निज स्वार्थ अस्ताचल बिंदु,
समता भाव सरित प्रवाह ।
त्याग समर्पण उरस्थ प्रभा,
स्पृहा मिलन दर्शन अथाह ।
पग पग कंटक अपमान दंश,
पर मुखमंडल मुस्कान खिलेगी ।
प्रणय उमड़ेगा जब हृदय में,वेदना बारंबार मिलेगी ।।


उच्च निम्न विभेद विलोपन,
दृष्टि आरेखित प्रेयसी छवि ।
विरोध कटाक्ष निरादर सर्वत्र,
सहन अनुपमा सदृश रवि ।
वृहत्त रूप जनमानस प्रश्न,
पर उत्तर बन नीरव चलेगी ।
प्रणय उमड़ेगा जब हृदय में,वेदना बारंबार मिलेगी ।।


विष अंतर सुधा स्पंदन,
लोक हित अग्नि परीक्षा ।
नेह अमिय धार अनंत,
प्रिय चाह नैतिक अभिरक्षा ।
आलोकित कर पर जीवन,
बाती बन दिन रात जलेगी ।
प्रणय उमड़ेगा जब हृदय में,वेदना बारंबार मिलेगी ।।


जीवन संघर्ष बाधा पर्याय,
संदेह चरित्र बिंदु हाव भाव ।
परंपरा मर्यादा प्रतिकूल बिंब,
परिवार समाज व्यंग्य घाव ।
शब्द स्वर व्यंजना द्विअर्थी,
तन दमन वासनाएं मचलेगी ।
प्रणय उमड़ेगा जब हृदय में,वेदना बारंबार मिलेगी ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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