हिंद के हिंदू सनातनी
अरुण दिव्यांशहम हिंद के हिंदू सनातनी ,
हम नहीं चाहते तनातनी ,
किंतु कोई ऑंख दिखाए ,
हथियार ले करें घनाघनी ।
ईश्वर के हम परम पुजारी ,
पावन प्यार ही बरसाते हैं ,
हॅंसी खुशी से रहना सीखे ,
सद्भाव सदा दिखलाते हैं ।
ईश्वर का हैं संदेश फैलाते ,
मित्रवत बंधुत्व निभाते हैं ,
तुम हमारे और हम तुम्हारे ,
रिश्ते सत्य निभा जाते हैं ।
जाग पड़े हैं सनातनी अब ,
नहीं मनमाना चलने देंगे ,
संग में मिल चलना सीखो ,
मन में भ्रम न पलने देंगे ।
भारत भी भरत के वंशज ,
भरत से भारत कहलाया ,
आर्य से आर्यावर्त हमारा ,
जम्बूद्वीप को यह है भाया ।
भारत में रहना है तुझे तो ,
भारतीय तुम्हें बनना होगा ,
भारत के पावन भूमि पर ,
वंदेमातरम् कहना होगा ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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