मुकुर होता है अशक्त और निडर होता है सत्य
दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |
कहते हैं कि मुकुर चाहे जितना भी अशक्त क्यों न हो, वह सच दिखाने से कभी नहीं डरता। यह पंक्ति केवल एक काव्यात्मक बिंब नहीं है, बल्कि जीवन, समाज और राजनीति का शाश्वत सत्य है। सत्ता के गलियारों में भ्रम और शक की परतें चाहे जितनी मोटी क्यों न हों, समय का मुकुर अंततः सब कुछ निर्वस्त्र कर देता है। जीवन में भ्रम अक्सर गलत लोगों पर उम्मीद रखने से टूटता है और कष्ट सच्चे लोगों पर शक करने से बढ़ता है। यही सूत्र व्यक्तिगत जीवन से लेकर राजनीतिक जीवन तक समान रूप से लागू होता है।
भारतीय दर्शन में वैतरणी केवल एक नदी नहीं है, बल्कि कर्मों के लेखे-जोखे का प्रतीक है। कहा जाता है कि पाप और पुण्य का अंतिम हिसाब इसी वैतरणी में होता है। जब कष्ट का निवारण स्वयं ब्रह्मा भी न कर सकें, तो धरा के इंसानों की क्या औकात। यह कथन सत्ता के अहंकार पर सबसे बड़ा व्यंग्य है। राजनीति में कई बार ऐसा समय आता है, जब गलत निर्णयों की श्रृंखला इतनी लंबी हो जाती है कि उसे कोई दैवीय हस्तक्षेप भी नहीं सुधार सकता है।
राजनीति में संख्या से अधिक महत्वपूर्ण होता है भ्रम का बीज।विजय काल में बोया गया भ्रम और शक का बीज अक्सर पराजय काल में विषवृक्ष बनकर सामने आता है। सत्ता में रहते हुए व्यक्ति को लगता है कि वह जो कर रहा है, वही धर्म है, वही नीति है और वही राष्ट्रहित है। परंतु सच यह है कि सत्ता में रहकर की गई अनदेखी, सहयोगियों को हल्के में लेना, आलोचना को शत्रुता समझना और चाटुकारिता को समर्थन मान लेना। यह सभी वही बीज है जिसका फल देर-सवेर मिलता ही है।
राजनीति में मर्यादा एक ऐसी ढाल है, जिसे अक्सर सुविधा के अनुसार ओढ़ा और उतारा जाता है। जब मर्यादा सत्ता को बचाती है, तब उसकी दुहाई दी जाती है। जब मर्यादा सत्ता को सीमित करती है, तब उसे बोझ कहा जाता है। सत्ता में बैठे कई लोग मर्यादा को मजबूरी मानते हैं, मूल्य नहीं। यही कारण है कि जैसे ही मर्यादा कमजोर होती है, चरित्र का असली चेहरा सामने आ जाता है।
राजनीतिक दर्शन में एक अत्यंत महत्वपूर्ण विचार है कि “सही समय पर गलत जगह से निकल जाना भी एक ईश्वरीय आशीर्वाद होता है।” यह पंक्ति केवल त्याग की बात नहीं करती है, बल्कि विवेक की बात करती है। कई नेता सत्ता से चिपके रहते हैं, भले ही उन्हें भीतर ही भीतर यह एहसास हो चुका होता है कि अब वे अप्रासंगिक हो चुका है। बेदल की राह पकड़ना आसान नहीं होता। इसके लिए चाहिए आत्मस्वीकार, अहंकार का त्याग और समय की नब्ज पहचानने की क्षमता। जो यह नहीं समझ पाते, वे धीरे-धीरे फजीहत के उस दौर में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ सम्मान से ज्यादा मजाक शेष रह जाता है।
“आधी रात से ही 10 सर्कुलर रोड खाली होने लगा है” यह वाक्य केवल एक स्थान का उल्लेख नहीं है, बल्कि सत्ता के केंद्र में पसरे सन्नाटे का संकेत है। जब सत्ता का सूरज ढलने लगता है, तो फोन कम बजते हैं, मिलने वाले चेहरे बदल जाते हैं और जो कल तक ‘अपने’ थे, वे अचानक व्यस्त हो जाते हैं। 10 सर्कुलर रोड जैसे पते केवल आवास नहीं होते हैं, वे सत्ता के प्रतीक होते हैं। और जब ऐसे पते खाली होने लगते हैं, तो यह साफ संकेत होता है कि सत्ता का मुकुर सच दिखाने लगा है।
राजनीति की एक पुरानी चाल है। जब असली सवाल असहज हो जाए, तो मुद्दों की भीड़ खड़ी कर दो। लेकिन यह सत्ता के भीतर चल रहे संघर्ष, अविश्वास और अंतर्कलह का संकेत है। जो सत्ता के भीतर रहते हुए भी सत्ता की सच्चाई को उजागर कर सकता है। ऐसे लोग न पूरी तरह विद्रोही होते हैं और न पूरी तरह चाटुकार। वे सत्ता के लिए सबसे असहज होते हैं, क्योंकि वे भीतर रहकर सवाल उठाते हैं। इसीलिए सत्ता अक्सर ऐसे लोगों से डरती है, और उन पर शक करती है।
राजनीति में सबसे बड़ा हथियार न तलवार है, न धन, न मीडिया बल्कि भ्रम और शक है। भ्रम सहयोगियों को तोड़ता है और शक विश्वास की नींव खोदता है। जब नेतृत्व भ्रम में जीने लगता है और हर सच्ची आवाज पर शक करता है, तब पतन अवश्यंभावी हो जाता है। इतिहास गवाह है कि चाहे वह राजतंत्र हो, लोकतंत्र हो या पार्टी संगठन। जिस नेतृत्व ने भ्रम को पाल लिया और शक को नीति बना लिया, वह ज्यादा दिन नहीं टिका।
समय सबसे बड़ा न्यायाधीश है। वह न किसी का मित्र है, न शत्रु। आज जो सत्ता में हैं, वे कल इतिहास के पन्नों में होंगे और इतिहास केवल वही याद रखता है कि जिसने मर्यादा निभाई, जिसने आलोचना सुनी और जिसने समय रहते निर्णय लिया। जो नहीं समझ पाए, उनके लिए इतिहास में स्थान नहीं, केवल उदाहरण बचता है, एक चेतावनी के रूप में।
आज की राजनीति में भ्रम टूट रहा है, शक का जहर फैल चुका है और मर्यादा अंतिम परीक्षा में है। जो यह समझ लेगा कि सही समय पर गलत जगह से निकल जाना भी ईश्वर की कृपा है, वही सम्मान बचा पाएगा। बाकी लोग इतिहास में केवल एक पंक्ति बनकर रह जाएंगे कि “वे भी थे, पर सीख नहीं ले पाए।” -------------
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