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"दिमाग का स्वामित्व एवं आत्मबोध"

"दिमाग का स्वामित्व एवं आत्मबोध"

पंकज शर्मा
मनुष्य की वास्तविक समझ उसकी बुद्धि की तीक्ष्णता में नहीं, बल्कि उस पर उसके अधिकार में निहित होती है। जो व्यक्ति अपने विचारों, इच्छाओं एवं प्रतिक्रियाओं का स्वामी बन जाता है, वही वास्तव में समझदार कहलाता है। ऐसा मनुष्य परिस्थितियों से संचालित नहीं होता, बल्कि विवेक, धैर्य एवं आत्मचिंतन से अपने मार्ग का चयन करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से वह जान लेता है कि दिमाग एक साधन है, साध्य नहीं; इसलिए वह उसे दिशा देता है, न कि उसकी दासता स्वीकार करता है।

इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने दिमाग का गुलाम होता है, वह विचारों की उथल-पुथल में बहता रहता है। वासनाएँ, भय एवं अहंकार उसे कठपुतली बना लेते हैं। दार्शनिक चेतना कहती है कि मुक्ति बाह्य परिस्थितियों से नहीं, आंतरिक अनुशासन से मिलती है। साहित्य भी यही सिखाता है कि आत्मसंयम एवं बोध ही मनुष्य को श्रेष्ठ बनाते हैं।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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