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पटना से दिल्ली तक स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा - “भुने चने में जहर”

पटना से दिल्ली तक स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा - “भुने चने में जहर”

दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |

भारत में भुना चना सिर्फ एक नाश्ता नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा है। स्कूल जाते बच्चे हों, दफ्तर से लौटते कर्मचारी, रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर खड़े यात्री, हर किसी की जेब में कभी न कभी मुट्ठी भर भुना चना जरूर होता है। सस्ता, स्वादिष्ट और पौष्टिक समझा जाने वाला यह खाद्य पदार्थ अब एक गंभीर स्वास्थ्य संकट की वजह बनता जा रहा है।

दिल्ली में भुने चने के नमूनों में कपड़ा रंगने वाली औद्योगिक डाई ‘ओरामाइन-ओ’ पाए जाने के बाद पूरे देश में हड़कंप मच गया है। इसी कड़ी में अब पटना में भी खाद्य सुरक्षा विभाग ने बड़े पैमाने पर सैंपलिंग शुरू कर दी है। यह मामला सिर्फ मिलावट का नहीं है, बल्कि कैंसर जैसे जानलेवा रोगों से जुड़ा हुआ है।

दिल्ली में जब खाद्य सुरक्षा एजेंसियों ने भुने चने के नमूनों की जांच की, तो रिपोर्ट चौंकाने वाली थी। कई नमूनों में “ओरामाइन-ओ” नामक रसायन पाया गया है, जिसका उपयोग आमतौर पर कपड़े रंगने, प्रिंटिंग और औद्योगिक कार्यों में किया जाता है।

इस खुलासे के बाद भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने सभी राज्यों को सतर्क रहने और जांच अभियान तेज करने के निर्देश दिया है। इसके तहत शुक्रवार को पटना में भी खाद्य सुरक्षा विभाग की टीमें मैदान में उतरी।

नेहरू पथ, किदवईपुरी और राजीवनगर जैसे इलाकों में घूम-घूमकर भुने चने के नमूने एकत्र किए गए। प्राथमिक जांच में यह संदेह और गहरा हो गया कि कुछ विक्रेता चने को अधिक पीला, चमकदार और कुरकुरा दिखाने के लिए इस प्रतिबंधित रसायन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

“ओरामाइन-ओ” (Auramine O) एक औद्योगिक डाई है। इसका इस्तेमाल कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, प्रिंटिंग और पेंट निर्माण में किया जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार यह उच्च जोखिम वाला कार्सिनोजेन है जो लिवर, किडनी, आंत और तंत्रिका तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। लंबे समय तक सेवन से कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (IARC) पहले ही इसे कैंसर बढ़ाने वाली श्रेणी में शामिल कर चुकी है।

प्रश्न यह उठता है कि जब भुना चना अपने आप में स्वादिष्ट और पौष्टिक है, तो फिर इसमें रसायन क्यों? इसके पीछे कई कारण सामने आया हैं। ज्यादा पीला और चमकदार चना ग्राहक को आकर्षित करता है। पुराने या घटिया चने को छिपाने की कोशिश होता है। कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने का प्रयास होता है। निगरानी की कमी भी एक वजह है। कुछ विक्रेताओं को लगता है कि थोड़ी-सी डाई से चना “ताजा और कुरकुरा” दिखेगा और बिक्री बढ़ेगी, लेकिन वह यह भूल जाता है कि यह सीधे लोगों की जान से खेलना है।

जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी के अनुसार, चार संदिग्ध नमूने एकत्र किए गए हैं। सभी नमूने प्रयोगशाला भेजे गए हैं। 15 दिनों में रिपोर्ट आने की संभावना है। रिपोर्ट के आधार पर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि यह अभियान सिर्फ एक दिन का नहीं है, बल्कि लगातार जारी रहने वाला है।

विशेषज्ञों का कहना है कि “ओरामाइन-ओ” का असर हर किसी पर होता है, लेकिन कुछ वर्गों के लिए यह बेहद खतरनाक है जैसे बच्चे- विकासशील शरीर पर सीधा असर, इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। गर्भवती महिलाएं- भ्रूण के विकास पर नकारात्मक प्रभाव, जन्मजात बीमारियों का खतरा। बुजुर्ग- पहले से कमजोर अंगों पर अतिरिक्त दबाव, कैंसर और तंत्रिका संबंधी रोगों का जोखिम।

“ओरामाइन-ओ” का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इसका असर तुरंत नहीं दिखता है। यह धीरे-धीरे शरीर में जमा होता है। वर्षों बाद गंभीर बीमारियों के रूप में सामने आता है, जिसमें लिवर कैंसर, किडनी फेल्योर, आंतों के कैंसर और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसी समस्याएं इससे जुड़ी पाई गई हैं।

खाद्य विशेषज्ञों ने कुछ आसान संकेत बताए हैं। असामान्य रूप से बहुत ज्यादा चमकीला पीला रंग, हाथ में लेने पर रंग का हल्का असर, स्वाद में हल्की कड़वाहट या रासायनिक गंध, बहुत ज्यादा कुरकुरापन, जो प्राकृतिक न लगे, ऐसी स्थिति में खुले में बिकने वाले बेहद चमकीले चने से बचें, पैक्ड और प्रमाणित ब्रांड का ही उपयोग करें, शक होने पर स्थानीय खाद्य सुरक्षा विभाग को सूचना दें।

खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के तहत किसी भी खाद्य पदार्थ में औद्योगिक रसायन मिलाना अपराध है। दोषी पाए जाने पर भारी जुर्माना, लाइसेंस रद्द और जेल की सजा तक का प्रावधान है। इसके बावजूद, जमीनी स्तर पर लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते ऐसे मामले सामने आते रहते हैं।

भुना चना तो सिर्फ एक उदाहरण है। इससे पहले हल्दी में लेड क्रोमेट, मिर्च पाउडर में ईंट का चूर्ण, दूध में डिटर्जेंट और मिठाइयों में सिंथेटिक रंग, जैसे मामले सामने आ चुका है। यह दर्शाता है कि खाद्य मिलावट एक संगठित और गंभीर समस्या बन चुका है।

इस लड़ाई में केवल सरकार या विभाग ही जिम्मेदार नहीं हैं। बल्कि उपभोक्ताओं को जागरूक होना होगा। संदिग्ध चीजें खरीदने से मना करना होगा। शिकायत दर्ज कराने की आदत डालनी होगी। जब तक मांग रहेगी, तब तक मिलावट होती रहेगी।

ऐसे मामलों को सामने लाने में मीडिया की भूमिका भी अहम है। जांच रिपोर्ट्स, विशेषज्ञों की राय और आम जनता तक सही जानकारी, अगर यह खबरें दबा दी जाएं, तो मिलावटखोर और बेखौफ हो जाएंगे।

भुना चना हमारी थाली और संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन अगर वही चना जहर बन जाए, तो स्वाद का क्या अर्थ? पटना में शुरू हुआ यह जांच अभियान एक चेतावनी है। अब लापरवाही नहीं चलेगी। सरकार, प्रशासन और आम जनता, तीनों को मिलकर यह तय करना होगा कि हमारे खाने में जहर नहीं, सिर्फ सेहत हो।

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