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चलो विदाई ले लो बंधु

चलो विदाई ले लो बंधु 

मनोज कुमार मिश्र
चलो विदाई ले लो बंधु समय तुम्हारा शेष हुआ
2025 की शाम आ गयी पूरा साल विशेष रहा
5वीं से 4थी अर्थव्यवस्था बने जापान भारत से पीछे हुआ
अन्न उपजाया इतना हमने दुश्मन भी भीख मांगता दिखा
कुछ ख्वाब सुनहरे बुने थे हमने जब तुम आये थे यहां
कई ख्वाब तो पूरे हो गये कुछ के पूरे होने की आशा यहां
समय का चक्र यह चलता रहता कभी खुशियां कभी गम लाता
चार दिनों की सिंदूरी लड़ाई उसमे सबने गर्व महसूस किया
कुम्भ लगा था आते आते मानवमात्र का जमघट था जहां
शांति आए गुजर गया सब, फिर भी बलि ले गया यहां
स्टॉक मार्केट में उथल पुथल रही फिर भी बढ़त बनाई
उस दिन के मुकाबले आज के दिन 6000 पॉइंट की ऊंचाई
मौसम ने भी ली अंगड़ाई शीत प्रखर प्रकट हो रूप दिखाई
जम्मू कश्मीर तक रेल पहुँच गयी नार्थईस्ट की भी बारी आई
साथ दिया तुमने तो बहुत पर शायद हम तुम्हे तवज्जो दे न सके
प्यार पाया था तुमसे बहुत उतना वापस दे न सके
जाओ जाओ जाते हुए को कौन यहां रोक सका है भला
पर धीरे से कह दो न कान में अगला साल होगा मदमस्त यहां
- मनोज कुमार मिश्र
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