चाय सी मिठास
अरुण दिव्यांशकितना सुंदर मृदुल वाणी ,
कैसी चाय सी मिठास है !
कोयल की मनभावन कूक ,
जैसे वाणी में देव वास है !!
हो रहा ऐसे यह ओझल ,
जैसे यह दिसंबर मास है ।
काक सम कटुता को देख ,
जीवन ही बना उदास है ।।
चाय सी मिठी यह वाणी ,
जीवन का ये एहसास है ।
जीवन बीते संग में उसके ,
किंतु बुझता न प्यास है ।।
अपना बनाता पराए को ,
जैसे वही उसका खास है ।
सच्चा मन व मीठी वाणी ,
प्यारा सा यह उजास है ।।
जहरीली चाय सी मिठास ,
कल बल छल की पाश है ।
बचके रहना ऐसे खतरों से ,
अन्यथा जीवन ही नाश है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार
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