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जितना बने 'जय राम 'कहकर उछलिए

जितना बने 'जय राम 'कहकर उछलिए|

डा• मेधाव्रत शर्मा, डी.लिट.
(पूर्व यू.प्रोफेसर)

जितना बने 'जय राम 'कहकर उछलिए,मर्हबा!
बाद ए पिंदार जितना भी बने पी लीजिए,मर्हबा!
मिजाजे वक़्त कब हो जाय बेहद कज,न जाने ,
दीद -ए-आतशजनी मानिंदे नीरो कीजिए,मर्हबा।
हरकतें जायज सभी हैं इश्क हो या जंग हो,
राम के दरबार में ही सत्य को दफनाइये,मर्हबा!
अक्ल जो गिरवी हुई तो बेहयाई में जरर कुछ भी नहीं,
मिस्लेखंजर किल्क से इतिहास का खूँ कीजिए,मर्हबा!
थूकते खुर्शीद पर हैं बेमहाबा अक्लमंदी के नवाब,
शम्स-ए-मख़्लूक गाँधी पर बखूबी थूकिए,मर्हबा!
(बाद ए पिंदार =अहंकार की शराब। किल्क =कलम।खुर्शीद,शम्स =सूरज)
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